भारत का हृदय और मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अनेक बेगमों ने किया शासन
कहा जाता है कि मुगल सम्राट जलालुद्दीन अकबर ने रानी दुर्गावती के गोंडवाना राज्य से अलग करके भोपाल को एक जागीर सीहोर का हिस्सा बना दिया। कुछ काल तक यह एक नवाब के अधीन रहा था और उसके बाद 1761 ई. के बाद वह अर्ध-स्वतंत्र हो गया। लेकिन 1817 ई. में इसका शासक अंग्रेजों के साथ सहायक संधि करने के लिए बाध्य हुआ।
भोपाल ब्रिटिश साम्राज्य का दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम प्रदेश था। इसके शासक ब्रिटिश शासन के प्रति निष्ठावान बने रहे और मराठों के साथ कई युद्ध भी लड़े। 1818 में स्थापित भोपाल एजेंसी ब्रिटिश सेंट्रल इंडिया एजेंसी का एक उपखंड था, जो पूर्व सामंती प्रदेशों राजगढ़, नरसिंहगढ़ और दूसरी कई रियासतों को समाविष्ट किए हुए था।
भोपाल शहर मध्यप्रदेश राज्य की राजधानी है। मध्य भारत में स्थित है मध्यप्रदेश, जिसके मध्य में है भोपाल। भोपाल का एक हिस्सा मालवा पठार की उपजाऊ समतल भूमि पर स्थित है। ताल-तलैयों का भोपाल की रवायत इसकी अलग पहचान है। इस शहर की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि परमार राजा भोज ने 1000-1055 ईस्वी में इसकी नींव रखी थी। उनके राज्य की राजधानी धार थी, जो अब मध्य प्रदेश का एक जिला है। राजा भोज के नाम पर ही इस शहर का पूर्व नाम भोजपाल था, जो भोज और पाल के संधि से बना था। परमार राजाओं के अस्त के बाद यह शहर कई बार लूट का शिकार बना।
बेगमों ने किया शासन
इसके बाद भोपाल शहर की स्थापना अफग़ान सिपाही दोस्त मोहम्मद (1708-1740) ने की थी। मुगल शासक औरंगजेब की मृत्यु के बाद की अफऱा-तफरी के दौर में जब दोस्त मोहम्मद दिल्ली से भाग रहा था, तो उसकी मुलाकात गोंड रानी कमलापती से हुई, जिसने दोस्त मोहम्मद से मदद मांगी। वह अपने साथ इस्लामी सभ्यता ले कर आया, जिसका प्रभाव उस काल के महलों और दूसरी इमारतों मे साफ़ दिखाई देता है। कहा जाता है कि आधुनिक भोपाल को दोस्त मोहम्मद ने ही बसासा, जिस पर रानी कमलापति कभी विराजमान थीं। देश की आज़ादी के पहले भोपाल हैदराबाद के बाद सबसे बड़ा मुस्लिम राज्य था। सन 1819 ईस्वी से लेकर 1926 ईस्वी तक भोपाल का राज चार बेगमों ने संभाला। नवाबजादियों ने भोपाल को नई पहचान दी। सुल्तान कुदसिया बेगम सबसे पहली महिला शासक बनीं। वे गौहर बेगम के नाम से भी मशहूर थीं। उनके बाद उनकी इकलौती संतान, नवाब सिकंदर जहां बेगम शासक बनीं। सिकंदर जहां बेगम के बाद उनकी पुत्री शाहजहां बेगम ने भोपाल रियासत की बागडोर संभाली। अंतिम मुस्लिम महिला शासक पुत्री सुल्तान जहां बेगम थीं। बाद में उनके पुत्र हमीदुल्ला खान गद्दीनशीं हुए, जिन्होंने मई 1949 तक भोपाल रियासत के विलीनीकरण तक शासन किया। बेगमों के राज में भोपाल को रेलवे, डाक-विभाग जैसे अनेक उपहार मिले। सन 1903 में नगर निगम का भी गठन हुआ। बेगमों ने ही शहर में मस्जिदें, स्कूल, महल और हम्माम बनवाए। एक हम्माम तो आखिरी बेगम ने अपनी कनीज को सौंप दिया था और वह आज भी चलता है। अक्टूबर से मार्च के बीच चलने वाले इस हम्माम में अभी भी लकडिय़ों में आग जलाकर गर्मी पैदा की जाती है और वही तेल इस्तेमाल किए जाते हैं जो आज से करीब 150 साल पहले किए जाते थे। हालांकि आज पांच सितारा होटलों की जकूजी और सौना के मुकाबले ये हम्माम काफी पुराना लगता है, पर इसकी खूबी ये है कि यहां नहाते वक्त आपको लगता है कि आप भी उन्हीं नवाबों के दौर में पहुंच गए हैं। कुल 80 रुपए में इतिहास के दौर में जीना बुरा सौदा नहीं लगता।
भोपाल के प्रमुख विरासत
बड़ा तालाब, बिड़ला मंदिर, ताज-उल-मस्जिद, बिरला संग्रहालय, भोजेश्वर मंदिर, मोती मस्जिद, शौकत महल, ताज महल, सदर मंजिलद्व, गौहर महल, राज्य संग्रहालय, भारत भवन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय, भीमबेठका पाषाण आश्रय, भोजपुर मंदिर, पुरातात्विक संग्रहालय, मछली घर, रवीन्द्र भवन, ऐशबाग स्टेडियम आदि भोपाल के प्रमुख स्थल हैं।
बड़ा तालाब
भोपाल के मध्य में स्थित मानव निर्मित एक झील है। इस तालाब का निर्माण 11वीं सदी में किया गया था। भोपाल की यह विशालकाय जल संरचना अंग्रेज़ी में ‘अपर लेक’ कहलाती है। इसी को बड़ा तालाब कहा जाता है। इसे एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील भी माना जाता है। शहर के पश्चिमी हिस्से में स्थित यह तालाब भोपाल के निवासियों के पीने के पानी का सबसे मुख्य स्रोत है। इसका निर्माण 11वीं सदी में राजा भोज ने करवाया था। बेहद प्राचीन और जन-उपयोगी इस जलाशय का इतिहास अनेक खट्टे-मीठे अनुभवों से भरा हुआ है। तालाब का कुल भराव क्षेत्रफल 31 किमी है, पर अतिक्रमण एवं सूखे के कारण यह क्षेत्र 8-9 किलोमीटर में ही सिमट कर रह गया है। भोपाल की लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या को यह झीलनुमा तालाब लगभग तीस मिलियन गैलन पानी रोज देता है। इस बड़े तालाब के साथ ही एक ‘छोटा तालाब’ भी है और यह दोनों जल क्षेत्र मिलकर एक विशाल ‘भोज वेटलैंड’ का निर्माण करते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय रामसर सम्मेलन के घोषणा पत्र में संरक्षण की संकल्पना हेतु शामिल है। बड़ा तालाब के पूर्वी छोर पर भोपाल शहर बसा हुआ है, जबकि इसके दक्षिण में "वन विहार नेशनल पार्क" है, इसके पश्चिमी और उत्तरी छोर पर कुछ मानवीय बसाहट है, जिसमें से अधिकतर इलाका खेतों वाला है। इस झील का कुल क्षेत्रफल 31 वर्ग किलोमीटर है और इसमें लगभग 361 वर्ग किमी इलाके से पानी एकत्रित किया जाता है। इस तालाब से लगने वाला अधिकतर हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र है, लेकिन अब समय के साथ कुछ शहरी इलाके भी इसके नज़दीक बस चुके हैं। कोलांस नदी जो कि पहले हलाली नदी की एक सहायक नदी थी, लेकिन एक बांध तथा एक नहर के जरिये कोलांस नदी और बड़े तालाब का अतिरिक्त पानी अब कलियासोत नदी में चला जाता है।
बड़े तालाब की खासियत
भोपाल शहर की सीमाओं के अंदर निर्मित एक ताल, भोज ताल से लिया गया है। एक और मत यह है कि यह ‘भोज पाल’ या ‘भोज के बांध’ पर आधारित है। आधुनिक भोपाल शहर सन 1722 से अस्तित्व में है, जब दोस्त मुहम्मद ने मौजूदा ताल की उत्तरी दिशा में फ़तेहगढ़ किले का निर्माण प्रारंभ किया। किसी भी अतिरेकी बहाव को नियंत्रित करने के लिए ऊपरी ताल (बड़ा तालाब) और निचला ताल एक जलसेतु से जुड़े हैं।
शिक्षण संस्थान
बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थानम्, अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, हिन्दी पुस्तकालय आदि शिक्षण संथान भोपाल में स्थापित है।
ऐसा है भोपाल का इतिहास
कहा जाता है कि मुगल सम्राट जलालुद्दीन अकबर ने रानी दुर्गावती के गोंडवाना राज्य से अलग करके भोपाल को एक जागीर सीहोर का हिस्सा बना दिया। कुछ काल तक यह एक नवाब के अधीन रहा था और उसके बाद 1761 ई. के बाद वह अर्ध-स्वतंत्र हो गया। लेकिन 1817 ई. में इसका शासक अंग्रेजों के साथ सहायक संधि करने के लिए बाध्य हुआ। 1948 ई. में भोपाल रियासत भारतीय गणराज्य में मिला ली गई।
अंग्रेजों के जमाने में थी धाक
भोपाल ब्रिटिश साम्राज्य का दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम प्रदेश था। इसके शासक ब्रिटिश शासन के प्रति निष्ठावान बने रहे और मराठों के साथ कई युद्ध भी लड़े। 1818 में स्थापित भोपाल एजेंसी ब्रिटिश सेंट्रल इंडिया एजेंसी का एक उपखंड था, जो पूर्व सामंती प्रदेशों राजगढ़, नरसिंहगढ़ और दूसरी कई रियासतों को समाविष्ट किए हुए था। आज़ादी के बाद भी भोपाल भारत की एक पृथक रियासत बना रहा और 1949 में इसे भारत में मिला लिया गया। 1952 में नवाबों का निर्बाध शासन समाप्त हो गया और एक प्रधान आयुक्त का राज्य स्थापित किया गया। 1956 में यह मध्य प्रदेश राज्य के साथ मिल गया।
यातायात और परिवहन
राजा भोज विमानतल को भोपाल हवाई अड्डा भी कहा जाता है। यह शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई और इंदौर से यहां के लिए इंडियन एयरलाइन्स की नियमित हवाई जहाज हैं। ग्वालियर से यहां के लिए सप्ताह में चार दिन हवाई जहाज़ हैं। भोपाल का रेलवे स्टेशन देश के विविध रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। यह रेलवे स्टेशन दिल्ली-चैन्नई रूट पर पडता है। शताब्दी एक्सप्रेस भोपाल को दिल्ली से सीधा जोड़ती है। साथ ही यह शहर मुम्बई, आगरा, ग्वालियर, झांसी, उज्जैन आदि शहरों से अनेक रेलगाडिय़ों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। ‘भोपाल मेट्रो’ भोपाल शहर के लिए एक प्रस्तावित त्वरित यातायात परियोजना है। इस प्रणाली को तीन गलियारों में विभाजित किया गया है, जिसकी कुल लंबाई 28.5 किलोमीटर है। सांची, इंदौर, उज्जैन, खजुराहो, पंचमढ़ी, जबलपुर आदि शहरों से आसानी से सडक मार्ग से भोपाल पहुंचा जा सकता है। मध्य प्रदेश और पड़ोसी राज्यों के अनेक शहरों से भोपाल के लिए नियमित बसें चलती हैं।
उद्योग और व्यापार
भोपाल शहर ने व्यापार, वाणिज्य और उद्योग में तेज़ी से प्रगति की है। यह अनाज, तेल, किराना व लेखन-सामग्री का एक व्यापक थोक और खुदरा केंद्र है। लगभग एक-तिहाई जनता श्रमिकों के रूप में गिनी जाती है। नौ औद्योगिक, श्रेणियों में से श्रमिक मुख्यत: अन्य सेवाओं, व्यापार, वाणिज्य, ग़ैर घरेलू विनिर्माण, निर्माण और परिवहन व संचार में संलग्न हैं। भोपाल में मुख्य उद्योगों में कपास और आटा मिलें, वस्त्र बुनाई, चित्रकारी और ट्रांसफार्मर, स्विचगियर, कर्षण मोटर और दूसरे भारी विद्युत उपकरणों के अतिरिक्त दियासलाई, लाख और खेल सामग्री का निर्माण भी सम्मिलित है। बटुवा निर्माण, जऱी कसीदाकारी, काष्ठ और लौह फर्ऩीचर का उत्पादन, हलवाई और नानाबाई की दुकान व बीड़ी निर्माण लघु उद्योग में शामिल हैं।
भोपाल की शिक्षा और आबादी
भोपाल की साक्षरता दर 60 प्रतिशत है। शहर में कला, विज्ञान एवं वाणिज्य के कई सरकारी व निजी शैक्षिक संस्थान और स्नातकोत्तर महाविद्यालय हैं। 1903 में नगर पालिका के रूप में गठित भोपाल में कई अस्पताल हैं और यह भोपाल विश्वविद्यालय (1970 में स्थापित) का मुख्यालय है। भोपाल की कुल जनसंख्या करीब २० लाख है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
भोपाल शहर के बाशिंदे धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से इन दोनों से झीलों से दिल से गहराई तक जुड़े हैं। रोज़मर्रा की आम जरूरतों का पानी उन्हें इन्हीं झीलों से मिलता है, इसके अलावा आसपास के गांवों में रहने वाले लोग इसमें कपड़े भी धोते हैं (हालांकि यह इन झीलों की सेहत के लिये खतरनाक है), सिंघाड़े की खेती भी इस तालाब में की जाती है। स्थानीय प्रशासन की रोक और मना करने के बावजूद विभिन्न त्यौहारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ इन तालाबों में विसर्जित की जाती हैं। बड़े तालाब के बीच में तकिया द्वीप है जिसमें शाह अली शाह रहमतुल्लाह का मकबरा भी बना हुआ है, जो कि अभी भी धार्मिक और पुरातात्विक महत्व रखता है।
मनोरंजन और व्यवसाय
बड़े तालाब में मछलियां पकडऩे हेतु भोपाल नगर निगम ने मछुआरों की सहकारी समिति को लम्बे समय तक एक इलाका लीज़ पर दिया हुआ है। इस सहकारी समिति में लगभग 500 मछुआरे हैं जो कि इस तालाब के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में मछलियां पकड़कर जीवनयापन करते हैं। इस झील से बड़ी मात्रा में सिंचाई भी की जाती है। इस झील के आसपास लगे हुए 87 गांव और सीहोर जिले के भी कुछ गांव इसके पानी से खेतों में सिंचाई करते हैं। इस इलाके में रहने वाले ग्रामीणों का मुख्य काम खेती और पशुपालन ही है। इनमें कुछ बड़े और कुछ बहुत ही छोटे-छोटे किसान भी हैं। भोपाल का यह बड़ा तालाब स्थानीय और बाहरी पर्यटकों को भी बहुत आकर्षित करता है। यहां "बोट क्लब" पर भारत का पहला राष्ट्रीय सेलिंग क्लब भी स्थापित किया जा चुका है। इस क्लब की सदस्यता हासिल करके पर्यटक कायाकिंग, कैनोइंग, राफि़्टंग, वाटर स्कीइंग और पैरासेलिंग आदि का मजा उठा सकते हैं। विभिन्न निजी और सरकारी बोटों से पर्यटकों को बड़ी झील में भ्रमण करवाया जाता है। इस झील के दक्षिणी हिस्से में स्थापित वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भी पर्यटकों के आकर्षण का एक और केन्द्र है। चौड़ी सड़क के एक तरफ़ प्राकृतिक वातावरण में पलते जंगली पशु-पक्षी और सड़क के दूसरी तरफ़ प्राकृतिक सुन्दरता मन मोह लेती है।
जैव-विविधता
इन दोनों तालाबों में जैव-विविधता के कई रंग देखने को मिलते हैं। वनस्पति और विभिन्न जल आधारित प्राणियों के जीवन और वृद्धि के लिये यह जल संरचना एक आदर्श मानी जा सकती है। प्रकृति आधारित वातावरण और जल के चरित्र की वजह से एक उन्नत किस्म की जैव-विविधता का विकास हो चुका है। प्रतिवर्ष यहाँ पक्षियों की लगभग 20,000 प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं, जिनमें मुख्य हैं व्हाईट स्टॉर्क, काले गले वाले सारस, हंस आदि। कुछ प्रजातियां तो लगभग विलुप्त हो चुकी थीं, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता अब वे पुन: दिखाई देने लगी हैं।
नवाबी तहजीब का शहर
कहावत है-ताल तो भोपाल ताल, बाकी सब तलैयां। कहा जाता है कि राजा भोज एक बार बहुत बीमार पड़ गए। वैद्यों ने हाथ खड़े कर दिए तो एक ज्योतिषी ने कहा कि अगर राजा एक ऐसा ताल बनवाएं, जिसमें सात नदियों का पानी गिरता हो तो उनकी जान बच सकती है। राजा ने अपने मंत्रियों को ऐसी जगह ढूंढऩे का आदेश दिया और वह जगह वहीं मिली जहां अब भोपाल है। पर यहां कुल पांच नदियां थीं। थोड़ा और खोजने पर 15 मील दूर दो नदियां और मिलीं। उन्हें एक सुरंग के रास्ते यहां तक लाया गया और बांध बनाकर उनका पानी रोका जाने लगा। इधर ताल बनता गया उधर राजा की हालत सुधरती गई। फिर बनारस की सुबह और अवध की शाम के साथ-साथ मालवा की रात भी मशहूर हो गई।
मालवा
मालवा की रातें खास तौर से सुहानी होती हैं। इसके पानी के कारण सैकड़ों मील के इलाके में बंजर जमीन भी हरी-भरी होने लगी और उसने भोपाल सहित मालवा के मौसम को भी बदल दिया। कालांतर में यहां लोग बसने लगे। शुरू में यहां गोंड जनजाति का शासन था, पर उनके नाम पर अब बस एक महल बचा है। आज का भोपाल नवाबों का भोपाल है और उसके इतिहास और वर्तमान दोनों पर ही नवाबी तहजीब का असर साफ दिखता है।
पुराना और नया भोपाल
भोपाल शहर को दो भागों में बांट सकते हैं। पुराना भोपाल और नया भोपाल। नया भोपाल तो आम मध्यवर्गीय शहर है जिसके बारे में इतना ही कह सकते हैं कि वह साफ-सुथरा है। असली शहर तो पुराना भोपाल ही है। यहां की सड़कों व गलियों में चलते हुए आपको नफीस उर्दू बोलते बूढ़े मिल जाएंगे। उनमें से कई आज भी किस्सागोई के महारथी हैं। रेडियो, अखबार और टीवी आ जाने के बावजूद इन बड़े मियाओं का तर्ज-ए-बयां ही कुछ और है। ‘अरे खांव’ कह कर जैसे ही किस्सा सुनाते हैं तो हंसते-हंसते पेट में बल पड़ जाते हैं। इस शहर में एक और नवाबी विरासत है जो यहां के अलावा रामपुर और हैदराबाद में भी मिलती है। यह एक ऐसी गायन शैली है जो कव्वाली से मिलती-जुलती है। इसमें चार-चार लोगों की टीमें होती हैं, जो उसी समय गाने गढ़ती जाती हैं और लाग-डांट इतनी बढ़ जाती है कि बात मार-पीट पर उतर आती है। इस विधा को बैंतबाजी या चार बैंत कहते हैं। इसका आयोजन प्राय: जाड़ों में होता है और मुकाबले रात भर चलते हैं।
खुली जीप का मजा
भोपाल ऐसा शहर है, जहां पहुंचकर आपको लगता है कि महानगरों की अफरा-तफरी जैसे रुक गई है। शामें अलसाई सी दिखती हैं और लोगों में बाजार घूमने और यूं ही टहलने का शौक आज भी बरकरार है। यहां के लोगों को पुरानी खुली जीपों का बड़ा शौक है। पुराने मैकेनिकों या जीप मालिकों से ये लोग जीपें खरीदते हैं, उन्हें सजाते हैं और खुली जीप में शाम को भोपाल ताल के पास सड़क पर घूमने निकलते हैं। अगर आप कुछ नया देखना चाहते हैं तो श्यामला हिल्स पर बने भारत भवन में जा सकते हैं। जनजातीय संस्कृति और नए साहित्य का यह गढ़ उन्हें बहुत रुचेगा, जिनकी रुचि ललित व लोक कलाओं में है।