बैसाखी: एक पावन पर्व, एक ऐतिहासिक विरासत

Mon 14-Apr-2025,02:34 AM IST +05:30

ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |

Follow Us

बैसाखी: एक पावन पर्व, एक ऐतिहासिक विरासत बैसाखी: एक पावन पर्व, एक ऐतिहासिक विरासत
  • धार्मिक महत्व: 1699 में सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने 'पंज प्यारे' के जरिए सिख धर्म को एक नई पहचान दी।

  • कृषि और किसान: बैसाखी रबी की फसल पकने का समय होता है। किसान इस दिन को फसल कटाई के उत्सव के रूप में मनाते हैं और ईश्वर का धन्यवाद करते हैं।

  • सांस्कृतिक उत्सव: गुरुद्वारों में कीर्तन, लंगर, सजावट और मेलों का आयोजन होता है। लोग ढोल-नगाड़ों के साथ भांगड़ा-गिद्दा करते हैं और पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं।

Maharashtra / Nagpur :

बैसाखी भारत का एक प्रमुख पर्व है, जिसे हर साल 13 या 14 अप्रैल को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह दिन खास तौर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तरी भारत के अन्य हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। बैसाखी का धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बहुत अधिक महत्व है। यह पर्व सिखों और किसानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।

सिख धर्म में बैसाखी का दिन बेहद खास होता है क्योंकि इसी दिन, वर्ष 1699 में सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने सिख समुदाय को एक नई पहचान दी और सामाजिक समानता, मानवता और साहस का संदेश दिया। उन्होंने पांच लोगों से उनके सिर की मांग की थी और जब पांचों तैयार हो गए, तो उन्हें ‘पंज प्यारे’ की उपाधि दी गई। यही पांच लोग खालसा पंथ के पहले सदस्य बने।

गुरु गोविंद सिंह जी ने ‘पंज प्यारे’ को अमृत छकाकर खालसा पंथ की शुरुआत की और तब से यह दिन सिखों के लिए आस्था और गर्व का प्रतीक बन गया। उन्होंने यह भी आदेश दिया कि हर सिख पुरुष अपने नाम के साथ "सिंह" और महिलाएं "कौर" लगाएं। साथ ही, उन्होंने ‘पंज ककार’ – केश, कंघा, कड़ा, कछहरा और कृपाण – को खालसा की पहचान बताया।

बैसाखी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि किसानों के लिए भी खुशी का दिन होता है। यह रबी की फसल के पकने का समय होता है। इस दिन किसान अपनी मेहनत का फल देखकर उत्साहित होते हैं और ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। खेतों में गेंहू की लहराती बालियां, ढोल की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा, और लोक गीतों की गूंज इस पर्व को और भी रंगीन बना देती हैं।

बैसाखी का पर्व सिख नव वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गुरुद्वारों को फूलों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है, विशेष कीर्तन और गुरबाणी का आयोजन होता है। श्रद्धालु गुरुद्वारों में लंगर सेवा करते हैं और पूरे दिन सेवा भावना में लगे रहते हैं। आनंदपुर साहिब, अमृतसर और तलवंडी साबो जैसे स्थानों पर भारी संख्या में संगत एकत्रित होती है।

शाम के समय, लोग घरों के बाहर लकड़ियां जलाकर उसके चारों तरफ भांगड़ा और गिद्दा करते हैं। तरह-तरह के पकवान जैसे कढ़ी चावल, लस्सी, मक्के की रोटी, सरसों का साग, मीठे चावल आदि बनाए जाते हैं। बच्चों के लिए खास व्यंजन और मिठाइयां तैयार की जाती हैं।

बैसाखी मेलों का भी आयोजन होता है, जहां पारंपरिक खेल, नाटक, लोक संगीत और डांस होते हैं। यह मेलों का दिन होता है जहां लोग पारंपरिक पोशाकों में सज-धजकर शामिल होते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं।

कुल मिलाकर, बैसाखी न केवल धार्मिक आस्था और इतिहास से जुड़ा हुआ पर्व है, बल्कि यह सामूहिक एकता, भाईचारे और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भी प्रतीक है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि धर्म की रक्षा, समानता का सम्मान और परिश्रम का उत्सव मनाना ही हमारी संस्कृति की असली पहचान है।

बैसाखी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!