भारत पैरालंपिक : ऐतिहासिक जीत और प्रेरणा की विजय गाथा

Mon 16-Sep-2024,10:37 PM IST +05:30
भारत पैरालंपिक : ऐतिहासिक जीत और प्रेरणा की विजय गाथा
  • पैरालंपिक खेलों में 29 पदकों के साथ सफलता का नया कीर्तिमान स्थापित।

  • 2024 पेरिस पैरालंपिक, भारत की पैरालंपिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो न केवल देश का अब तक का सबसे सफल प्रदर्शन है, बल्कि पैरा-एथलीटों के प्रति जुझारुपन और समर्पण का भी प्रमाण है। 1968 में भारत के पैरालंपिक पदार्पण की मामूली शुरुआत से लेकर पेरिस में दमदार प्रदर्शन और रिकॉर्ड-तोड़ उपलब्धियों ने पैरालंपिक खेलों में भारत का कद और ऊँचा कर दिया है । 

Madhya Pradesh / Jabalpur :

जबलपुर/

परिचय

भारत का अब तक का सबसे सफल पैरालंपिक अभियान 2024 में पेरिस खेलों में सामने आया, जहां भारतीय एथलीटों ने एक असाधारण उपलब्धि हासिल करते हुए रिकॉर्ड तोड़ 29 पदक हासिल किए - 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य। यह उपलब्धि भारत के पैरालंपिक इतिहास में एक नया शिखर है, जो विश्व मंच पर देश की बढ़ती प्रमुखता को दर्शाता है। पेरिस पैरालंपिक ने न केवल पैरा-स्पोर्ट्स में भारत की उल्लेखनीय वृद्धि को रेखांकित किया है, बल्कि पैरालंपिक के व्यापक विकास को भी उजागर किया है।

पैरालंपिक की उत्पत्ति 29 जुलाई, 1948 को हुई, जब डॉ. लुडविग गुट्टमैन ने स्टोक मैंडेविल खेल का आयोजन किया - जो व्हीलचेयर खिलाड़ियों के लिए एक अभूतपूर्व कार्यक्रम था। तीरंदाजी में केवल 16 घायल सैनिकों और महिलाओं की भागीदारी वाली इस मामूली प्रतियोगिता ने अंततः पैरालंपिक खेलों के लिए मंच तैयार किया, जिससे दिव्यांग एथलीटों के लिए वैश्विक स्तर पर अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए एक मंच तैयार हुआ।

इन साधारण शुरुआतों से, पैरालंपिक आंदोलन विकसित हुआ, 1960 में रोम में पहले आधिकारिक खेलों का आयोजन हुआ, जिसमें 23 देशों के 400 खिलाड़ी शामिल हुए। तब से, अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (आईपीसी) और अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के बीच एक समझौते के चलते, ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन दोनों पैरालंपिक खेलों में काफी वृद्धि हुई है। हर चार साल में दोनों ओलंपिक समान शहरों में आयोजित किया जाता है, जो खेलों 'बढ़ती प्रतिष्ठा और वैश्विक पहुंच को दर्शाता है।

जहां एक समय भारत के ओलंपिक सफलता में उसकी हॉकी टीम का दबदबा था, वहीं पैरालिंपिक में व्यक्तिगत एथलीटों ने प्रमुखता हासिल करते हुए उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं और देश को गौरव दिलाया है। पेरिस 2024 पैरालंपिक इस क्षेत्र में भारत के विकास का प्रतीक है, जो इसके पैरा-एथलीटों के समर्पण, लचीलेपन और असाधारण उपलब्धियों को उजागर करता है।

पैरालंपिक में भारत का पदार्पण और प्रारंभिक वर्ष

भारत ने 1968 में इज़राइल के तेल अवीव में पैरालंपिक में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की। आठ पुरुषों और दो महिलाओं सहित 10 खिलाड़ियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस ऐतिहासिक यात्रा में देश का प्रतिनिधित्व किया। हालाँकि भारत ने खेलों में कोई पदक नहीं जीता, लेकिन इसने देश के पैरा-एथलीटों को पहला महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय अनुभव प्रदान किया, जिससे वैश्विक पैरालंपिक मंच पर भारत की यात्रा की शुरुआत हुई।

 

 

 

 

 

 

 

भारत ने चार साल बाद1972 में जर्मनी के हीडलबर्ग खेलों में, अपनी पहली पैरालंपिक सफलता हासिल की। पैरा-तैराक मुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी स्पर्धा में 37.331 सेकंड समय का विश्व रिकॉर्ड बनाकर स्वर्ण पदक जीता और इतिहास रच दिया। इस यादगार उपलब्धि के बावजूद, पेटकर का स्वर्ण पदक पैरालंपिक खेलों में भारत का एकमात्र पदक रहा। भारत 42 देशों में से समग्र पदक तालिका में 24वें स्थान पर रहा।

1972 में इस ऐतिहासिक जीत के बाद, पैरालंपिक में भारत की भागीदारी में रुकावटें आईं और देश ने 1976 और 1980 के खेलों में हिस्सा नहीं लिया। 1984 के खेलों तक भारत पैरालंपिक में वापस नहीं लौटा था। यह संस्करण महत्वपूर्ण रहा और भारत ने दो रजत और दो कांस्य पदक हासिल किए ।

भीमराव केसरकर ने पुरुषों की भाला फेंक एल6 में रजत पदक जीता, जबकि जोगिंदर सिंह बेदी ने पुरुषों की शॉट पुट एल 6 में रजत पदक जीता, साथ ही पुरुषों की भाला फेंक एल 6 और पुरुषों की डिस्कस थ्रो एल 6 में दो कांस्य पदक जीते। भारत को पैरालंपिक में अगली सफलता 20 साल बाद 2004 के एथेंस खेलों में मिली। देवेन्द्र झाझरिया ने पुरुषों की भाला फेंक एफ44/46 वर्ग में स्वर्ण पदक जीता और राजिंदर सिंह रहेलू ने पुरुषों की पावरलिफ्टिंग 56 कि.ग्रा. में कांस्य पदक अर्जित किया, जिससे उस संस्करण में भारत के कुल पदकों की संख्या दो हो गई।

 पैरालंपिक खेलों में परिवर्तन का दौर (2012-2020)

वर्ष 2012 से 2020 भारत के पैरालंपिक इतिहास में एक परिवर्तनकारी अध्याय लिखा गया । 2012 लंदन पैरालंपिक में गिरिशा एन गौड़ा के एकमात्र रजत पदक के साथ शुरुआत, उसके बाद 2016 रियो पैरालंपिक में चार पदक और 2020 टोक्यो पैरालंपिक में भारत की प्रभावशाली 19-पदक की सफलता के साथ, इस युग ने भारतीय पैरा-एथलीटों के अटूट समर्पण और अपार प्रतिभा को उजागर किया। विश्व मंच पर उनकी उपलब्धियों ने न केवल पैरालंपिक क्षेत्र में भारत की स्थिति को ऊंचा किया, बल्कि बाधाओं को तोड़कर और नए रिकॉर्ड बनाकर लाखों लोगों को प्रेरित भी किया।

2012 लंदन पैरालंपिक

2012 लंदन पैरालिंपिक में, भारत ने गिरिशा एन गौड़ा के असाधारण प्रदर्शन के माध्यम से अपना एकमात्र पदक हासिल किया। पुरुषों की ऊंची कूद एफ42 श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करते हुए, गौड़ा ने रजत पदक जीता, जो भारतीय एथलेटिक्स के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। टीम के दमदार प्रदर्शन के बावजूद, इन खेलों में यह भारत का एकमात्र पोडियम समापन था। गौड़ा की उपलब्धि ने उनकी उत्कृष्ट एथलेटिक क्षमता को उजागर किया और प्रतिस्पर्धी वैश्विक क्षेत्र में देश के लिए गौरव का क्षण हासिल किया।

2016 रियो पैरालंपिक

2016 रियो पैरालंपिक, पैरालंपिक आंदोलन के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने रिकॉर्ड तोड़ टीवी दर्शकों और 2.1 मिलियन से अधिक मैदान में पहुंचने वाले दर्शकों की सहभागिता के साथ नए मानक स्थापित किए। खेलों में 160 देशों के रिकॉर्ड 4,328 एथलीटों ने भाग लिया, जिसमें 12 दिनों के दौरान 220 विश्व रिकॉर्ड और 432 पैरालंपिक रिकॉर्ड बनाए गए।

रियो 2016 में भारत का प्रदर्शन उल्लेखनीय था, जिसमें देश ने कुल चार पदक जीते। मरियप्पन थंगावेलु ने असाधारण प्रतिभा और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन करते हुए पुरुषों की ऊंची कूद एफ42 में स्वर्ण पदक जीता। वरुण सिंह भाटी ने भी उसी स्पर्धा में भाग लिया और एथलेटिक्स में मजबूत प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक अर्जित किया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

देवेन्द्र झाझरिया ने पुरुषों की भाला फैंक (जेवलिन थ्रो) एफ-46 में स्वर्ण पदक जीतकर खेलों में अपनी सफलता का सफर जारी रखा और भारत के सबसे प्रतिष्ठित पैरालिंपियन के रूप में अपनी पहचान बनाई। इसके अतिरिक्त, दीपा मलिक ने महिला शॉट पुट एफ53 में रजत पदक हासिल किया, जो भारतीय एथलेटिक्स में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इन उपलब्धियों ने पैरालंपिक में न केवल भारत की शान को बढ़ाया है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के होनहार एथलीटों की प्रतिभा का भी लोहा मनवाया ।

 

2020 टोक्यो पैरालंपिक

24 अगस्त से 5 सितंबर, 2021 तक आयोजित टोक्यो-2020 पैरालंपिक एक ऐतिहासिक कार्यक्रम रहा, जिसमें 164 देशों के 4,393 खिलाड़ी (2,547 पुरुष और 1,671 महिलाएं) शामिल हुए थे। इन खेलों में अभूतपूर्व स्तर की प्रतिस्पर्धा और सहभागिता देखी गई, जिसमें दुनिया भर के पैरा-एथलीटों का दमदार प्रदर्शन देखने को मिला । भारत ने इन खेलों में अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 5 स्वर्ण, 8 रजत और 6 कांस्य सहित कुल 19 पदक जीते। इस उल्लेखनीय उपलब्धि ने पैरालंपिक में देश की बढ़ती साख को रेखांकित किया  

अवनी लेखरा ने जीते दो पदक : महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 में एक स्वर्ण और महिलाओं की 50 मीटर राइफल 3 पोजिशन एसएच1 में कांस्य। सुमित अंतिल ने भी असाधारण प्रदर्शन करते हुए पुरुषों की भाला फेंक एफ64 में स्वर्ण पदक जीता।

बैडमिंटन में, प्रमोद भगत और कृष्णा नागर ने क्रमशः पुरुष एकल एसएल3 और पुरुष एकल एसएच6 में स्वर्ण पदक जीते। मनोज सरकार और सुहास यतिराज ने बैडमिंटन में क्रमशः कांस्य और रजत पदक के साथ पदक संख्या में और इज़ाफा किया। निशाद कुमार और मरियप्पन थंगावेलु ने क्रमशः पुरुषों की ऊंची कूद टी47 और टी42 में रजत पदक जीता । पुरुषों की जेवलिन थ्रो एफ46 में देवेंद्र झाझरिया और सुंदर सिंह गुर्जर ने रजत और कांस्य पदक जीता । भारत ने निशानेबाजी ने भी सफलता के झंडे गाढ़े । सिंहराज अधाना और मनीष नरवाल ने पुरुषों की 50 मीटर पिस्टल एसएच1 में स्वर्ण और रजत जीता, और हरविंदर सिंह ने तीरंदाजी में कांस्य पदक जीता। भारत समग्र पदक तालिका में 24वें स्थान पर रहा, जो उसके एथलीटों के असाधारण प्रदर्शन और वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि का प्रमाण है।

2024 पेरिस पैरालिंपिक: एक विजयी मील का पत्थर

28 अगस्त से 8 सितंबर 2024 तक आयोजित पेरिस 2024 पैरालंपिक खेल वैश्विक एथलेटिक कौशल और समावेशिता का एक भव्य उत्सव था। 22 खेलों में प्रतिस्पर्धा करने वाले दुनिया भर के 4,400 खिलाड़ीयों की भागीदारी के साथ, खेलों का आयोजन पेरिस के कुछ सबसे प्रतिष्ठित स्थानों पर किया गया, जिनमें एफिल टॉवर, चातेऊ डे वर्सेल्स और ग्रैंड पैलेस शामिल हैं।

भारत के लिए, 2024 पेरिस पैरालंपिक देश के अब तक का सबसे सफल खेल रहे। भारत की भागीदारी नई ऊंचाइयों पर पहुंची, जिसमें रिकॉर्ड 84 एथलीटों ने 12 खेलों में भाग लिया। यह प्रभावशाली प्रतिनिधित्व पैरा-स्पोर्ट्स के लिए देश के बढ़ते समर्थन और खेलो इंडिया कार्यक्रम और टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS) जैसी महत्वपूर्ण सरकारी पहलों के प्रभाव को दर्शाता है। TOPS के तहत, भारत के शीर्ष एथलीटों को ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों की तैयारी के लिए व्यापक समर्थन मिलता है, जिसमें कोर ग्रुप के एथलीटों को प्रति माह  50,000 का आउट-ऑफ-पॉकेट भत्ता (OPA) मिलता है, साथ ही मिशन ओलंपिक सेल (MOC) द्वारा अनुमोदित व्यक्तिगत प्रशिक्षण योजनाओं के लिए पूरी फंडिंग भी मिलती है।

पेरिस 2024 में भारत की उपलब्धियों ने देश के भीतर पैरालंपिक खेलों के प्रति लोगों के बढ़ते रुझान को दर्शाते हैं । एथलीटों के उत्कृष्ट प्रदर्शन ने पैरालंपिक में भारत की जीत की नए द्वार खोले हैं । भारत के पैरा-एथलीटों ने पेरिस खेलों में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए अविश्वसनीय 29 पदक - 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य - अर्जित किए और समग्र पदक तालिका में 18 वां स्थान हासिल किया। यह उपलब्धि भारतीय पैरा-स्पोर्ट्स के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण का प्रतिनिधित्व करती है, जो वैश्विक मंच पर भारतीय एथलीटों की अदम्य क्षमता को प्रदर्शित करती है।

पेरिस पैरालंपिक 2024 में विभिन्न खेलों में एथलीटों के शानदार प्रदर्शन से भारत की झोली में पदकों की बरसात हुई। अवनि लेखारा ने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच1 में स्वर्ण पदक जीता, जबकि नितेश कुमार ने बैडमिंटन में दबदबा बनाते हुए पुरुष एकल एसएल3 में स्वर्ण पदक जीता। सुमित अंतिल और धरमबीर क्रमशः पुरुष भाला फेंक एफ64 और पुरुष क्लब थ्रो एफ51 में स्वर्ण पदक जीते। तीरंदाजी में हरविंदर सिंह ने पुरुष व्यक्तिगत रिकर्व ओपन में स्वर्ण पदक जीता, जबकि नवदीप सिंह ने पुरुष भाला फेंक एफ41 में जीत हासिल की। सुहास यतिराज ने पुरुष एकल एसएल4 बैडमिंटन स्पर्धा और निशाद कुमार ने पुरुष ऊंची कूद टी47 में रजत पदक अर्जित किया। राकेश कुमार और शीतल देवी ने तीरंदाजी के मिश्रित टीम कंपाउंड ओपन में कांस्य पदक जीता, जिससे भारत का ऐतिहासिक अभियान समाप्त हुआ। कई और एथलीटों की यह जीत भारतीय पैरा-स्पोर्ट्स के लिए एक सामूहिक उपलब्धि बन गई। 2024 पेरिस पैरालंपिक को भारत के खेल इतिहास में एक निर्णायक अध्याय के रूप में याद किया जाएगा, जो एथलीटों की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और खेलों–– में समावेशी उत्कृष्टता के लिए देश की प्रतिबद्धता की पुष्टि करेगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सार

2024 पेरिस पैरालंपिक, भारत की पैरालंपिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो न केवल देश का अब तक का सबसे सफल प्रदर्शन है, बल्कि पैरा-एथलीटों के प्रति जुझारुपन और समर्पण का भी प्रमाण है। 1968 में भारत के पैरालंपिक पदार्पण की मामूली शुरुआत से लेकर पेरिस में दमदार प्रदर्शन और रिकॉर्ड-तोड़ उपलब्धियों ने पैरालंपिक खेलों में भारत का कद और ऊँचा कर दिया है । 

खेलो इंडिया और TOPS जैसी सरकारी पहलों ने इन एथलीटों को सशक्त बनाने, तमाम बाधाओं और चुनौतियों को पार कर वैश्विक मंच पर भारत का परचम लहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है है। अंततः, भारत खेलों में समावेशिता को बढ़ावा देने में अग्रसर है, 2024 के खेलों को एक निर्णायक अध्याय के रूप में याद किया जाएगा - जिसने लाखों लोगों को प्रेरित करते हुए भावी पैरा एथलीटों के लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त किया है।

संदर्भ:

संतोष कुमार/सरला मीना/सौरभ कालिया