दलित किसान के बेटे ने तय किया विधि (लॉ) से पीएचडी तक का सफर
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दलित किसान के बेटे ने तय किया विधि (लॉ) से पीएचडी/डॉक्टरेट तक का सफर, संभाल रखी है समाजवादी लोहिया वाहिनी उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष की कमान।
प्रयाग/ उत्तर प्रदेश की युवा राजनीति में राम करन निर्मल बहुचर्चित एवं जाना-माना नाम है क्योंकि समाजवादी पार्टी का यूथ फ्रंटल लोहिया वाहिनी पूर्व मुख्यमंत्री मा.अखिलेश यादव जी का सबसे करीबी एवं पसंदीदा फ्रंटल है और प्रदेश स्तर पर इसकी अगुआई की बागडोर डॉ. राम करन निर्मल जैसे जमीनी, जुझारू एवं प्रतिभाशाली युवा को सौंपी है। इस युवक ने अनेक कठिनाइयों के बावजूद संघर्ष की राह नहीं छोड़ी और पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले ख्यातिलब्ध इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि जैसे विषय में अकादमिक जगत की सर्वोच्च उपाधि डॉक्टरेट हासिल की।
कौशाम्बी जनपद के गांव (अब नगर पंचायत) के एक दलित किसान राधे लाल और अमरावती के बेटे का यह सफर काफ़ी मुश्किलो एवं कठिनाइयों भरा था।
राम करन निर्मल की शुरुआती पढ़ाई गांव के ही आदर्श ग्रामसभा इंटर कॉलेज, चरवा से हुई इसके बाद वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक (एलएलबी), बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ से विधि में परास्नातक (एलएलएम ह्यूमन राइट ) से गोल्ड मेडल की उपाधि से प्राप्त किया।
इस दौरान राम करन निर्मल हमेशा गरीबों और वंचितों की बेहतरी और उनके हक़-हुक़ूक़ की लड़ाई लड़ने में कभी भी पीछे नहीं रहे। चाहे फिर वह रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या का मामला हो या फिर उत्तर प्रदेश न्यायिक परीक्षा में हिन्दी को शामिल करने के लिए महीनों चलने वाला आंदोलन रहा हो। इसके बाद दिल्ली जाकर उत्तर प्रदेश न्यायिक परीक्षा की तैयारी करने लगे।
इसी दौरान 2016 में हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बाद जब देशभर के विश्विद्यालयों में गहमागहमी का माहौल था तभी राम करन ने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ द्वारा आयोजित दीक्षांत समारोह में तत्कालीन प्रधानमंत्री के हाथों से गोल्डमेडल लेने से इनकार कर दिया और 'प्रधानमंत्री गो बैक' के नारे लगाए इसके लिए उन्हें पुलिस प्रताड़ाना का सामना कर उन्हें जेल भी जाना पड़ा। दलित उत्पीड़न के विरोध में प्रधानमंत्री के हाथों गोल्डमेडल न लेने व विरोध करने के साहसिक निर्णय के लिए जेल से वापस आने के बाद कई राज्यों के तमाम सामाजिक संगठनों ने बुलाकर सम्मानित किया। कई राजनीतिक पार्टियों के मुखिया ने अपने पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव भी रखा लेकिन तब उत्तर प्रदेश की न्यायिक परीक्षा की तैयारी में लगे होने के कारण किसी भी पार्टी में शामिल होना ठीक नहीं समझा।
कुछ समय बाद पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी ने लखनऊ बुलाकर मुलाकात की और समाजवादी पार्टी के अपने सबसे पसंदीदा फ्रंटल लोहिया वाहिनी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया तब से दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाल रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी ने 2023 में विधान परिषद के उपचुनाव में बतौर विधान परिषद सदस्य प्रत्याशी भी बनाया। 2016 में ही राम करन निर्मल का नामांकन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विधि संकाय में पीएचडी हेतु हुआ। इसी दौरान पढ़ाई लड़ाई साथ चलती रही और ह्यूमन राइट्स एण्ड ड्यूटीज से जेआरएफ फिर एसआरएफ और विधि से नेट की परीक्षा भी क्वालीफाई किया।
गुरुवार 5 दिसंबर 24 को पीएचडी की उपाधि हेतु मौखिकी परीक्षा सम्पन्न हुई। इसमें रामकरन ने बाह्य विशेषज्ञ के सवालों का बखूबी जवाब दिया और बाह्य विशेषज्ञ प्रो. संजीव कुमार चड्ढा, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ ने रामकरन निर्मल को डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान किए जाने की संस्तुति की।
रामकरन निर्मल का शोध विषय: ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ लीगल कंट्रोल ऑफ मैनुअल स्केवेनजिंग विद स्पेशल रिफरेंस टू सैनिटरी मेजर्स इन इंडिया (भारत में स्वच्छता उपायों के विशेष संदर्भ के साथ मैनुअल स्कैवेंजिंग के कानूनी नियंत्रण का एक महत्वपूर्ण अध्ययन) है। इसके अंतर्गत डॉ. रामकरन निर्मल ने कि दिखाया कि मैनुअल स्केवेनजिंग मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और सुष्क शौचालय निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993, मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013
संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 38 और 42 के प्रावधानों के भी खिलाफ है और अमानवीय है। आज़ादी के 7 दशकों बाद भी इस प्रथा का जारी रहना देश के लिये शर्मनाक है और जल्द से जल्द इसका अंत होना चाहिये। मैनहोल की सफाई में लगे लाखों कर्मचारी प्रतिवर्ष काल के गाल (मैनहोल) में समा जाने को विवश हैं। सबसे शर्मनाक बात यह है आज तक किसी भी ऐसे ठेकेदार या इस तरह के कार्य को कराने वाले को दण्डित नहीं किया गया है। बावजूद इसके समाज में इस काम में लगे लोगों को या उनके परिवारों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। यह भी एक विडंबना है कि जो गंदगी फैलता है वह अपने आपको श्रेष्ठ और सफाई करने वाले को हेय व घृणा की दृष्टि से देखता है। कुम्भ और महाकुंभ जैसे आयोजनों में प्रतिवर्ष लाखों कर्मचारी शुष्क शौचालय साफ करने को मजबूर होते हैं और सरकार भी मैनुअल स्केवेनजिंग के प्रति गंभीर नहीं दिखाई देती। मैनहोल को मशीनहोल में बदलने के लिए सरकार को गंभीरता से काम करना होगा जिससे इस अमानवीय प्रथा का अंत किया जा सके।
डॉ. रामकरन निर्मल ने अपना शोध प्रोफेसर अंशुमान मिश्रा के निर्देशन में किया है। इन्होंने अपना शोध बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और संत गाडगे महाराज जी को समर्पित किया है।
रामकरन की इस उपलब्धि पर उनके परिवारजनों और मित्रों में खुशी का माहौल है। उन्होंने अपनी इस उपलब्धि का श्रेय अपने माता-पिता, परिजनों और गुरुजनों को दिया है।
डॉ. नरेन्द्र दिवाकर, सुधवर, चायल कौशाम्बी (उ. प्र.)