दुर्दम्य महारथी जतिन बाघा की जयंती
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |
प्रथम विश्व युद्ध जिसके लिए गांधीजी अंग्रेजी सेना के लिए भर्ती अभियान चला रहे थे, उनको भर्ती करने वाला सार्जेन्ट भी कहा गया था।
हिन्दू-जर्मन योजना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक विस्मृतअध्याय है, जिसे स्वाधीनता के अमृत काल में पाठ्यक्रमों में सम्मिलित होना अपेक्षित है। जिसे बरतानिया सरकार ने हिंदू -जर्मन षड्यंत्र कहा है।
जबलपुर/भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दुर्दम्य महारथी जतिन बाघा सदैव कहते थे कि "आमरा मोरबो,जगत जागबे" -जब हम मरेंगे,तभी देश जागेगा।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे विलक्षण महारथी श्रीयुत "बाघा जतिन" (जतीन्द्रनाथ मुखर्जी/यतींद्रनाथ मुखर्जी) थे!यह कहना अतिश्योक्ति न होगी। कहां से प्रारंभ करुं? क्योंकि इतिहास के पन्नों से तो पाश्चात्य इतिहासकारों, एक दल विशेष के समर्थक परजीवी इतिहासकारों, पथभ्रष्ट वामपंथी इतिहासकारों ने, महा महारथी के अवदान को लगभग गायब ही कर दिया है!"जबकि 1911 में अंग्रेजों ने प्रमुख रुप से बाघा जतिन के कारण ही कलकत्ता से दिल्ली राजधानी स्थानांतरित की थी"।बाघा जतिन की "हिन्दू - जर्मन योजना" सफल हो जाती तो देश सन् 1915 में ही स्वतंत्र हो गया होता "।
बाघा जतिन (7 दिसम्बर, 1879 -10 सितम्बर, 1915 ) जतींद्र नाथ मुखर्जी का जन्म जैसोर जिले में सन् 1879 में हुआ था। पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता का देहावसान हो गया। माँ ने बड़ी कठिनाई से उनका लालन-पालन किया। 18 वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक पास कर ली और परिवार के जीविकोपार्जन हेतु स्टेनोग्राफी सीखकर कलकत्ता विश्वविद्यालय से जुड़ गए। वे बचपन से ही बड़े बलिष्ठ थे। सत्यकथा है कि 27 वर्ष की आयु में एक बार जंगल से गुजरते हुए उनकी मुठभेड़ एक बाघ से हो गयी। उन्होंने बाघ को अपने हंसिये से मार गिराया था। इस घटना के बाद यतीन्द्रनाथ "बाघा जतीन" नाम से विख्यात हो गए थे।
"भारतीय इतिहास में अंग्रेजों की हाथों और पैरों से जितनी धुनाई बाघा जतिन ने की है उतनी किसी ने नहीं की है।" जिन दिनों अंग्रेजों ने बंग-भंग की योजना बनायी। बंगालियों ने इसका विरोध खुल कर किया। यतींद्र नाथ मुखर्जी का युवा खून उबलने लगा। उन्होंने साम्राज्यशाही की नौकरी को लात मार कर आन्दोलन की राह पकड़ी।
सन् 1910 में एक क्रांतिकारी संगठन में काम करते वक्त यतींद्र नाथ 'हावड़ा षडयंत्र केस' में गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें साल भर की जेल काटनी पड़ी। वायसराय लॉर्ड मिंटो ने उस वक्त कहा था, “A spirit hitherto unknown to India has come into existence, a spirit of anarchy and lawlessness which seeks to subvert not only British rule but the Governments of Indian chiefs.“। इसी स्प्रिट को बाद में इतिहासकारों ने ‘जतिन स्प्रिट’ का नाम दिया। जेल मुक्त होने पर वह 'अनुशीलन समिति' के सक्रिय सदस्य बन गए और 'युगान्तर' का कार्य संभालने लगे। उन्होंने अपने एक लेख में उन्हीं दिनों लिखा था- 'पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है। देसी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्मनिर्णय द्वारा जीवन यापन का अवसर देना हमारी मांग है।'
हिन्दू-जर्मन योजना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक विस्मृतअध्याय है, जिसे स्वाधीनता के अमृत काल में पाठ्यक्रमों में सम्मिलित होना अपेक्षित है। जिसे बरतानिया सरकार ने हिंदू -जर्मन षड्यंत्र कहा है। यह प्रथम विश्वयुद्ध दौरान 1914 से 1918 के बीच ब्रिटिश राज के विरुद्ध एक अखिल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आरम्भ करने के लिये बनाई योजनाओं और प्रयत्नों के लिये अंग्रेज सरकार द्वारा दिया गया नाम है। इस महान प्रयत्न में भारतीय राष्ट्वादी संगठन तथा भारत, अमेरिका और जर्मनी के सदस्य सम्मिलित थे। आयरलैण्ड के रिपब्लिकन तथा जर्मन विदेश विभाग ने इसमें भारतीयो का सहयोग किया था। अमेरिका स्थित गदर पार्टी, जर्मनी स्थित बर्लिन कमिटी, भारत स्थित गुप्त क्रांतिकारी संगठन और सान फ़्रांसिसको स्थित दूतावास के द्वारा जर्मन विदेश विभाग ने साथ मिलकर इसकी योजना बनायी थी। सबसे महत्वपूर्ण योजना पंजाब से लेकर सिंगापुर तक सम्पूर्ण भारत में ब्रिटिश भारतीय सेना के अन्दर असंतोष फैलाकर स्वतंत्रता संग्राम लड़ने की थी। यह योजना फरवरी 1915 मे क्रियान्वित करके, हिन्दुस्तान से ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के उद्देश्य लेकर बनाई गयी थी।
प्रथम विश्व युद्ध जिसके लिए गांधीजी अंग्रेजी सेना के लिए भर्ती अभियान चला रहे थे, उनको भर्ती करने वाला सार्जेन्ट भी कहा गया था। उस विश्व युद्ध को क्रांतिकारियों ने अपने लिए सुनहरा मौका माना। वीरेन्द्र चट्टोपाध्याय के नेतृत्व में ज्यूरिख में बर्लिन कमेटी बनाई गई, तो लाला हरदयाल, सोहन सिंह भाखना ने गदर पार्टी ने अमेरिका और कनाडा के सिख क्रांतिकारियों को लेकर गदर पार्टी शुरू की और भारत में इसकी कमान युगांतर पार्टी के नेता बाघा जतिन के हवाले थी। अब तैयार हुआ हिन्दू -जर्मन प्लॉट, जर्मनी से हथियार आना था, और पैसा चुकाने के लिए जतिन के साथियों ने धन हस्तगत करने के लिए कई अनुष्ठान किये, जिन्हें प्रकारांतर से पूर्ववर्ती इतिहासकारों ने पूर्वाग्रह से डकैती कहा है।
दुलरिया नामक स्थान पर धन हस्तगत करने हेतु भीषण आक्रमण के दौरान अपने ही दल के एक सहयोगी की गोली से क्रांतिकारी अमृत सरकार घायल हो गए। विकट समस्या यह खड़ी हो गयी कि धन लेकर भागें या साथी के प्राणों की रक्षा करें! अमृत सरकार ने जतींद्र नाथ से कहा कि धन लेकर भागो। जतींद्र नाथ इसके लिए तैयार न हुए तो अमृत सरकार ने आदेश दिया- 'मेरा सिर काट कर ले जाओ ताकि अंग्रेज पहचान न सकें। 'इन अनुष्ठानों में 'गार्डन रीच' का अनुष्ठान बड़ा मशहूर माना जाता है । इसके नेता जतींद्र नाथ मुखर्जी थे। विश्व युद्ध प्रारंभ हो चुका था। कलकत्ता में उन दिनों राडा कम्पनी बंदूक-कारतूस का व्यापार करती थी। इस कम्पनी की एक गाडी रास्ते से गायब कर दी गयी थी जिसमें क्रांतिकारियों को 52 माऊजर पिस्तौलें और 50 हजार गोलियाँ प्राप्त हुई थीं। दुर्भाग्य से ब्रिटिश गुप्तचर सेवा ने गदर आंदोलन में सेंध मारी करके हिंदू- जर्मन गठजोड़ का पता लगा लिया और गिरफ्तारियां शुरू हो गयीं वहीँ भारत में ब्रिटिश सरकार हो ज्ञात हो चुका था कि 'बलिया घाट' तथा 'गार्डन रीच' के धन हस्तगत करने हेतु अनुष्ठानों में जतींद्र नाथ का हाथ था।
9 सितंबर 1915 को पुलिस ने जतींद्र नाथ का गुप्त अड्डा 'काली पोक्ष' (कप्तिपोद) ढूंढ़ निकाला।
जतींद्र बाबू साथियों के साथ वह जगह छोड़ने ही वाले थे कि राज महन्ती नामक अफसर ने गाँव के लोगों की मदद से उन्हें पकड़ने की कोशश की। बढ़ती भीड़ को तितरबितर करने के लिए जतींद्र नाथ ने गोली चला दी। राज महन्ती वहीं ढेर हो गया। यह समाचार बालासोर के जिला मजिस्ट्रेट किल्वी तक पहुंचा दिया गया। किल्वी दल बल सहित वहाँ आ पहुंचा। यतीश नामक एक क्रांतिकारी बीमार था। जतींद्र उसे अकेला छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे। चित्तप्रिय नामक क्रांतिकारी उनके साथ थे। दोनों तरफ़ से गोलियाँ चली। चित्तप्रिय का बलिदान हो गया।
वीरेन्द्र तथा मनोरंजन नामक अन्य क्रांतिकारी मोर्चा संभाले हुए थे। इसी बीच यतींद्र नाथ का शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था। वह जमीन पर गिर कर 'पानी-पानी' चिल्ला रहे थे। मनोरंजन उन्हें उठा कर नदी की और ले जाने लगे। तभी अंग्रेज अफसर किल्वी ने गोलीबारी बंद करने का आदेश दे दिया। गिरफ्तारी देते वक्त जतींद्र नाथ ने किल्वी से कहा- 'गोली मैं और चित्तप्रिय ही चला रहे थे। बाकी के तीनों साथी बिल्कुल निर्दोष हैं। 10 सितंबर 1915 में भारत के स्वाधीनता संग्राम के इस महान् सेनानी ने अस्पताल में सदा के लिए आँखें मूँद लीं और हिंदू-जर्मन योजना का भी पटाक्षेप हो गया, परंतु इससे भी दुखद यह रहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास लेखन में हिंदू- जर्मन योजना का उल्लेख तक ना हुआ।
डॉ आनंद सिंह राणा,
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं , इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत