पैरालंपिक रुबीना फ्रांसिस का जबलपुर लौटने पर भव्य स्वागत
पैरालंपिक में पदक जीतकर देश का मान बढ़ाने वाली रुबीना फ्रांसिस का जबलपुर लौटने पर भव्य स्वागत।
जबलपुर में विजेता बेटी रुबीना ने शूटिंग में लहराया परचम, कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में खेल चुकी हैं रुबीना।
जबलपुर/ विकलांगता कोई अभिशाप नहीं है, बल्कि यह एक चुनौती है। अगर हम विकलांगता को अभिशाप के तौर पर नहीं देखते, तो यह किसी की इच्छाशक्ति में बाधा नहीं बनती। कुछ दिव्यांग अपने हौसलों की उड़ान रोक नहीं पाते स्वयं को लाचार , कमजोर नहीं मानते हैं और आसमान को अपनी मुठ्ठी मे भर लेना चाहते हैं।
ऐसी ही दृढ़ इच्छाशक्ति की धनी हैं मध्य प्रदेश के जबलपुर की दिव्यांग बेटी रुबीना फ्रांसिस जिन्होंने साबित कर दिया है कि अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो फिर अड़चने जितनी भी हो वह मायने नहीं रखती। पेरिस में आयोजित पैरालंपिक 2024 में 10 मीटर एयर पिस्टल h1 इवेंट में कांस्य पदक जीतकर रुबीना फ्रांसिस ने पूरे देश का नाम बढ़ाया है। पेरिस में खेली गई पैरालंपिक-2024 की निशानेबाजी में शनिवार का दिन भारतीय खिलाड़ियों के नाम रहा। रूबीना ने देश के लिए एक कांस्य पदक निशानेबाजी में जीतकर विश्व में देश का मान बढ़ाया। रुबीना फ्रांसिस के शहर आगमन पर जोरदार स्वागत हुआ। रेलवे स्टेशन पर पहुंचते हैं विधायक अशोक रोहाणी समेत तमाम जनप्रतिनिधियों और लोगों ने रुबीना फ्रांसिस का गर्मजोशी के साथ स्वागत कर उसे संप्रेम भेंट दिया। इसके बाद रुबीना फ्रांसिस का काफिला आगे बढ़ा तो पूरे रास्ते जश्न देखा गया। रुबीना फ्रांसिस के घर यानी की गौर पहुंचते ही वहां पर भी कई जनप्रतिनिधि और लोगों ने रुबीना का जोरदार स्वागत किया।
कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में खेल चुकी हैं रुबीना
पेरिस में आयोजित पैरालिंपिक-2024 में 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच1 इवेंट में कांस्य पदक जीतने वाले 25 साल की रूबीना कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में खेल चुकी हैं और आयकर विभाग में निरीक्षक पद पर नियुक्त हुई हैं। अपनी दिव्यांगता को रूबीना ने कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। यही कारण है कि रुबीना मजह 25 साल की उम्र में देश की सबसे सफल दिव्यांग निशानेबाज बन गई है।
मुफ्लिसी और दिव्यांगता को एक साथ मात
जबलपुर की रहने वाली 25 साल की अंतरराष्ट्रीय पैरा निशानेबाज रुबीना ने जन्म के साथ एक साथ दो-दो चुनौतियां थी। शारीरिक रूप से दिव्यांग रुबीना का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ। लिहाज़ा रुबीना के लिए यहां तक का सफर इतना आसान नहीं रहा। इसके बावजूद रुबीना के माता पिता ने हार नहीं मानी, जितना हो सका रुबीना का इलाज करवाया। पेशे से मैकेनिक रुबीना के पिता ने न केवल रुबीना को अपने पैरों पर खड़े किया बल्कि इस लायक बनाया कि आज वह अपने पैरों पर खड़े होकर दुनिया को जवाब दे सके।