नारी शक्ति की अपरिमितता का द्योतक हैं, दुर्दम्य वीरांगना ऊदा देवी पासी
ऋग्वेद के देवी सूक्त में मां आदिशक्ति स्वयं कहती हैं,"अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां,अहं रूद्राय धनुरा तनोमि "… अर्थात् मैं ही राष्ट्र को बांधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूँ, और मैं ही रुद्र के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूं। हमारे तत्वदर्शी ऋषि मनीषा का उपरोक्त प्रतिपादन वस्तुत: स्त्री शक्ति की अपरिमितता का द्योतक है, जिसका स्वरुप महान् वीरांगना ऊदा देवी पासी में आलोकित होता है।
आखिर क्यों महान् वीरांगना ऊदा देवी पासी और झलकारी बाई को इतिहास में उचित स्थान देना तो छोड़िए वरन् उनके को विलुप्त कर रख दिया! आखिर क्यों? वास्तविकता यह है कि पश्चिमी इतिहासकारों, वामपंथी इतिहासकारों के साथ एक दल विशेष के समर्थक जूंठनखोर इतिहासकारों ने मिलकर मुगलों और अंग्रेज़ों का और उनके भारतीय समर्थकों का इतिहास में गुणगान कर पाठ्यक्रमों में शामिल किया ताकि हमारा वीरोचित इतिहास दफन हो जाए!
जबलपुर/
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण..मातृरुपेण संस्थिता.. ऊदा देवी रुपेण संस्थिता.. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
ऋग्वेद के देवी सूक्त में मां आदिशक्ति स्वयं कहती हैं,"अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां,अहं रूद्राय धनुरा तनोमि "… अर्थात् मैं ही राष्ट्र को बांधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूँ, और मैं ही रुद्र के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूं। हमारे तत्वदर्शी ऋषि मनीषा का उपरोक्त प्रतिपादन वस्तुत: स्त्री शक्ति की अपरिमितता का द्योतक है, जिसका स्वरुप महान् वीरांगना ऊदा देवी पासी में आलोकित होता है। लखनऊ की महान् वीरांगना ऊदा देवी पासी की वीर गाथा का स्मरण करता हूँ तो उनके समकालीन बुंदेलखंड की महान वीरांगना झलकारी बाई कोली की याद आ जाती है। दोनों में अनेक समानताएं थीं, जिसमें सबसे प्रमुख यह थी कि उदा देवी पासी - बेगम हजरत महल और झलकारी बाई कोली -झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की महिला दस्ता की कमांडर थीं। इस संदर्भ में जनरल ह्यूरोज का कथन याद आ जाता है कि
"यदि भारत की 1%महिलाऐं भी उसकी जैंसी हो जाएं तो अंग्रेजों को सब कुछ छोड़कर यहाँ से चले जाना होगा।" फिर आखिर क्यों महान् वीरांगना ऊदा देवी पासी और झलकारी बाई को इतिहास में उचित स्थान देना तो छोड़िए वरन् उनके को विलुप्त कर रख दिया! आखिर क्यों? वास्तविकता यह है कि पश्चिमी इतिहासकारों, वामपंथी इतिहासकारों के साथ एक दल विशेष के समर्थक जूंठनखोर इतिहासकारों ने मिलकर मुगलों और अंग्रेज़ों का और उनके भारतीय समर्थकों का इतिहास में गुणगान कर पाठ्यक्रमों में शामिल किया ताकि हमारा वीरोचित इतिहास दफन हो जाए! आने वाली भावी पीढ़ियों हीन भावना से ग्रसित केवल हमारी पराजयों का इतिहास पढ़ती रहें, हमारी विजयों और वीरोचित संघर्ष का नहीं ! और वास्तविक भारतीय वीरांगनाओं के साथ तो दोयम दर्जे का व्यवहार हुआ!... वीरांगना ऊदा देवी पासी भी इसी षडयंत्र का शिकार हुई।एतदर्थ यदि स्वाधीनता के अमृत काल में उनका इतिहास नहीं लिखा गया तो यह पुनः घोर अन्याय होगा।
सन 1857 का स्वतंत्रता संग्राम नवंबर माह तक आते- आते अपनी चरम पर पहुंच गया था। लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को बरतानिया सरकार ने कलकत्ता निर्वासित कर दिया था, परंतु बरतानिया सरकार और नवाब की सेना में युद्ध जारी रहा। बेगम हजरत महल निर्देशन में नवाब की सेवा का नेतृत्व मक्का पासी कर रहे थे और वही महिला दस्ता की कमान ऊदा देवी पासी के हाथ थी। तभी एक बुरा समाचार आया कि
लखनऊ के पास चिनहट नाम की जगह पर नवाब की फौज़ और अंग्रेजों के बीच टक्कर हुई और इस लड़ाई में ऊदा देवी के पति मक्का पासी का बलिदान हो गया है। अब ऊदा देवी पासी के सब्र का बांध टूट गया और बदला लेने के लिए सिकंदर बाग पहुंच गई।
16 नवंबर 1857 को सिकंदर बाग में बड़ी संख्या में भारतीय जवान पहले से मौजूद थे,अंग्रेजों को जब इसकी भनक लगी तो वे सिकंदर बाग पर हमला करने की तैयारी के साथ पहुंचे, अंग्रेज कुछ करते, उससे पहले ऊदा देवी सिकंदर बाग में मौजूद पीपल के पेड़ पर चढ़ गईं।
वे पुरुषों की वर्दी पहने हुए थीं,16 नवंबर 1857 का दिन था।पीपल के पेड़ से ही उन्होंने एक-एक कर कुछ तय अंतराल पर 36 अंग्रेज सिपाही गोलियों से भून दिया। जब अंग्रेज अधिकारियों को इस घटना की जानकारी मिली तो वे भौंचक रह गए।किसी को कुछ नहीं पता चल पा रहा था कि आखिर यह हमला कैसे और कहां से हुआ? गुस्से से भरे अंग्रेजों ने सिकंदर बाग में शरण लिए भारतीय वीरों पर हमला कर दिया और बड़ी संख्या में नरसंहार किया, इसे 16 नवंबर क़ी गदर के रुप में भी याद किया जाता है।
घटनास्थल पर पहुंचे कैप्टन वायलस और डाउसन को समझ नहीं आ रहा था कि उनके सिपाही कैसे मरे? उन पर गोलियां कहां से चलाई गईं? किसी अंग्रेज का ध्यान पीपल के पेड़ पर गया जहां लाल वर्दी में एक सिपाही बैठ कर गोलियां चला रहा था। अब उन्हें समझ आ गया था कि 36 अंग्रेज सिपाही कैसे मरे? बिना समय गंवाए अंग्रेजों ने उसी जवान पर निशाना साध दिया।
गोली लगते ही वह जवान नीचे आ गिरा,वह कोई और नहीं ऊदा देवी थीं, बाद में जांच-पड़ताल में पता चला कि वह पुरुष नहीं, महिला थीं, जिसने अंग्रेजों से बदला लेने के लिए पुरुष वेश धारण किया था। यह ऊदा देवी पासी की स्व के लिए पूर्ण आहुति थी।
न केवल लखनऊ वरन भारत में आज उनका नाम बहुत आदर- सम्मान से लिया जाता है,उसी सिकंदर बाग चौराहे पर ऊदा देवी की प्रतिमा लगी हुई है, वहां हर वर्ष उनकी जयंती-पुण्यतिथि पर आयोजन भी होते हैं, परंतु दुर्भाग्य यह है कि जब से उत्तरप्रदेश में जातिवादी राजनीति प्रारंभ हुई तब से ऊदा देवी को उनकी जाति का समर्थन पाने की लालसा रखने वाले दलों ने दलित कार्ड के रूप में उपयोग कर उनके त्याग और बलिदान का अपमान ही किया है। स्वाधीनता के अमृत काल में यही आव्हान है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में उन्हें समुचित स्थान प्राप्त हो और वोट बैंक की राजनीति में उन्हें ना बांटा जाए। यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
साभार
डॉ. आनंद सिंह राणा, विभाग अध्यक्ष, इतिहास विभाग, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत