ताजमहल- महान प्रेम का प्रतीक

Sat 07-Sep-2024,01:29 AM IST +05:30

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ताजमहल- महान प्रेम का प्रतीक
  • मुगल बादशाह शाहजहां का जन्म 5 जनवरी, 1592 ई. को लाहौर में मुगल सम्राट जहांगीर और जगत गोसाई (जोधाबाई) के पुत्र के रुप में हुआ।

  • 1627 ईसवी में मुगल सम्राट जहांगीर की मौत के बाद बेहद कम उम्र में उनके पोते खुर्रम को मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी के रुप में चुन लिया गया।

  • शाहजहां ने अपनी बुद्धिमत्ता और कुशल रणनीतियों के चलते 1628 से 1658 तक करीब 30 साल शासन किया।

  • सन 1612 में बादशाह शाहजहां का निकाह आसफ खान की पुत्री अरजुमंद बानो से हुआ जिसे बाद में मुमताज़ के नाम से जाना गया। जिसे शाहजहां ने मलिका-ए-जमानी की उपाधि प्रदान की थी।

Madhya Pradesh / Jabalpur :

आगरा/सच्चे प्रेमी के तौर पर विश्व भर में अपनी पहचान बनाने वाले मुगल बादशाह शाहजहां जिन्होंने प्रेम के प्रतीक के रूप में ताजमहल बना दिया। मुगल बादशाह शाहजहां का जन्म 5 जनवरी, 1592 ई. को लाहौर में मुगल सम्राट जहांगीर और जगत गोसाई (जोधाबाई) के पुत्र के रुप में हुआ। जोधाबाई, जोधपुर के शासक राजा उदयसिंह की बेटी थी। मुगल सम्राट अकबर शाहजहां के दादा थे। जिन्होंने अपने पोते शाहजहां को सबसे पहले शहजादा खुर्रम कहकर बुलाया था। इसी से बचपन में शाहजहां का नाम खुर्रम पड़ा।

खुर्रम शब्द का अर्थ होता है खुशी। शाहजहां को बचपन में अपने दादा अकबर से बहुत ज्यादा लगाव था। क्योंकि अकबर की बेगम रुकैया की कोई संतान नहीं थी इसीलिए खुर्रम के पैदा होने के छठवें ही दिन उसे बेगम रुकैया के हवाले कर दिया गया, इसी कारण उन्होंने खुर्रम को गोद ले लिया। खुर्रम की परवरिश अकबर ने की थी। एक तरफ खुर्रम के दादा अकबर खुद अनपढ़ थे वहीं दूसरी ओर अकबर ने शाहजहां को महान योद्धा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

1627 ईसवी में मुगल सम्राट जहांगीर की मौत के बाद बेहद कम उम्र में उनके पोते खुर्रम को मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी के रुप में चुन लिया गया और सन 1628 ईसवी में खुर्रम का राज्याभिषेक आगरा में किया गया। तख्त संभालने के बाद खुर्रम का नाम शाहजहां हो गया। शाहजहां ने अपनी बुद्धिमत्ता और कुशल रणनीतियों के चलते 1628 से 1658 तक करीब 30 साल शासन किया। उनके शासनकाल को मुगल शासन का स्वर्ण युग और भारतीय सभ्यता का सबसे समृद्ध काल कहा गया है।

शाहजहां- मुमताज़ की अमर प्रेम कहानी

सन 1612 में बादशाह शाहजहां का निकाह आसफ खान की पुत्री अरजुमंद बानो से हुआ जिसे बाद में मुमताज़ के नाम से जाना गया। जिसे शाहजहां ने मलिका-ए-जमानी की उपाधि प्रदान की थी। इनके अलावा भी शौकीन शाहजहां की कई और पत्नियां थी जिनमें मुमताज़ उनकी तीसरी पत्नी थी।

शाहजहां से प्रेम

शाहजहां, मुमताज़ बेगम से सबसे ज्यादा प्रेम करते थे। वो उनकी सबसे प्रिय पत्नी थी। शाहजहां ने उनकी खूबसूरती से प्रभावित होकर उनका नाम अरजुमंद बानो बेगम से बदलकर मुमताज रख दिया था, जिसका अर्थ होता है- महल का सबसे कीमती नगीना। मुमताज़ बेगम और शाहजहां के 13 बच्चे थे। जून 1631 में मुमताज बेगम की अपनी 14वें बच्चे को जन्म देते वक्त प्रसव पीड़ा की वजह से मृत्यु हो गयी। शाहजहां अपनी बेगम मुमताज़ की मृत्यु के उपरांत 2 साल बाद तक शोक मनाते रहे थे। इस दौरान रंगीन मिजाज़ के शहंशाह ने अपने सारे शौक त्याग दिए थे, न तो उन्होंने शाही लिबास पहने और न ही शाही जलसे में शामिल हुए।

मुमताज का मकबरा

शाहजहां ने अपने प्रेम को अमर रखने के लिए मुमताज़ की याद में ताजमहल बनवाया। इसे दोनों के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। ताजमहल दुनिया के सात आजूबों में से एक है। सफेद संगमरमर के पत्थरों से बनी ताजमहल की इमारत अत्यंत भव्य और सुंदर है। यह शाहजहां द्वारा मुमताज़ की याद में बनवाया गया एक बेहद भव्य और आर्कषक कब्र है, इसलिए इस खास इमारत को “मुमताज का मकबरा” भी कहते हैं। ताजमहल को बनाने में करीब 22 साल लगे और इस कार्य के लिए फारसी और तुर्की सहित 20 हजार मजदूर लगे थे।