Swami Vivekananda Jayanti: स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में क्यों मानते हैं, जानिए इस लेख में
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स्वामी विवेकानंद का जीवन तब बदला जब वे रामकृष्ण परमहंस से मिले। रामकृष्ण के सान्निध्य में नरेंद्रनाथ को अपने प्रश्नों के उत्तर और जीवन का उद्देश्य मिला। रामकृष्ण ने उन्हें अपना प्रमुख शिष्य माना और उन्हें मानवता की सेवा के लिए प्रेरित किया।
स्वामी विवेकानंद ने भारतीय युवाओं को अपने जीवन में आत्मविश्वास और कर्म का महत्व समझाया। उनके प्रमुख विचार आत्मनिर्भरता है जिसमें उन्होंने संदेश दिया- “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”
स्वामी विवेकानंद ने केवल 39 वर्ष की आयु में 4 जुलाई 1902 को महासमाधि ले ली। अल्पायु में ही उन्होंने जो योगदान दिया, वह अमर है। उनके विचार और शिक्षाएं आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को "राष्ट्रीय युवा दिवस" के रूप में मनाई जाती है। यह दिन भारतीय युवाओं को उनके विचारों और आदर्शों का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि भारत को एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाने में युवाओं की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।
स्वामी विवेकानंद का नाम भारत के महानतम संतों और विचारकों में शुमार है। उन्होंने अपने जीवन और विचारों से न केवल भारतीय समाज बल्कि विश्व मंच पर भी भारत की छवि को गौरवान्वित किया। उनका जीवन प्रेरणा, आत्म-बलिदान और मानव सेवा का अनुपम उदाहरण है। 12 जनवरी, जो स्वामी विवेकानंद की जयंती है, भारत में 'राष्ट्रीय युवा दिवस' के रूप में मनाई जाती है। यह दिन भारतीय युवाओं के लिए उनके प्रेरणादायक विचारों को स्मरण करने का अवसर प्रदान करता है।
प्रारंभिक जीवन
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के एक संपन्न और प्रबुद्ध परिवार में हुआ। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, एक प्रसिद्ध वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। नरेंद्र बचपन से ही बुद्धिमान, साहसी और जिज्ञासु स्वभाव के थे। उनकी माता से उन्हें आध्यात्मिकता का बीज मिला और पिता से तार्किक सोच की क्षमता।
शिक्षा और प्रारंभिक संघर्ष
नरेंद्रनाथ ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से अपनी शिक्षा प्राप्त की। वे दर्शन, साहित्य, विज्ञान और इतिहास में गहरी रुचि रखते थे। बचपन से ही वे आत्मा, ईश्वर और जीवन के उद्देश्य जैसे गूढ़ प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए उत्सुक थे। उनका यह खोजी स्वभाव उन्हें विभिन्न धार्मिक गुरुओं और समाज सुधारकों के पास ले गया।
उनका जीवन तब बदला जब वे रामकृष्ण परमहंस से मिले। रामकृष्ण के सान्निध्य में नरेंद्रनाथ को अपने प्रश्नों के उत्तर और जीवन का उद्देश्य मिला। रामकृष्ण ने उन्हें अपना प्रमुख शिष्य माना और उन्हें मानवता की सेवा के लिए प्रेरित किया।
संन्यास और स्वामी विवेकानंद का उदय
रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद, नरेंद्रनाथ ने संन्यास धारण कर अपना नाम ‘स्वामी विवेकानंद’ रख लिया। उन्होंने अपने गुरु की शिक्षा – "जीव सेवा ही शिव सेवा है" को आत्मसात किया। उन्होंने समाज में फैली जाति-पांति, अज्ञानता और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ आवाज उठाई। विवेकानंद ने अपनी शिक्षा और अनुभव का उपयोग समाज में बदलाव लाने के लिए किया।
शिकागो धर्म संसद और विश्व मंच पर पहचान
1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने भारत और हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। अपने उद्घाटन भाषण की शुरुआत "सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका" कहकर उन्होंने सबका दिल जीत लिया। उनकी वाणी, विचार और आत्मविश्वास ने भारत की संस्कृति और आध्यात्मिकता की गूंज पूरी दुनिया में पहुंचाई।
उन्होंने धर्म, मानवता, और सह-अस्तित्व के महत्व पर जोर दिया। उनके विचारों ने पश्चिमी दुनिया को भारतीय संस्कृति और दर्शन के प्रति नया दृष्टिकोण दिया।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
स्वामी विवेकानंद ने 1897 में "रामकृष्ण मिशन" की स्थापना की। इस मिशन का उद्देश्य मानव सेवा के माध्यम से आध्यात्मिक उत्थान करना था। रामकृष्ण मिशन ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और समाज सेवा के क्षेत्रों में अनेक कार्य किए। यह मिशन आज भी स्वामी विवेकानंद के विचारों को आगे बढ़ा रहा है।
उनके विचार और शिक्षाएं
स्वामी विवेकानंद ने भारतीय युवाओं को अपने जीवन में आत्मविश्वास और कर्म का महत्व समझाया। उनके कुछ प्रमुख विचार इस प्रकार हैं:
- आत्मनिर्भरता: “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”
- धर्म और मानवता: वे मानते थे कि हर धर्म का उद्देश्य मानवता की सेवा है।
- शिक्षा का महत्व: शिक्षा को वे चरित्र निर्माण का साधन मानते थे।
- नारी सशक्तिकरण: वे महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाने के प्रबल समर्थक थे।
- योग और ध्यान: मानसिक और शारीरिक विकास के लिए वे योग और ध्यान को महत्वपूर्ण मानते थे।
जीवन के संघर्ष और योगदान
स्वामी विवेकानंद का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा था। उनके जीवन के प्रारंभिक वर्षों में परिवार आर्थिक संकट से गुजरा। संन्यास के बाद भी उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी अटूट इच्छा शक्ति और समर्पण ने उन्हें हर चुनौती से उबरने में मदद की।
उन्होंने अपनी यात्राओं के दौरान गरीबों, दलितों और उपेक्षितों की समस्याओं को करीब से देखा और उनके उत्थान के लिए जीवन समर्पित किया। वे मानते थे कि जब तक समाज का हर वर्ग शिक्षित और आत्मनिर्भर नहीं होगा, तब तक राष्ट्र का विकास संभव नहीं है।
अंतिम दिन
स्वामी विवेकानंद ने केवल 39 वर्ष की आयु में 4 जुलाई 1902 को महासमाधि ले ली। अल्पायु में ही उन्होंने जो योगदान दिया, वह अमर है। उनके विचार और शिक्षाएं आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।
12 जनवरी का महत्व
स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को "राष्ट्रीय युवा दिवस" के रूप में मनाई जाती है। यह दिन भारतीय युवाओं को उनके विचारों और आदर्शों का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि भारत को एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बनाने में युवाओं की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।
इस प्रकार स्वामी विवेकानंद का जीवन प्रेरणा, ज्ञान और सेवा का संगम था। उनकी शिक्षाएं हर व्यक्ति को अपने जीवन में एक उद्देश्य और आत्मबलिदान का महत्व समझने के लिए प्रेरित करती हैं। वे केवल एक संत नहीं, बल्कि एक ऐसे विचारक थे जिन्होंने भारतीय समाज और विश्व मंच पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनका जीवन हमें यह संदेश देता है कि मानवता की सेवा ही सच्चा धर्म है।