जानिए झारखंड की विरासत को, क्यों खास है यहां की भूमि?

Fri 29-Nov-2024,11:39 AM IST +05:30

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जानिए झारखंड की विरासत को, क्यों खास है यहां की भूमि? Jharkhand State of India
  • महाजनपद काल में इसे "किकट" और बाद में "चुटिया नागवंश" और "मुण्डा-हो" संस्कृति का केंद्र कहा गया।

  • झारखंड के अधिकांश हिस्से में जंगल, खनिज संसाधन और पहाड़ी क्षेत्र पाए जाते हैं।

  • वहीं बिरसा मुंडा का उलगुलान (1899-1900) का आंदोलन आदिवासियों के अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बना।

Jharkhand / Ranchi :

झारखंड भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है, जो अपनी समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों, जनजातीय सांस्कृतिक धरोहर और संघर्षमय इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। 15 नवंबर 2000 को झारखंड, बिहार से अलग होकर भारत का 28वां राज्य बना। यह दिन प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के जन्मदिवस के रूप में भी जाना जाता है। झारखंड के निर्माण की यात्रा में सामाजिक-राजनीतिक संघर्ष, आदिवासी आंदोलन और प्राकृतिक संसाधनों के अधिकार की मांग शामिल रही है।

झारखंड क्षेत्र का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह क्षेत्र हड़प्पा सभ्यता के समकालीन माना जाता है। हजारीबाग में 5000 साल पुराने गुफा चित्र मिले हैं, और 1400 ईसा पूर्व के लोहे के औजार और मिट्टी के बर्तन मिले हैं। महाजनपद काल में इसे "किकट" और बाद में "चुटिया नागवंश" और "मुण्डा-हो" संस्कृति का केंद्र कहा गया। इस क्षेत्र में सदियों से आदिवासी समुदाय जैसे मुण्डा, संथाल, उरांव और हो निवास करते आए हैं। उनकी संस्कृति, परंपराएं और स्वतंत्रता की भावना ने हमेशा बाहरी आक्रमणकारियों का विरोध किया।

क्षेत्रफल की दृष्टि से झारखण्ड भारत का 15 वां सबसे बड़ा राज्य है। इसकी सीमाएँ पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार और दक्षिण में ओडिशा को छूती है। इस राज्य की आधिकारिक भाषा हिन्दी है। पूरे भारत में वनों के अनुपात में झारखंड एक अग्रणी राज्य माना जाता है।

दो शब्दों से मिलकर बना झारखंड में "झार" का अर्थ है "जंगल" या वनस्पति, और "खंड" का अर्थ है “भूमि” या "क्षेत्र"। इस प्रकार, "झारखंड" का अर्थ हुआ "वन भूमि।" झारखंड क्षेत्र प्राचीन काल से घने जंगलों और आदिवासी समुदायों के लिए प्रसिद्ध रहा है। इतिहास में झारखंड को "वनांचल" के नाम से भी जाना जाता था। छोटा नागपूर पठार पर बसा होने के कारण इसे छोटा नागपूर प्रदेश भी कहा जाता था। बाद में, जब झारखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला तो इसे इस ऐतिहासिक और भौगोलिक पहचान के आधार पर "झारखंड" नाम दिया गया। झारखंड के अधिकांश हिस्से में जंगल, खनिज संसाधन और पहाड़ी क्षेत्र पाए जाते हैं। इन प्राकृतिक विशेषताओं की वजह से यह नाम क्षेत्र की प्रकृति और विशेषताओं को पूरी तरह दर्शाता है।

ब्रिटिश शासन और आदिवासी आंदोलन

1765 के बाद यहां ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का प्रभाव पड़ा। ब्रिटिश शासन के दौरान झारखंड के प्राकृतिक संसाधनों, जैसे खनिज और वन संपदा का बड़े पैमाने पर दोहन किया गया। इसके साथ ही, ब्रिटिश प्रशासन ने यहां की आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को सौंप दिया, जिससे आदिवासियों में असंतोष बढ़ा। संथाल हूल (1855-56) जिसमें सिद्धो-कान्हू और चांद-भैरव जैसे नेताओं ने ब्रिटिश और जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन किया। वहीं बिरसा मुंडा का उलगुलान (1899-1900) का आंदोलन आदिवासियों के अधिकारों और संस्कृति की रक्षा के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बना। बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान हो गए और उनको "धरती आबा" के रूप में याद किया जाने लगा।

झारखंड को अलग राज्य बनाने की आवश्यकता क्यों

झारखंड की जनजातीय संस्कृति, भाषाएं और परंपराएं बिहार से भिन्न थीं। स्वतंत्रता के बाद भी झारखंड में प्राकृतिक संसाधनों का लगातार शोषण होता रहा। झारखंड भारत का एक प्रमुख खनिज क्षेत्र है, लेकिन इसका लाभ झारखंड के निवासियों को नहीं मिल पा रहा था। झारखंड के बुनियादी ढांचे जैसे- शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विकास क्षेत्रों में बिहार के अन्य हिस्सों से पीछे था। इसके अलावा राजनीतिक उपेक्षा भी इसकी वजह रही जिसमें झारखंड की समस्याओं को राज्य और केंद्र सरकार द्वारा लगातार नजरअंदाज किया जाता रहा था।

कैसे हुई झारखंड राज्य की स्थापना

स्वतंत्रता के बाद भी झारखंड क्षेत्र का शोषण जारी रहा। खनिज संपदा से भरपूर होने के बावजूद यह क्षेत्र विकास से वंचित रहा। यहां की जनजातीय जनता शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों में पीछे छूट गई। 1950 और 60 के दशक में झारखंड राज्य की मांग ने जोर पकड़ा। झारखंड राज्य की मांग का इतिहास सौ साल से भी अधिक पूराना है। 1938 में जयपाल सिंह जो भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे, ने पहली बार तत्कालीन बिहार के दक्षिणी जिलों को मिलाकर नया राज्य बनाने का प्रस्ताव रखा। जयपाल सिंह मुण्डा के नेतृत्व में 1949 में झारखंड पार्टी नाम की राजनीतिक दल का गठन हुआ जिसने झारखंड के आदिवासियों की समस्याओं को उठाया। हालांकि, 1963 में इस पार्टी का विलय कांग्रेस में हो गया। 1972 में शिबू सोरेन और अन्य नेताओं ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। इसने झारखंड राज्य के गठन के लिए संगठित आंदोलन चलाया। झारखंड छात्र संघ के छात्रों और युवाओं ने भी झारखंड आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1990 के दशक में झारखंड राज्य आंदोलन ने गति पकड़ी। 1995 में झारखंड क्षेत्रीय परिषद की स्थापना हुई। अंततः 1998 में बिहार विधानसभा ने झारखंड के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी। 15 नवंबर 2000 को भारतीय संसद के झारखंड पुनर्गठन अधिनियम के तहत झारखंड एक अलग राज्य बनकर उभरा जिसकी राजधानी रांची है।

झारखंड प्राकृतिक संसाधनों जैसे कोयला, लौह अयस्क और बॉक्साइट के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा अभ्रक, चुना पत्थर, तांबा, ग्रेफ़ाइट और कई अन्य खनिज पदार्थ यहाँ पाए जाते हैं। यहां के प्रमुख उद्योग इस्पात, खनन और ऊर्जा हैं। राज्य में टाटा स्टील (जमशेदपुर) और बोकारो स्टील प्लांट जैसे उद्योग देश के आर्थिक विकास में योगदान देते हैं।

झारखंड में भारत का पहला और विश्व का पाँचवां सबसे बड़ा इस्पात कारखाना टाटा स्टील जमशेदपुर में और दूसरा बड़ा इस्पात कारखाना बोकारो स्टील प्लांट बोकारो में है। इसके अलावा भारत का सबसे बड़ा आयुध कारखाना झारखंड के गोमिया में स्थित है और मीथेन गैस का पहला प्लांट भी झारखंड में है। धनबाद, जमशेदपुर और बोकारो जैसे शहर आर्थिक और औद्योगिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं।

झारखंड भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक राज्य है। यहाँ देश के कुल कोयला भंडार का लगभग 25% पाया जाता है। झारखंड में प्रमुख कोयला क्षेत्र झरिया, बोकारो, जामाडोबा और पकरी बरवाडीह आदि है। झारखंड भारत का दूसरा सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक राज्य है। यहाँ देश के कुल लौह अयस्क भंडार का लगभग 17% पाया जाता है जिनमें नोआमुंडी, लोहरदगा और मधुपुर आदि क्षेत्र शामिल हैं। यही नहीं, झारखंड भारत का सबसे बड़ा अभ्रक उत्पादक राज्यों में से एक है। अभ्रक उत्पादक क्षेत्रों में कोडरमा, गिरिडीह और रांची आदि शामिल है। इसके साथ ही झारखंड भारत का दूसरा सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक राज्य है। यहाँ देश के कुल बॉक्साइट भंडार का लगभग 10% पाया जाता है। यहाँ बॉक्साइट के प्रमुख क्षेत्रों में चाईबासा और खूंटी है। झारखंड के खनिज भंडार राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन खनिजों से राज्य को भारी आय होती है, और ये राज्य के औद्योगिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

झारखंड अपनी वानस्पतिक और जैव विविधताओं के लिए भी प्रसिद्ध है। बेतला राष्ट्रीय अभयारण्य (पलामू), जो डाल्टेनगंज से 25 किमी दूर स्थित है, 250 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है। यह बाघ, हाथी, साम्भर, चित्तीदार हिरण, अजगर और अन्य वन्य जीवों का आवास है। इसे 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया और 1986 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।

झारखण्ड में कुल 24 जिले हैं जिन्हें 5 प्रमंडलों में बांटा गया है। जनगणना 2011 के अनुसार झारखण्ड की आबादी लगभग 3.29 करोड़ है। झारखंड के त्यौहार इसकी समृद्ध संस्कृति और जनजातीय परंपराओं को दर्शाते हैं। यहाँ के त्यौहार प्राकृतिक, धार्मिक और कृषि आधारित होते हैं जिनमें सरहुल, करम पर्व, माघ परब, फगुआ (होली), सोहराय, टुसू पर्व आदि शामिल हैं। यहां के नृत्य आदिवासी जीवनशैली, परंपराओं और त्यौहारों का हिस्सा हैं जिनमें छउ नृत्य, सरहुल नृत्य, डोमकच नृत्य, पाइका नृत्य, झूमर नृत्य और नगपुरी नृत्य हैं। इन त्योहारों और नृत्यों से झारखंड की सांस्कृतिक विरासत की झलक मिलती है, जो प्रकृति और सामूहिक जीवन के प्रति प्रेम को दर्शाती है।

झारखंड में शिक्षा की स्थिति लगातार सुधार की ओर अग्रसर है, उच्च शिक्षा के लिए राज्य में कई विश्वविद्यालय और कॉलेज हैं, जिनमें रांची विश्वविद्यालय, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, आईआईटी (आईएसएम) धनबाद, एनआईटी जमशेदपुर आदि प्रमुख हैं।

झारखंड प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में नेतरहाट जो "झारखंड की रानी" के नाम से प्रसिद्ध। यहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त के सुंदर दृश्य देखे जा सकते हैं। हुंडरू जलप्रपात, स्वर्णरेखा नदी पर स्थित झरना है, जिसकी ऊंचाई 98 मीटर है। धार्मिक स्थल में बैद्यनाथ धाम (देवघर) है जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, शिवभक्तों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। राजरप्पा मंदिर, छिन्नमस्तिका देवी का प्राचीन मंदिर है जो तीरथ और भैरवी नदी का संगम है। वहीं इटखोरी, बौद्ध और हिंदू धर्म का सांस्कृतिक संगम है। पालामू किला, मुगलकालीन स्थापत्य कला का उदाहरण है तो जुबली पार्क, औद्योगिक शहर जमशेदपुर में स्थित, हरा-भरा उद्यान है। इसके अलावा दशम जलप्रपात, पारसनाथ पहाड़ी जो सबसे ऊंची पहाड़ी (1365 मीटर) है और जैन धर्म का पवित्र स्थल है, जोन्हा जलप्रपात जो गौतम बुद्ध से संबंधित, "गौतमधारा" के नाम से प्रसिद्ध है आदि आदि कई घूमने के लिए जगह यहाँ मौजूद हैं।

झारखंड में चुनौतियां और संभावनाएं

झारखंड को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यहां के लोग आज भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। दूसरी बड़ी समस्या नक्सलवाद है जो राज्य के कई क्षेत्रों को प्रभावित करता है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त बेरोजगारी और मजदूरों का पलायन, बुनियादी ढांचे जैसे सड़क, बिजली और पेयजल जैसी सुविधाओं की कमी, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का असमान वितरण आदि अन्य चुनौतियों का सामना आज झारखंड कर रहा है। हालांकि, झारखंड के पास पर्यटन, कृषि और खनिज संसाधनों के क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं। खनन और उद्योगों से राजस्व और रोजगार में वृद्धि हुई है। कृषि आधारित होने के कारण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला। जैविक खेती और वनों के उत्पादों से आय बढ़ी है।

झारखंड का गठन न केवल राजनीतिक निर्णय था, बल्कि यह क्षेत्रीय पहचान, संसाधनों के अधिकार, और सामाजिक न्याय की एक ऐतिहासिक लड़ाई का परिणाम था। आज झारखंड राज्य अपने समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से एक उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर है। इस राज्य की कहानी संघर्ष, आत्मनिर्भरता और विकास की प्रेरणा देती है।