आध्यात्मिक धरोहर और धार्मिक महत्व का संगम है कृष्ण नगरी मथुरा
मथुरा का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध है क्योंकि इसे भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक माना जाता है। यह शहर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों के लिए महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।
मथुरा का उल्लेखप्राचीन हिंदू ग्रंथों, विशेष रूप से महाभारत और पुराणों में मिलता है। यह भगवान कृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण अत्यधिक पवित्र माना जाता है।
मथुरा, उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक प्राचीन और पवित्र शहर है, जिसे भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के रूप में जाना जाता है। हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक मथुरा को 'कृष्ण नगरी' भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ के प्रमुख स्थल जैसे कृष्ण जन्मभूमि, द्वारकाधीश मंदिर, गोवर्धन पर्वत और विश्राम घाट आदि भगवान कृष्ण के जीवन की घटनाओं से जुड़े हुए हैं। यहाँ हर साल जन्माष्टमी और होली के त्योहार बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं, जो देश-विदेश से आने वाले भक्तों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र होते हैं।
मथुरा की पौराणिक कथा कंस के शासनकाल से जुड़ा हुआ है। कंस मथुरा का राजा था और वह बहुत ही अत्याचारी और अधर्मी शासक था। कंस को एक आकाशवाणी हुई थी कि उसकी मृत्यु उसकी बहन देवकी के आठवें पुत्र के हाथों होगी। इस भविष्यवाणी के डर से कंस ने अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को कारागार में बंद कर दिया और उनके सभी नवजात शिशुओं की हत्या कर दी। कंस के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए, भगवान विष्णु ने स्वयं श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेने का निश्चय किया। मथुरा के कारागार में देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ। जन्म के समय चमत्कारिक घटनाएँ घटित हुईं, जैसे कारागार के द्वार अपने आप खुल गए और वासुदेव बिना किसी बाधा के बालक कृष्ण को गोकुल ले गए, जहाँ उन्हें यशोदा और नंद बाबा ने पाला। मथुरा के पास स्थित गोकुल और वृंदावन में भगवान कृष्ण ने अपने बाल्यकाल की लीलाएँ रचीं। यहाँ पर उन्होंने गोपियों के साथ रासलीला, कालिया नाग का दमन और गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाने जैसी अनेक लीलाएँ कीं। वृंदावन में ही भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम की कथाएँ प्रचलित हैं, जो भारतीय लोककथाओं और भक्ति परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
जब भगवान कृष्ण युवा हो गए, तो उन्होंने मथुरा लौटने का निश्चय किया। कंस ने कृष्ण को मारने के लिए कई दैत्य भेजे, लेकिन वे सभी असफल रहे। अंत में, कृष्ण ने कंस को मल्लयुद्ध (मुक्केबाजी) के दौरान मार गिराया और मथुरा को उसके अत्याचारों से मुक्त किया। इसके बाद कृष्ण ने अपने नाना उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया। मथुरा पर निरंतर हो रहे आक्रमणों से बचने के लिए, भगवान कृष्ण ने समुद्र के किनारे एक नई नगरी 'द्वारका' की स्थापना की और यादवों को वहाँ बसाया। हालांकि, मथुरा का पौराणिक महत्व बना रहा और यह स्थान भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के रूप में पूजनीय रहा।
मथुरा का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध है क्योंकि इसे भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक माना जाता है। यह शहर हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों के लिए महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। मथुरा का उल्लेखप्राचीन हिंदू ग्रंथों, विशेष रूप से महाभारत और पुराणों में मिलता है। यह भगवान कृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण अत्यधिक पवित्र माना जाता है।
मथुरा का इतिहास वैदिक काल से शुरू होता है। इस समय इसे 'मधुपुरी' या 'मधुरा' के नाम से जाना जाता था। मथुरा का उल्लेख 'रामायण' और 'महाभारत' जैसे प्राचीन महाकाव्यों में भी मिलता है। यह माना जाता है कि मथुरा की स्थापना मधु नामक दानव ने की थी और उसके पुत्र लवणासुर के शासन के दौरान भगवान श्रीराम के छोटे भाई शत्रुघ्न ने इस दानव का वध करके इस क्षेत्र को मुक्त कराया। महाभारत के अनुसार, मथुरा यादवों की राजधानी थी और यहाँ कंस का शासन था। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को कारागार में डालकर मथुरा पर अधिकार कर लिया था। भगवान कृष्ण का जन्म कंस के कारागार में हुआ था। बाद में उन्होंने कंस का वध किया। इस घटना के बाद मथुरा का नाम और महत्व और भी बढ़ गया। मथुरा का महत्व बौद्ध और जैन धर्म के उदय के समय भी रहा। मथुरा बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्रों में से एक बन गया था और यहाँ पर कई बौद्ध मठ और स्तूप स्थापित किए गए थे। बौद्ध साहित्य में मथुरा का उल्लेख मिलता है। यहाँ सम्राट अशोक ने कई स्तंभ और धर्मराजिका स्तूप बनवाए थे। जैन धर्म में भी मथुरा का महत्वपूर्ण स्थान है। यह जैन धर्म के तीर्थंकरों के जन्म स्थानों में से एक माना जाता है। यहाँ कई प्राचीन जैन मंदिर हैं। कुषाण सम्राट कनिष्क के समय में मथुरा कला और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बना। इस समय मथुरा में कला और शिल्पकला का बहुत विकास हुआ। मथुरा कला शैली, जिसे 'मथुरा स्कूल ऑफ आर्ट' कहा जाता है, इस समय की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। मुगल काल में मथुरा पर कई बार आक्रमण हुए। औरंगजेब के समय में मथुरा के कई मंदिरों को ध्वस्त किया गया, जिनमें प्रमुख कृष्ण जन्मभूमि मंदिर भी शामिल था। ब्रिटिश शासन के दौरान मथुरा का महत्व कम नहीं हुआ। उस समय भी यह शहर धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा। स्वतंत्रता के बाद, मथुरा ने एक धार्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बनाई।
इस प्रकार, मथुरा का इतिहास और संस्कृति बहुत समृद्ध है, और यह शहर सदियों से भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।
मथुरा में क्या-क्या देखें:
भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में घूमने के लिए कई धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल हैं, जैसे-
- श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर: कृष्ण जन्मस्थान मंदिर: यह मथुरा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है, जहाँ भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। यहाँ पर एक जेल भी है, जिसे 'कंस का जेल' कहा जाता है। यहीं पर भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।
- भगवती केशवदेव मंदिर: जन्मभूमि के पास स्थित यह मंदिर भगवान केशवदेव को समर्पित है और इसका भी पौराणिक महत्व है।
- द्वारकाधीश मंदिर: मथुरा के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। यहां की स्थापत्य कला अद्वितीय है और यहाँ भगवान कृष्ण को द्वारकाधीश के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर अपने रंगीन झूलों और झूलन उत्सव के लिए प्रसिद्ध है, जो विशेष रूप से श्रावण मास में मनाया जाता है।
- विश्राम घाट: यमुना नदी के तट पर स्थित यह घाट मथुरा का प्रमुख घाट है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने के बाद यहाँ विश्राम किया था। यहाँ पर यमुना आरती देखना एक अनूठा अनुभव होता है, जिसे देखने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं।
- गोवर्धन पर्वत: मथुरा से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, यह पर्वत भगवान कृष्ण के गोवर्धन लीला से जुड़ा हुआ है। यह वह पर्वत है जिसे भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर उठाया था। यहाँ पर भक्त परिक्रमा करते हैं, जिसे गोवर्धन परिक्रमा कहते हैं। यह परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर लंबी होती है और इसे पैदल चलकर पूरा किया जाता है। यहाँ हर साल गोवर्धन पूजा के दौरान बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।
- वृंदावन: मथुरा से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वृंदावन, भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का स्थल है। यहाँ पर प्रमुख मंदिरों में बांके बिहारी मंदिर, प्रेम मंदिर, इस्कॉन मंदिर और राधा रमण मंदिर शामिल हैं। वृंदावन की रासलीला, होली और झूलन उत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।
- राधा कुंड और श्याम कुंड: गोवर्धन के पास स्थित ये दो कुंड राधा और कृष्ण के प्रेम की पवित्रता का प्रतीक माने जाते हैं। इन कुंडों में स्नान करना बहुत ही पवित्र माना जाता है और कहा जाता है कि इससे सभी पापों का नाश होता है।
- गोकुल: मथुरा से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोकुल वह स्थान है जहाँ भगवान कृष्ण का बचपन बीता। यहाँ नंद बाबा का घर, यशोदा मैया का घर और गोपाल मंदिर प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
- बरसाना: बरसाना राधा रानी का जन्मस्थान है और मथुरा से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ राधारानी का मंदिर प्रमुख आकर्षण है। होली के समय यहाँ की 'लट्ठमार होली' विश्व प्रसिद्ध है, जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं।
- कुसुम सरोवर: यह एक सुंदर सरोवर है जो गोवर्धन पर्वत के पास स्थित है। कहा जाता है कि यहाँ राधा और कृष्ण फूलों को तोड़ने के लिए मिला करते थे। कुसुम सरोवर के पास कई छत्रियाँ और प्राचीन स्मारक भी हैं, जो इस स्थान की सुंदरता को बढ़ाते हैं।
- रामनरेती: मथुरा के पास स्थित यह स्थान वासुदेव और देवकी के घर का प्रतीक माना जाता है। यहाँ भगवान कृष्ण का एक मंदिर भी है, जहाँ दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।
- मथुरा संग्रहालय (Government Museum):मथुरा का संग्रहालय भारतीय कला और संस्कृति के इतिहास को जानने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ पर प्राचीन मूर्तियाँ, शिलालेख, सिक्के और अन्य पुरातात्विक वस्तुएं संग्रहित हैं। इसे मथुरा म्यूजियम के नाम से भी जाना जाता है।
- यमुना नदी: यमुना नदी मथुरा के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ पर कई घाट हैं, जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। विश्राम घाट और कंस किला के पास से यमुना की सुंदरता का आनंद लिया जा सकता है।
मथुरा घूमने का सहीं समय:
मथुरा घूमने का सबसे सही समय अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है। इस अवधि के दौरान मौसम सुखद और ठंडा रहता है, जो घूमने और धार्मिक स्थलों का आनंद लेने के लिए आदर्श होता है। इस समय के दौरान मथुरा में कई प्रमुख त्योहार और उत्सव भी मनाए जाते हैं, जिनमें भाग लेकर आप इस पवित्र नगरी की सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव कर सकते हैं। जैसे-
- अक्टूबर से मार्च (सर्दियाँ): इस दौरान दिन का तापमान लगभग 10°C से 25°C के बीच रहता है, जो घूमने के लिए बेहद अनुकूल है। इस समय शहर की विशेष रौनक रहती है और पर्यटकों की भीड़ भी कम होती है।
- अप्रैल से जून (गर्मी): इस दौरान मथुरा में गर्मी काफी अधिक हो जाती है, और तापमान 35°C से 45°C तक पहुँच सकता है। इस मौसम में घूमना थोड़ा असुविधाजनक हो सकता है।
- जुलाई से सितंबर (मानसून): मानसून के दौरान यहाँ भारी बारिश हो सकती है, जिससे यात्रा में असुविधा हो सकती है। हालांकि, बारिश के बाद का मौसम सुहावना होता है और मंदिरों की खूबसूरती भी बढ़ जाती है, लेकिन कभी-कभी कीचड़ और फिसलन की समस्या हो सकती है।
- विशेष उत्सवों पर:
- जन्माष्टमी (अगस्त/सितंबर): अगर आप भगवान कृष्ण की जन्मभूमि पर जन्माष्टमी मनाना चाहते हैं, तो यह समय मथुरा जाने के लिए आदर्श है। इस दौरान मथुरा और वृंदावन में भव्य आयोजन होते हैं, जिसमें झांकियाँ, कीर्तन और धार्मिक कार्यक्रम शामिल होते हैं।
- होली (मार्च): मथुरा और वृंदावन की होली विश्व प्रसिद्ध है। बरसाना की लट्ठमार होली और वृंदावन की फूलों की होली जैसे अनूठे अनुभव इस समय के प्रमुख आकर्षण हैं। अगर आप होली के रंगों और उत्सवों का आनंद लेना चाहते हैं, तो मार्च के महीने में मथुरा घूमना सबसे अच्छा है।
मथुरा कैसे पहुंचे:
मथुरा उत्तर प्रदेश में स्थित है और भारत के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप मथुरा पहुँचने के लिए सड़क, रेल और हवाई मार्ग का उपयोग कर सकते हैं। जैसे-
- हवाई मार्ग: मथुरा से सबसे निकटतम हवाई अड्डा आगरा (Kheria Airport) है, जो लगभग 60 किलोमीटर दूर है। यहाँ से आप टैक्सी या बस के माध्यम से मथुरा पहुँच सकते हैं। यदि आप किसी बड़े हवाई अड्डे से यात्रा करना चाहते हैं, तो इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (दिल्ली) मथुरा से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर है। दिल्ली हवाई अड्डे से मथुरा के लिए नियमित ट्रेनें और बसें उपलब्ध हैं। आप टैक्सी भी ले सकते हैं, जिसमें लगभग 3-4 घंटे का समय लगता है।
- रेल मार्ग: मथुरा जंक्शन एक प्रमुख रेलवे जंक्शन है। देश के विभिन्न हिस्सों से यहाँ के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध हैं। मथुरा दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा रेलवे मार्ग पर स्थित है, इसलिए यह रेलवे नेटवर्क का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। आप दिल्ली, मुंबई, जयपुर, आगरा, वाराणसी, लखनऊ आदि से मथुरा के लिए नियमित ट्रेनें पा सकते हैं। वृंदावन के लिए भी एक छोटा रेलवे स्टेशन है, लेकिन यहाँ पर सीमित ट्रेनों का ही आवागमन होता है। यह स्टेशन मथुरा जंक्शन से लगभग 14 किलोमीटर दूर है।
- सड़क मार्ग: दिल्ली से मथुरा तक लगभग 160 किलोमीटर की दूरी है, जिसे आप यमुना एक्सप्रेसवे या राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (NH-2) के माध्यम से तय कर सकते हैं। यमुना एक्सप्रेसवे एक उच्च-गति मार्ग है, जो मथुरा तक पहुँचने के लिए सबसे सुविधाजनक है। बस या टैक्सी से यात्रा करने में लगभग 3 घंटे लगते हैं। आगरा से मथुरा की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है, और यह यात्रा राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (NH-2) के माध्यम से लगभग 1-2 घंटे में पूरी की जा सकती है। जयपुर, लखनऊ, वाराणसी आदि से भी मथुरा के लिए बसें और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार इनका उपयोग कर सकते हैं।
इस प्रकार मथुरा का हर कोना भगवान कृष्ण के जीवन और उनकी लीलाओं से जुड़ा हुआ है। यहाँ पर घूमते समय एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो इसे भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक बनाता है। आप मथुरा की यात्रा पर एक बार जरूर जाएं।