Makar Sankranti: भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व मकर संक्रांति को सूर्य से क्यों जोड़ा जाता है, जानिए इस लेख में

Tue 14-Jan-2025,09:56 AM IST +05:30

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Makar Sankranti: भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व मकर संक्रांति को सूर्य से क्यों जोड़ा जाता है, जानिए इस लेख में
  • हिंदू धर्म में सूर्य को जीवन का प्रदाता और शक्ति का स्रोत माना गया है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है, जैसे गंगा, यमुना, गोदावरी और कावेरी। मान्यता है कि इस दिन पवित्र स्नान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होती है। साथ ही, दान और पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। 

  • यह वह समय है जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर अपनी यात्रा प्रारंभ करता है। इस खगोलीय घटना को उत्तरायण कहा जाता है। उत्तरायण के दौरान दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं। यह ऋतु परिवर्तन का संकेत है, जब सर्दियों का अंत और वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। 

  • तिल से बनी मिठाइयाँ जैसे तिल के लड्डू, गजक और रेवड़ी इस पर्व का विशेष आकर्षण हैं। “तिल गुड़ घ्या, गोड गोड बोला”, यानी “तिल और गुड़ खाओ, मीठा बोलो”, यह कहावत इस पर्व के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू को उजागर करती है।

Madhya Pradesh / Jabalpur :

Indian festival Makar Sankranti 2025: भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है, और यहाँ हर पर्व अपने आप में अनोखा है। इन पर्वों में से एक है मकर संक्रांति, जो न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है, हालांकि कभी-कभी तिथि में मामूली बदलाव हो सकता है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है, जिसे हिंदू पंचांग के अनुसार उत्तरायण भी कहा जाता है।

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। इस दिन को भगवान सूर्य की आराधना का दिन माना जाता है। हिंदू धर्म में सूर्य को जीवन का प्रदाता और शक्ति का स्रोत माना गया है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है, जैसे गंगा, यमुना, गोदावरी और कावेरी। मान्यता है कि इस दिन पवित्र स्नान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होती है। साथ ही, दान और पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। तिल और गुड़ से बने व्यंजनों का सेवन और दान करना इस पर्व की परंपराओं में शामिल है।

वैज्ञानिक और खगोलीय दृष्टिकोण

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है। यह वह समय है जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर अपनी यात्रा प्रारंभ करता है। इस खगोलीय घटना को उत्तरायण कहा जाता है। उत्तरायण के दौरान दिन लंबे और रातें छोटी होने लगती हैं। यह ऋतु परिवर्तन का संकेत है, जब सर्दियों का अंत और वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। इस खगोलीय परिवर्तन का प्रभाव न केवल पर्यावरण पर पड़ता है, बल्कि मानव जीवन पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।

विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति का उत्सव

भारत के विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे खिचड़ी पर्व कहा जाता है, जहां खिचड़ी और तिल-गुड़ का प्रसाद चढ़ाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पहले मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है, जो चार दिनों तक चलने वाला एक कृषि पर्व है। गुजरात और राजस्थान में पतंगबाजी का विशेष महत्व है, जहां आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे गंगा सागर मेले के साथ जोड़ा जाता है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा और समुद्र के संगम पर स्नान करते हैं।

तिल और गुड़ का महत्व

मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ के प्रयोग का विशेष महत्व है। तिल और गुड़ न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी हैं। सर्दियों में इनका सेवन शरीर को गर्मी प्रदान करता है। तिल से बनी मिठाइयाँ जैसे तिल के लड्डू, गजक और रेवड़ी इस पर्व का विशेष आकर्षण हैं। “तिल गुड़ घ्या, गोड गोड बोला”, यानी “तिल और गुड़ खाओ, मीठा बोलो”, यह कहावत इस पर्व के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू को उजागर करती है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

मकर संक्रांति न केवल धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व लोगों को एक साथ लाने का काम करता है। इस दिन परिवार और मित्र एकत्र होते हैं और मिल-जुलकर उत्सव मनाते हैं। पतंगबाजी, मिठाई बाँटना, और मेलों में भाग लेना इस पर्व की खासियत है। यह पर्व समाज में भाईचारे और सद्भाव को बढ़ावा देता है।

मकर संक्रांति और कृषि जीवन

भारत एक कृषि प्रधान देश है, और मकर संक्रांति का कृषि जीवन से गहरा संबंध है। यह पर्व फसल कटाई के समय का प्रतीक है। किसान अपनी मेहनत का फल देखते हैं और इस खुशी को उत्सव के रूप में मनाते हैं। नई फसल को भगवान को अर्पित करने की परंपरा इस दिन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पर्व किसानों के लिए नयी ऊर्जा और उत्साह का स्रोत है।

मकर संक्रांति के आधुनिक पहलू

आज के आधुनिक युग में मकर संक्रांति का स्वरूप बदल रहा है। लोग पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ-साथ आधुनिक तरीकों से भी इस पर्व को मनाते हैं। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर शुभकामनाएँ भेजना, ऑनलाइन दान करना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना अब आम बात हो गई है। हालांकि, पर्व का मूल भावनात्मक और सांस्कृतिक महत्व अब भी बरकरार है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति का एक ऐसा पर्व है जो धार्मिक, वैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को समेटे हुए है। यह पर्व हमें प्रकृति के साथ जुड़ने, पारंपरिक मूल्यों को समझने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। तिल-गुड़ की मिठास और पतंगों की उड़ान के साथ यह पर्व जीवन में नई ऊर्जा और उमंग भरता है। मकर संक्रांति न केवल एक त्यौहार है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है।