Chhattisgarh / Raipur : दिल्ली/भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें "बाबासाहेब" के नाम से जाना जाता है, भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के अग्रदूत थे। 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हुआ। महापरिनिर्वाण दिवस हर वर्ष 6 दिसंबर को डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता, महान समाज सुधारक और आधुनिक भारत के वास्तुकार के रूप में डॉ. अंबेडकर का योगदान अद्वितीय है। उनका जीवन संघर्ष, प्रेरणा और सामाजिक न्याय की मिसाल है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान
डॉ. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को एक गरीब दलित परिवार में हुआ। उन्हें बचपन से ही जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से इसे अपने जीवन का प्रेरणा स्रोत बना लिया। उन्होंने सामाजिक उत्थान के लिए कई ऐसे कार्य किये जो सामान्य नहीं था। जैसे-
- भारतीय संविधान के निर्माता: अंबेडकर ने भारत का संविधान तैयार करने में मुख्य भूमिका निभाई। उनका उद्देश्य एक ऐसा संविधान बनाना था, जो हर नागरिक को समान अधिकार, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय प्रदान करे।
- सामाजिक सुधारक: डॉ. अंबेडकर ने "अछूत" प्रथा और जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने समाज के सबसे पिछड़े वर्गों को न्याय और समानता दिलाने के लिए आंदोलन किया। उन्होंने दलित समुदाय के अधिकारों के लिए आजीवन संघर्ष किया।
- बौद्ध धर्म की ओर रुख: 14 अक्टूबर 1956 को, डॉ. अंबेडकर ने नागपूर में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया। यह कदम उनके जीवन का बड़ा परिवर्तन था, जिसने भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान को जन्म दिया। उन्होंने इसे जातिगत भेदभाव से मुक्ति का मार्ग माना। यह निर्णय जातिगत भेदभाव के खिलाफ उनका सामाजिक आंदोलन था।
क्यों मनाया जाता है महापरिनिर्वाण दिवस
6 दिसंबर 1956 को डॉ. अंबेडकर का निधन हुआ। इस दिन को "महापरिनिर्वाण दिवस" के रूप में मनाया जाता है, जो बौद्ध परंपरा में "आध्यात्मिक मुक्ति" का प्रतीक है। इस दिन लाखों लोग मुंबई के दादर स्थित चैत्यभूमि पर इकट्ठा होते हैं। वे अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके योगदान को याद करते हैं। महापरिनिर्वाण दिवस केवल एक श्रद्धांजलि का अवसर नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समानता और न्याय के प्रति डॉ. अंबेडकर के विचारों को अपनाने और जातिगत भेदभाव मिटाने का संकल्प लेने का दिन है। अंबेडकर के विचार भारत की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि शिक्षा और संघर्ष के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
डॉ. अंबेडकर का जीवन और उनका योगदान हमें सामाजिक समानता और समरसता के महत्व को समझने की प्रेरणा देता है। 6 दिसंबर भारतीय राजनीति के उन पहलुओं को उजागर करता है, जो धर्म और सामाजिक सुधार के बीच संतुलन साधने की आवश्यकता को दर्शाते हैं।
डॉ. अंबेडकर के विचार
अंबेडकर ने शिक्षा को समाज सुधार का सबसे सशक्त माध्यम माना। उनका प्रसिद्ध कथन है: "शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।" उन्होंने जातिवाद को खत्म करने और हर नागरिक को समान अधिकार दिलाने की वकालत की। उन्होंने दलित समुदाय को आत्मनिर्भर बनने और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी।
इस प्रकार महापरिनिर्वाण दिवस केवल एक दिन नहीं, बल्कि अंबेडकर के जीवन और उनके विचारों को आत्मसात करने का अवसर है। यह दिन हमें सामाजिक न्याय, समानता और भाईचारे के महत्व को याद दिलाता है। अंबेडकर का सपना था एक ऐसा भारत, जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर और अधिकार मिले। उनकी विरासत आज भी हमें प्रेरित करती है कि हम जातिगत भेदभाव और असमानता के खिलाफ संघर्ष करें और एक समतामूलक समाज का निर्माण करें।