श्रीरामचरित मानस के मानवीय प्रसंगों पर महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा परिसंवाद

Tue 10-Sep-2024,02:58 PM IST +05:30
श्रीरामचरित मानस के मानवीय प्रसंगों पर महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा परिसंवाद
  • प्राध्यापक डाॅ. रामप्रकाश वर्मा ने प्रभु श्रीराम के जीवन के अनेक मानवीय प्रसंगों का उल्लेख किया। 

     

  • महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी सदस्य आनंद सिंह ने गोस्वामी तुलसीदास की कृति श्रीरामचरित मानस के विभिन्न मानवीय मूल्यों पर प्रकाश डाला।

Maharashtra / Mumbai :

मुंबई, 10 सितम्बर। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई एवं श्री पोद्दारेश्वर राम मंदिर, नागपुर के संयुक्त  तत्वावधान में श्रीरामचरित मानस के मानवीय प्रसंगों पर परिसंवाद का आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ।

श्रीराम मंदिर के सत्संग भवन में आयोजित इस परिसंवाद का शुभारम्भ  मंदिर में विराजित प्रभु श्रीराम दरबार के चित्र और रामचरितमानस पर गणमान्य अतिथियों द्वारा माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन तथा महाराष्ट्र राज्य गीत के साथ हुआ। शुरुआत में प्रास्ताविकी प्रस्तुत करते हुए महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी की उपाध्यक्षा श्रीमती प्रियंका शक्ति ठाकुर ने अकादमी के उद्देश्यों और गतिविधियों पर प्रकाश डाला।

मुख्य अतिथि के रूप में अकोला से पधारे प्राध्यापक डाॅ. रामप्रकाश वर्मा ने प्रभु श्रीराम के जीवन के अनेक मानवीय प्रसंगों का उल्लेख करते हुए ताड़कावध, निषाद राज, सुग्रीव और अगंद से जुडे संदर्भों में प्रभु श्रीराम के मानवीय दृष्टिकोण की विवेचना की। मुख्य मार्गदर्शक के रूप में आकाशवाणी के पूर्व उद्घोषक एवं महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी सदस्य आनंद सिंह ने गोस्वामी तुलसीदास की कृति श्रीरामचरित मानस के विभिन्न मानवीय मूल्यों पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि माता कैकेई को यथोचित सम्मान देकर  श्रीराम ने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में श्रीराम को महानायक बताते हुए उनके द्वारा माता, पिता, बंधुओं के सम्बन्धों में नये आदर्श प्रस्थापित किये जाने का उल्लेख किया है। इसीलिए आज भी सर्वश्रेष्ठ राज्य की कल्पना में राम राज्य को ही आदर्श माना जाता है।

परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए नागपुर के पूर्व महापौर दयाशंकर तिवारी ने कहा कि आज यदि हिंदू धर्म जीवित है, तो उसमें श्रीरामचरित मानस का बहुमूल्य योगदान है। उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी ने ही सर्वप्रथम अकबर द्वारा किये जाने वाले धर्म परिवर्तन का विरोध किया। उन्होंने प्रभु श्रीराम के वन गमन के मार्ग पर ऋषियों और मुनियों के वैज्ञानिक दृष्टिकोणों एवं ज्ञान बोध प्रसंगों का विशेष उल्लेख किया।

परिसंवाद के संयोजक और महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी सदस्य डॉ. विजेंद्र बत्रा ने श्री पोद्दारेश्वर राम मंदिर के 101 वर्षो के गौरवपूर्ण इतिहास, सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों तथा श्रीराम नवमी के पावन अवसर पर 57 वर्षो से निकलने वाली शोभायात्रा एवं रामायण परीक्षा में विश्व में यहॉं के सर्वाधिक विद्यार्थियों की सहभागिता का विशेष उल्लेख किया। नागपुर की विख्यात भारत गोल्ड मिठाइयों के निर्माता भारत भूषण बुधराजा, आयोजन समिति के विपिन पोद्दार, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्यकारी सदस्य जगदीश थपलियाल और श्रीराम मंदिर के सेवादारों ने आयोजन की सफलता में विशेष रूप से सहयोग दिया। आभार प्रदर्शन आयोजन समिति के प्रमुख पुनीत पोद्दार ने किया। अंत में राष्ट्र गान के साथ परिसंवाद का समापन हृआ।