छेरछेरा त्यौहार 2025: छत्तीसगढ़ का लोकपर्व और धान मांगने की परंपरा
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यह त्यौहार नई फसल की उपज और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर धान मांगते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान अपनी नई फसल से धान दान करते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में लोग बच्चों को पैसे और खाने-पीने की चीजें दान में देते हैं।
"छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरछेरा।" इस नारे के साथ घर-घर जाकर धान मांगा जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में यह परंपरा विशेष रूप से प्रचलित है, जहां लोग बड़े मन से धान दान करते हैं।
छेरछेरा त्यौहार के दिन शाकंभरी देवी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। देवी शाकंभरी को कृषि और हरियाली की देवी माना जाता है। इस दिन लोग विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और अपने घर में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
छत्तीसगढ़/ छत्तीसगढ़ के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास में छेरछेरा त्यौहार एक विशेष स्थान रखता है। यह पर्व हर साल पौष मास की पूर्णिमा के दिन धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 13 जनवरी, सोमवार यानि आज मनाया जा रहा है। छेरछेरा त्यौहार नई फसल कटाई के बाद घर आने की खुशी और सामूहिक एकता का प्रतीक है। इस दिन छोटे से लेकर बड़े तक सभी लोग उत्साहपूर्वक इसमें भाग लेते हैं।
छेरछेरा त्यौहार का महत्व
छेरछेरा त्यौहार कृषि आधारित समाज के लिए खास महत्व रखता है। यह त्यौहार नई फसल की उपज और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर धान मांगते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान अपनी नई फसल से धान दान करते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में लोग बच्चों को पैसे और खाने-पीने की चीजें दान में देते हैं।
दान करने की इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य समाज में सहयोग और भाईचारे की भावना को बनाए रखना है। यह त्यौहार न केवल किसानों के लिए उत्सव का मौका है, बल्कि बच्चों और युवाओं के लिए भी आनंद और उत्साह से भरा होता है।
छेरछेरा मांगने की परंपरा
छेरछेरा के दिन छोटे बच्चे, जवान और बुजुर्ग सभी मिलकर टोली बनाते हैं। ये टोलियां पारंपरिक गीत गाते और नृत्य करते हुए घर-घर जाकर धान मांगती हैं। इस दिन का एक प्रसिद्ध नारा है:
"छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरछेरा।"
इस नारे के साथ घर-घर जाकर धान मांगा जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में यह परंपरा विशेष रूप से प्रचलित है, जहां लोग बड़े मन से धान दान करते हैं। शहरी क्षेत्रों में इस परंपरा को पैसे और खाने-पीने की चीजें देकर निभाया जाता है। यह त्यौहार समाज में खुशहाली और समृद्धि लाने की भावना से ओत-प्रोत है।
शाकंभरी देवी की पूजा
छेरछेरा त्यौहार के दिन शाकंभरी देवी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। देवी शाकंभरी को कृषि और हरियाली की देवी माना जाता है। इस दिन लोग विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और अपने घर में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। पूजा के बाद बच्चे और युवा टोली बनाकर धान मांगने निकलते हैं।
धान मांगने की प्रक्रिया और उत्सव का माहौल
धान मांगने की परंपरा छत्तीसगढ़ में सदियों से चली आ रही है। पौष पूर्णिमा से लगभग 15 दिन पहले ही गांवों में इस पर्व की तैयारी शुरू हो जाती है। लोग टोलियां बनाते हैं, नृत्य और गीत की प्रैक्टिस करते हैं। उत्सव के दिन ये टोलियां पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ घर-घर जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में यह नजारा बेहद आकर्षक होता है। हर घर के सामने धान की ढेरी सजाई जाती है, और लोग बड़े मन से दान करते हैं। यह परंपरा न केवल एक उत्सव है, बल्कि यह समाज में एकता और परस्पर सहयोग की भावना को मजबूत करती है।
शहर और गांव में उत्सव का अंतर
जहां ग्रामीण क्षेत्र में धान दान करने की परंपरा ज्यादा प्रचलित है, वहीं शहरी क्षेत्रों में यह पर्व थोड़ा आधुनिक रूप ले चुका है। शहरी लोग पैसे, मिठाई, या अन्य खाने-पीने की चीजें दान करते हैं। लेकिन मूल भावना एक ही रहती है—सामाजिक सहयोग और नई फसल की खुशी का साझा उत्सव।
त्यौहार का संदेश
छेरछेरा त्यौहार हमें यह सिखाता है कि सामूहिक प्रयास और सहयोग से समाज में खुशहाली लाई जा सकती है। यह पर्व प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने और दान के महत्व को समझने का अवसर है। दान करने की इस परंपरा से लोगों में दया, करुणा और परोपकार की भावना बढ़ती है।
आधुनिक युग में छेरछेरा की प्रासंगिकता
आज के दौर में भी छेरछेरा त्यौहार की प्रासंगिकता बनी हुई है। यह त्यौहार हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है। नई पीढ़ी इस त्यौहार को आधुनिकता के साथ मनाते हुए भी इसकी पारंपरिक भावना को संरक्षित रख रही है।
छेरछेरा त्यौहार छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व धान की फसल की खुशी, दान की महत्ता, और समाज में सहयोग और भाईचारे की भावना को उजागर करता है। 2025 में यह पर्व 13 जनवरी को मनाया जाएगा, और यह दिन न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे भारत में सामूहिक उत्सव और आनंद का प्रतीक होगा।