लिंगराज मंदिर
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शिव रात्रि के अलावा चंदन यात्रा त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।
लिंगराज मंदिर की ऊंचाई 55 मीटर है और इस पर की गयी नक्काशी काबिल-ए- तारीफ है।
मंदिर का वर्तमान आकार सन् 1090-1104 के मध्य दिया गया।
उड़ीसा/भगवान शिव को समर्पित लिंगराज मंदिर भारत देश के उड़ीसा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। लिंगराज मंदिर की गिनती भुवनेश्वर शहर के मुख्य मंदिरों में की जाती है इसका एक कारण यह भी है कि यह काफी प्राचीन मंदिर है। भारत देश में भुवनेश्वर शहर की एक धार्मिक उपयोगिता है। भुवनेश्वर को पूर्व का काशी भी कहा जाता है। यह शहर प्राकृतिक रूप से धनी तो है ही और इसके साथ-साथ यह शहर अनेक भव्य और शक्तिशाली मंदिरों से सुसज्जित है।
लिंगराज मंदिर अथवा त्रिभुवनेश्वर मंदिर का निर्माण ललाटेडुकेशरी ने 11वीं शताब्दी मेंकरवाया था। लिंगराज मंदिर के वर्तमान का स्वरूप ललाटेडुकेशरी द्वारा निर्मित किए गए मंदिर से भिन्न है। मंदिर का वर्तमान आकार सन् 1090-1104 के मध्य दिया गया। लिंगराज मंदिर की वास्तुशैली उच्च दर्जे की है। हालांकि लिंगराज मंदिर का वर्तमान आकार का कार्य सन् 1090 से 1104 ईस्वी के मध्य हुआ लेकिन इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से अधिक पुराने हैं। लिंगराज मंदिर भारत के प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों में से एक है। छठी शताब्दी के मध्य मिले कुछ अभिलेखों में लिंगराज मंदिर की चर्चा की गयी है। इस मंदिर में गैर हिन्दू संप्रदाय का प्रवेश वर्जित है। लिंगराज मंदिर की ऊंचाई 55 मीटर है और इस पर की गयी नक्काशी काबिल-ए- तारीफ है। इस मंदिर की एक धार्मिक मान्यता भी है जो मंदिर को भक्तो से बांधे रखती है। लिंगराज मंदिर वह स्थान है जहां देवी पार्वती ने लिट्टी और वसा नाम के दो राक्षसों का वध किया था। पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार लिंगराज मंदिर से एक नदी होकर गुजरती है जिसका पानी सीधा मंदिर के भीतर रखे बिन्दुसार टैंक में जाता है। लोगों की यह आस्था है कि इसका पानी पीकर लोगों के सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं। स्थानीय लोगों के लिए यह पानी किसी अमृत से कम नहीं है। लिंगराज मंदिर में मौजूद मूर्ति की पूजा शिव तथा विष्णु दोनों रूप में की जाती है।
शिवरात्रि के समय में यह मंदिर अपनी सुंदरता की चरम सीमा पर होता है। सारा माहौल भक्तिमय हो जाता है। दूर दराज से भक्त इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। लोग उपवास रखते हैं और भगवान लिंगराज की पूजा अर्चना बेलपत्री चढ़ा कर करते हैं। रात भर भक्तों का जगराता होता है। शिव रात्रि के अलावा चंदन यात्रा त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। यह त्योहार 22 दिनों तक चलता है। भक्तगण अशोकअष्टमी के दिन लिंगराज रथ के साथ यात्रा निकालते हैं। इस यात्रा में सभी भक्त गण देवताओं को रथ में बैठकर रामेश्वर के देवला मंदिर की ओर भक्तगन प्रस्थान करते हैं। देवताओं का रथ सुंदर फूलों से सजाया जाता है। इस रथ यात्रा की रोचक बात यह भी है कि इस यात्रा में भगवान लिंगराज के साथ उनकी बहन रुक्मणी को भी ले जाया जाता है। चुनकि इस मंदिर के भीतर गैर हिन्दू संप्रदाय का प्रवेश वर्जित है किन्तु यह लोग मंदिर के बाहर से दर्शन कर सकते हैं। इसके लिए मंदिर के समीप ही एक चबूतरे का निर्माण किया गया है जिस पर बैठ वह मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। इस मंदिर के कुछ कठोर नियम भी हैं जिनके अनुसार मासिक धर्म के समय स्त्रियॉं, बिना स्नान किए हुए व्यक्ति और जिनके घर में यदि बीते 12 दिन में किसी की मृत्यु हुई हो उनका प्रवेश बड़ी कठोरता से वर्जित है। लिंगराज मंदिर में भगवान शिव के अलावा गणेश, कार्तिकेय और गौरी के सुंदर मंदिर हैं। यह मंदिर शहर के मध्य स्थ्ति है जिसके कारण इसे भुवनेश्वर शहर का लैंडमार्क भी कहा जाता है। प्रति वर्ष लाखों की संख्या में पर्यटक इस सुंदर और विस्मयकारी मंदिर के दर्शन करने आते हैं।