हिंदी विश्वविद्यालय में शिक्षक नियुक्ति घोटाला- शिक्षा मंत्रालय खामोश
राज्य सभा में उठी जांच की मांग। राज्य सरकार भी खामोश।
शिक्षक नियुक्ति घोटाला प्रकरण- SIT कमेटी से उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग।
हिंदी विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो. के. के. सिंह, मंत्रालय का उड़ा रहे मजाक।
वर्धा। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति प्रोफेसर कृष्ण कुमार सिंह आए दिन विश्वविद्यालय के एक्ट और मंत्रालय के दिशा-निर्देशों को तक पर रखकर विश्वविद्यालय में कार्य कर रहे हैं। कार्यवाहक कुलपति प्रो. के. के. सिंह के द्वारा लगातार नियमविरुद् कार्यों को किया जा रहा था इसको देखते हुए मंत्रालय ने प्रो. के. के. सिंह को एक पत्र भेजा जिसमें उन्हें निर्देशित किया गया की वे स्वयं को कुलपति ना लिखें बल्कि कार्यवाहक कुलपति लिखें। विश्वविद्यालय में कार्यवाहक कुलपति होने के करण कुलपति के दायित्व एवं अधिकार सीमित हो जाते है।
प्रो. के. के. सिंह को कार्यवाहक कुलपति होने का पत्र मिलने के बाद भी वे मंत्रालय के दिए गए पत्र को अनदेखा कर लगातार विश्वविद्यालय के संविधान की धज्जियां उड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इससे विश्वविद्यालय की साख लगातार गिरती जा रही है। इसी क्रम में अनेक मामले उजागर हुए हैं जिन्हें कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर कृष्ण कुमार सिंह द्वारा जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है और उनके द्वारा अराजक फैसले लिए जा रहे हैं जिनमें हाल ही में विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षकों की नियुक्तियों का मामला देखा जा सकता है। नियुक्तियों का मामला कार्यवाहक कुलपति के दायित्व के बाहर है उसके बावजूद विज्ञापन निकालकर अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और उनका साक्षात्कार कराया गया। कार्यवाहक कुलपति को यह पता होते हुए भी की उन्होंने अपने दायित्वों का दुरुपयोग करते हुए यह प्रक्रिया पूर्ण कार्रवाई है जब मंत्रालय कार्यवाहक कुलपति को पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर कह चुका है की विश्वविद्यालय में कोई भी ऐसा काम नहीं किया जाएगा जो विश्वविद्यालय के एक्ट के खिलाफ हो। लेकिन कार्यवाहक कुलपति अपने व्यक्तिगत और अपनों को आर्थिक लाभ के चलते मनमाने तरीके से कार्य कर रहे हैं।
अतिथि शिक्षकों की नियुक्तियों के संबंध में यूजीसी के दिशा-निर्देश के अनुसार भी विश्वविद्यालय में स्थायी शिक्षकों की संख्या के केवल 10 प्रतिशत ही अतिथि शिक्षकों की नियुक्तियां की जा सकती है। लेकिन यह संख्या भी आज विश्वविद्यालय में लगभग 45 प्रतिशत है। जिस विश्वविद्यालय में छात्रों की संख्या ना के बराबर है उस विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षकों की इतनी नियुक्तियों आखिर क्यों ? जबकि विश्वविद्यालय के आधे से विभागों में लगभग छात्रों की संख्या 05 से भी कम है। आखिर क्यों ? शिक्षा मंत्रालय इन सब स्थातियों को भी देख कर शांत है।
कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर कृष्ण कुमार सिंह को जो काम मंत्रालय एवं कार्यपरिषद ने मना किया है वह सारे काम उनके द्वारा किए जा रहे हैं चाहे वह क्यों ना पूर्व कुलसचिव के खिलाफ जांच का मामला हो या फिर लगातार ऐसे फैसले जो की विश्वविद्यालय के हित में नहीं है उनको लगातार प्रोफेसर कृष्ण कुमार सिंह द्वारा किया जा रहा है। कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर कृष्ण कुमार सिंह द्वारा बीते दिनों बिना अनुमति के कार्यपरिषद एवं विध्यापरिषद की बैठक बुलाने का मामला। कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर कृष्ण कुमार सिंह द्वारा अचानक से एक पत्र जारी कर कार्यपरिषद एवं विध्यापरिषद की बैठक आयोजित करने का विषय। कार्यपरिषद की बैठक रोकने के लिए मंत्रालय ने हस्तक्षेप कर बैठक पर विराम लगाया था ऐसा ही एक मामला पीएचडी प्रवेश परीक्षा से संबंधित था जिसमें मंत्रालय और कार्यपरिषद को हस्तक्षेप कर रोकना पड़ा।
इसी क्रम में राम मंदिर के उद्घाटन के दिन विश्वविद्यालय में वशिष्ठ वाटिका का उद्घाटन हुआ था जिसके उद्घाटन समारोह में लोकसभा सांसद रामदास तडस और जिलाधिकारी सहित वर्धा जिला के एसपी भी मौजूद थे लेकिन कुछ ही दिनों बाद वशिष्ठ वाटिका के शिलापट पट को अराजक तत्वों द्वारा तोड़ दिया गया। कार्यवाहक कुलपति और कार्यवाहक कुलसचिव की गाड़ी दिन में दो से चार बार वशिष्ठ वाटिका के टूटे हुए शिलापट के सामने से गुजरती है। लेकिन कार्यवाहक कुलपति और कार्यवाहक कुलस इतना संवेदनहीन है कि उनको यह टूटा हुआ शिलापट नजर नहीं आता।
हिंदी विश्वविद्यालय में पहले से ही विश्वविद्यालय में हुई स्थायी शिक्षकों की नियुक्तियों का मामला संदेह एवं जांच के घेरे में चल रहा है। इसको लेकर शिक्षा मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय की माननीय कुलाध्यक्ष को भी शिकायत की जा चुकी है। इस जांच के संबंध में विश्वविद्यालय लीपा पोती कर रहा है। शिक्षा मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय की माननीय कुलाध्यक्ष कार्यालय ने भी जांच के लिए विश्वविद्यालय को पत्र भेजा लेकिन विश्वविद्यालय ने आज तक इस मामले में कोई सख्त निर्णय नहीं लिया है। और ना ही किसी प्रकार की जांच की। जबकि विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार को लेकर देश के उच्च सदनों में भी इसकी मांग हो रही है। ऐसे में विश्वविद्यालय में कार्य कर रहे ऐसे भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ शिक्षा मंत्रालय को तत्काल संज्ञान लेते हुए उच्च स्तरीय कमेटी से जांच करना चाहिए। जिससे विश्वविद्यालय सुचारू रूप से संचालित हो सके। और संबन्धित दोषियों पर कार्यवाही की जा सके।