Shailaja Paik: दलित इतिहासकार और प्रोफेसर शैलजा पाइक को मिला $8,00,000 का ‘जीनियस ग्रांट’

Fri 04-Oct-2024,07:07 PM IST +05:30
Shailaja Paik: दलित इतिहासकार और प्रोफेसर शैलजा पाइक को मिला $8,00,000 का ‘जीनियस ग्रांट’ Indian-American professor Shailaja Paik
  • "जीनियस ग्रांट," जिसे आधिकारिक तौर पर MacArthur Fellowship कहा जाता है, मैकआर्थर फाउंडेशन द्वारा प्रदान की जाने वाली एक प्रतिष्ठित अनुदान है। इसे "जीनियस ग्रांट" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह उन व्यक्तियों को दिया जाता है जो अपने क्षेत्र में असाधारण रचनात्मकता, समर्पण, और नवीनता दिखाते हैं।

  • इस फेलोशिप के तहत प्रत्येक विजेता को पांच साल की अवधि में लगभग $800,000 की धनराशि मिलती है, जिसे बिना किसी शर्त के उपयोग किया जा सकता है। 

  • इस अनुदान का उद्देश्य प्राप्तकर्ताओं को अपनी रचनात्मक परियोजनाओं पर स्वतंत्र रूप से काम करने का अवसर देना है, ताकि वे वित्तीय बाधाओं से मुक्त होकर अपने क्षेत्र में योगदान जारी रख सकें।

Delhi / New Delhi :

Indian-American professor receives US Genius Grant: शैलजा पाइक, जो इतिहासकार और यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी में प्रोफेसर हैं, को हाल ही में 2024 का प्रतिष्ठित मैकआर्थर फेलोशिप, जिसे "जीनियस ग्रांट" भी कहा जाता है, से सम्मानित किया गया है। इस अवॉर्ड के साथ उन्हें पांच वर्षों में $800,000 की अनुदान राशि प्राप्त होगी। यह वार्षिक फेलोशिप असाधारण उपलब्धियों और क्षमता वाले व्यक्तियों को ही प्रदान की जाती है। पाइक ने अपने शोध में जाति, लिंग और कामुकता के अंतरसंबंधों का अध्ययन किया है, विशेषकर दलित महिलाओं के जीवन पर। उनके काम ने आधुनिक भारत में दलित महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और उनके संघर्षों पर नई रोशनी डाली है।

मैकआर्थर फाउंडेशन ने अपनी घोषणा में कहा कि- "दलित महिलाओं के बहुआयामी अनुभवों पर अपने फोकस के माध्यम से पाइक जातिगत भेदभाव की स्थायी प्रकृति और अस्पृश्यता को बनाए रखने वाली ताकतों को स्पष्ट करती हैं।"

शैलजा पाइक का शोध मुख्य रूप से महाराष्ट्र के दलित समुदाय की महिलाओं के जीवन पर केंद्रित है। उनकी पहली किताब, Dalit Women's Education in Modern India: Double Discrimination, में उन्होंने दिखाया कि कैसे जाति और लिंग के दोहरे भेदभाव का सामना करते हुए दलित महिलाओं ने शिक्षा और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उनकी नवीनतम किताब, The Vulgarity of Caste: Dalits, Sexuality, and Humanity in Modern India, में पाइक ने तामाशा नृत्यकला में शामिल दलित महिलाओं के जीवन को उजागर किया है। यह कला, जो अक्सर अश्लील मानी जाती है, दलित महिलाओं के लिए आजीविका का महत्वपूर्ण साधन है। पाइक ने दिखाया है कि कैसे इन महिलाओं ने इस कला के माध्यम से सामाजिक रूढ़ियों का विरोध किया है और अपने आत्म-सम्मान को बनाए रखने की कोशिश की है।

पुणे से अमेरिका तक का सफर

शैलजा पाइक पुणे के यरवदा में सिद्धार्थ नगर की टिन वाली झुग्गी बस्तियों में पली-बढ़ी है। शैलजा पाइक का पुणे से अमेरिका तक का सफर प्रेरणादायक है। उनका जन्म एक दलित परिवार में पुणे की एक झुग्गी में हुआ, जहां उन्होंने बचपन में अनेक सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना किया। उनके माता-पिता, विशेष रूप से उनके पिता, ने यह सुनिश्चित किया कि पाइक और उनकी बहनों को शिक्षा मिले, भले ही उन्हें इसके लिए संघर्ष करना पड़ा हो।

पाइक ने पुणे विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की और मुंबई में लेक्चरर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्हें फोर्ड फाउंडेशन से एक फेलोशिप मिली, जिसने उन्हें यूके की वारविक यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया। 2005 में, उन्हें एमोरी यूनिवर्सिटी, अमेरिका में एक फेलोशिप मिली, जिससे उनका शैक्षिक और शोध कार्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ा। आज शैलजा पाइक अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी में प्रोफेसर हैं और दलित महिलाओं के अधिकारों और उनके संघर्षों पर शोध कर रही हैं​।

यूसी न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में, पाइक ने अपनी सफलता का श्रेय शिक्षा के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता को दिया। उन्होंने कहा, "शिक्षा और रोजगार झुग्गी से बाहर निकलने के लिए जादुई छड़ी थे।"

क्या है “जीनियस ग्रांट”

"जीनियस ग्रांट," जिसे आधिकारिक तौर पर MacArthur Fellowship कहा जाता है, मैकआर्थर फाउंडेशन द्वारा प्रदान की जाने वाली एक प्रतिष्ठित अनुदान है। इसे "जीनियस ग्रांट" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह उन व्यक्तियों को दिया जाता है जो अपने क्षेत्र में असाधारण रचनात्मकता, समर्पण, और नवीनता दिखाते हैं।

इस फेलोशिप के तहत प्रत्येक विजेता को पांच साल की अवधि में लगभग $800,000 की धनराशि मिलती है, जिसे बिना किसी शर्त के उपयोग किया जा सकता है। इस अनुदान का उद्देश्य प्राप्तकर्ताओं को अपनी रचनात्मक परियोजनाओं पर स्वतंत्र रूप से काम करने का अवसर देना है, ताकि वे वित्तीय बाधाओं से मुक्त होकर अपने क्षेत्र में योगदान जारी रख सकें।

विजेताओं का चयन किसी आवेदन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं होता, बल्कि विशेषज्ञों और साथियों के नामांकन द्वारा होता है। यह सम्मान विज्ञान, साहित्य, समाजशास्त्र, इतिहास, संगीत, और कला जैसे विभिन्न क्षेत्रों में दिया जाता है।

मैकआर्थर फ़ेलोशिप के अलावा, पाइक को कई अन्य पुरस्कार भी मिले हैं, जिनमें फ्रेडरिक बर्कहार्ट फ़ेलोशिप, स्टैनफोर्ड ह्यूमैनिटीज़ सेंटर फ़ेलोशिप और अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडियन स्टडीज़ फ़ेलोशिप शामिल हैं। पाइक ने कहा कि मैकआर्थर अनुदान उनके निरंतर शोध और लेखन में सहायता करेगा। उन्होंने बताया, "इस फंडिंग से मैं अपना शोध जारी रख पाऊंगी और दलितों के जीवन और जाति व्यवस्था के बारे में दूसरों को शिक्षित कर पाऊंगी।" हाल ही में, उन्हें 2023 जॉन एफ रिचर्ड्स पुरस्कार और द वल्गरिटी ऑफ़ कास्ट के लिए आनंद केंटिश कुमारस्वामी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इस उपलब्धि के साथ, पाइक का काम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जा रहा है, जो जाति-आधारित भेदभाव के मुद्दों को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उनके इस शोध ने दलित महिलाओं की आवाज़ों को मुख्यधारा में लाने में बड़ी सफलता पाई है।