जानिए जेवर एयरपोर्ट, नोएडा को
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नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का विकास चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है। इसमें कुल 6 रनवे होंगे, जिनमें से पहले चरण में 2 रनवे बनाए जाएंगे। 2024 तक पहले चरण का काम पूरा होने की उम्मीद है, जिससे सालाना लगभग 1.2 करोड़ यात्रियों की क्षमता होगी। जैसे-जैसे अन्य चरण पूरे होंगे, इसकी क्षमता बढ़ती जाएगी।
जेवर एयरपोर्ट हवाई अड्डा भारत का सबसे ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट बनने की दिशा में काम कर रहा है, जहां सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग किया जाएगा।, ग्रीन बिल्डिंग स्टैंडर्ड्स का पालन करते हुए इसका निर्माण किया जा रहा है ताकि कार्बन फुटप्रिंट कम किया जा सके।
नोएडा/ जेवर एयरपोर्ट जिसे आधिकारिक तौर पर नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट (NIA) के नाम से जाना जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गौतम बुद्ध नगर जिले के जेवर में स्थित है। यह दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में बनने वाला दूसरा हवाई अड्डा है, जो इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाद एक महत्वपूर्ण हब के रूप में काम करेगा। इस एयरपोर्ट का निर्माण यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (YEIDA) के अधीन हो रहा है, और इसका उद्देश्य उत्तर भारत के यातायात को संभालना और दिल्ली हवाई अड्डे के भार को कम करना है।
जेवर एयरपोर्ट परियोजना का महत्व-
नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट भारत के सबसे बड़े और अत्याधुनिक हवाई अड्डों में से एक बनने की ओर अग्रसर है। यह परियोजना न केवल उत्तर प्रदेश के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह, भारत की एविएशन इंडस्ट्री को बूस्ट देगा।, दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते हवाई यातायात को नियंत्रित करेगा।, अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को एक और बड़ा विकल्प प्रदान करेगा।, औद्योगिक और व्यापारिक विकास को बढ़ावा देगा, विशेष रूप से यमुना एक्सप्रेसवे के आसपास के क्षेत्रों में।
जेवर एयरपोर्ट परियोजना का निर्माण और डिजाइन-
नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का निर्माण Zurich Airport International AG द्वारा किया जा रहा है, जिसने इसके विकास और संचालन के लिए अनुबंध हासिल किया है। इसका डिजाइन अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित होगा, और यह पर्यावरण अनुकूल उपायों के साथ बनाया जा रहा है। हवाई अड्डे को सस्टेनेबल एयरपोर्ट के रूप में विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें ऊर्जा और जल संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का विकास चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है। इसमें कुल 6 रनवे होंगे, जिनमें से पहले चरण में 2 रनवे बनाए जाएंगे। 2024 तक पहले चरण का काम पूरा होने की उम्मीद है, जिससे सालाना लगभग 1.2 करोड़ यात्रियों की क्षमता होगी। जैसे-जैसे अन्य चरण पूरे होंगे, इसकी क्षमता बढ़ती जाएगी।
जेवर एयरपोर्ट परियोजना की मुख्य विशेषताएं-
पहले चरण में हवाई अड्डे की क्षमता 12 मिलियन यात्रियों की होगी, जबकि परियोजना के अंतिम चरण में यह संख्या 70-100 मिलियन यात्रियों तक पहुंचने की योजना है। इसके साथ-साथ जेवर एयरपोर्ट एक प्रमुख कार्गो हब के रूप में भी विकसित होगा, जिससे व्यापार और उद्योग को भारी लाभ मिलेगा। यहाँ से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही तरह के कार्गो की आवाजाही होगी।
जेवर एयरपोर्ट की कनेक्टिविटी-
दिल्ली-एनसीआर के साथ-साथ नोएडा और ग्रेटर नोएडा से सीधी कनेक्टिविटी के लिए यमुना एक्सप्रेसवे के जरिए जुड़ा होगा।, दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (DMIC) और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के निकट होने के कारण यह एक प्रमुख परिवहन केंद्र बनेगा। इसके साथ ही दिल्ली मेट्रो की नोएडा एयरपोर्ट मेट्रो लिंक के जरिए भी इस एयरपोर्ट को जोड़ा जाएगा।
जेवर एयरपोर्ट परियोजना का पर्यावरणीय दृष्टिकोण-
जेवर एयरपोर्ट हवाई अड्डा भारत का सबसे ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट बनने की दिशा में काम कर रहा है, जहां सौर ऊर्जा का अधिकतम उपयोग किया जाएगा।, ग्रीन बिल्डिंग स्टैंडर्ड्स का पालन करते हुए इसका निर्माण किया जा रहा है ताकि कार्बन फुटप्रिंट कम किया जा सके।
जेवर एयरपोर्ट परियोजना का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव-
जेवर एयरपोर्ट परियोजना से हजारों नौकरियों के सृजन की उम्मीद है, जिससे क्षेत्रीय विकास और लोगों के जीवन स्तर में सुधार होगा। निर्माण के दौरान हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा, और हवाई अड्डा पूरी तरह से चालू होने के बाद भी विभिन्न क्षेत्रों में स्थायी रोजगार के अवसर पैदा होंगे।, हवाई अड्डे के आसपास के क्षेत्रों में औद्योगिक और व्यावसायिक हब विकसित होने की संभावना है। इससे नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे के क्षेत्रों में आवासीय और वाणिज्यिक संपत्ति की मांग बढ़ेगी। जेवर एयरपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार के लिए बड़े पैमाने पर राजस्व उत्पन्न करेगा। यह अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों प्रकार की उड़ानों के लिए एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरेगा।
जेवर एयरपोर्ट परियोजना चुनौतियाँ और समाधान-
जेवर एयरपोर्ट परियोजना के लिए बड़ी मात्रा में भूमि की आवश्यकता थी, जिससे कुछ स्थानीय किसानों और भूमि मालिकों के बीच असंतोष था। हालांकि, सरकार ने उन्हें उचित मुआवजा देकर इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयास किया है।
जेवर एयरपोर्ट परियोजना की समय-सीमा-
कोविड-19 महामारी के कारण कुछ समय के लिए निर्माण कार्यों में देरी हुई, लेकिन अब परियोजना तेजी से आगे बढ़ रही है। 2024 में पहले चरण के पूरा होने की उम्मीद है। इसके साथ ही जेवर एयरपोर्ट परियोजना की वित्तीय चुनौतियाँ भी थी क्योंकि इस परियोजना की कुल लागत 75,000 करोड़ रुपये से भी अधिक होने का अनुमान है। सरकार और निजी साझेदार इस वित्तीय चुनौती को पूरा करने के लिए विभिन्न स्रोतों से धन जुटा रहे हैं।
जेवर एयरपोर्ट न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना है। 2024 में इसके पहले चरण के पूरा होने के बाद, यह दिल्ली-एनसीआर के यात्रियों और उद्योगों को एक और बड़ा विकल्प प्रदान करेगा। इसके साथ ही यह क्षेत्रीय विकास, रोजगार और आर्थिक समृद्धि के नए द्वार खोलेगा। यह परियोजना भारत के एविएशन सेक्टर को नई ऊँचाइयों पर ले जाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।