बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़ती हिंसा

Tue 03-Dec-2024,06:06 PM IST +05:30

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बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़ती हिंसा बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़ती हिंसा
  • हर साल 2-3 लाख हिंदू बांग्लादेश छोड़कर पलायन करते रहे हैं। 

  • बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी घटकर 8-9% रह गई। 

Uttar Pradesh / Aligarh :

बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार क्यों? क्या ये हिंदुओं पर भारी संकट की ओर इशारा कर रहा है। 
 
बांग्लादेश में हाल ही में हिंदू समुदाय पर अत्याचार और हिंसा के कई मामले सामने आए हैं। अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं, पर हमले बढ़ गए। इस हिंसा में घरों, मंदिरों और दुकानों को निशाना बनाया गया, जिसमें कई स्थानों पर आगजनी और लूटपाट भी हुई।
घटनाओं का सिलसिला 
अगस्त 2024 में लगभग 52 जिलों में हिंदुओं पर 200 से अधिक हमले हुए। खलना डिविजन में सबसे ज्यादा हमले दर्ज किए गए। कई मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया, जिनमें एक इस्कॉन मंदिर को जला दिया गया। कई हिंदू परिवारों ने अपनी जमीन और संपत्ति खो दी। शेख हसीना की पार्टी, अवामी लीग, को पारंपरिक रूप से हिंदू समुदाय का समर्थन मिलता रहा है। नई अंतरिम सरकार बनने के बाद कई हिंदुओं को राजनीतिक प्रतिशोध का सामना करना पड़ा, जिससे यह हिंसा और बढ़ गई। इस हिंसा में 230 से अधिक लोगों की जान गई। सैकड़ों हिंदू परिवार अपनी जान बचाने के लिए भारत भागने पर मजबूर हुए हैं। भारत सरकार ने स्थिति पर चिंता व्यक्त की है और इसे नजदीकी से मॉनिटर कर रही है। ढाका में हिंदू समुदाय ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन कर सरकार से सुरक्षा की मांग की। कई लोग अब अपने घरों में भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं, और सामाजिक स्थिति अत्यधिक तनावपूर्ण हो चुकी है।
बांग्लादेश में क्यों हो रही हिंसा
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, यह हिंसा न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक प्रतिशोध और सांप्रदायिक तनाव का भी परिणाम है। अल्पसंख्यक समुदायों ने अंतरिम सरकार से सुरक्षा की मांग की है, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस स्थिति की आलोचना हो रही है। यह स्थिति बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर गंभीर सवाल उठाती है।
बांग्लादेश में हिंदू आबादी और उनके पलायन
इतिहास की बात करें तो 1971 में बांग्लादेश के गठन के समय (पूर्वी पाकिस्तान से अलग होकर) बांग्लादेश में हिंदू आबादी लगभग 22-23% थी। यह 2022-2023 तक, बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी घटकर 8-9% रह गई। यह गिरावट मुख्य रूप से धार्मिक उत्पीड़न, सामाजिक भेदभाव और पलायन के कारण हुई है।
1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान बड़ी संख्या में हिंदू शरणार्थी भारत आए। करीब 1 करोड़ लोगों ने भारत में शरण ली थी, जिनमें से अधिकांश हिंदू थे। बांग्लादेश में "वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट" (एन्क्लेम्ड प्रॉपर्टी एक्ट) के तहत हिंदुओं की जमीन और संपत्तियों को जब्त कर लिया गया, जिससे पलायन को बढ़ावा मिला। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल 2-3 लाख हिंदू बांग्लादेश छोड़कर पलायन करते रहे हैं। भारत में बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों की संख्या सटीक रूप से बताना मुश्किल है, लेकिन कुछ रिपोर्टों के अनुसार, यह संख्या 2-3 करोड़ हो सकती है। ये शरणार्थी मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और मेघालय जैसे राज्यों में बसे हैं।
पलायन के मुख्य कारण धार्मिक असहिष्णुता और सांप्रदायिक हिंसा (जैसे 1990, 2001, और 2013 में बड़े हमले), संपत्ति हड़पने के लिए हिंदुओं पर दबाव और राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता रहे हैं। भारत सरकार ने 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पास किया, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता प्रदान करने की कोशिश करता है।
धर्मगुरु चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी
हाल ही में बांग्लादेश की एक और घटना चर्चा में है जिसमें नवंबर 2024 में बांग्लादेश में हिंदू नेता और ISKCON से जुड़े चिन्मय कृष्ण दास को गिरफ़्तार किया गया, जिसने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और विवाद को जन्म दिया। यह गिरफ्तारी ढाका एयरपोर्ट पर हुई, जब वह चटगांव जा रहे थे। उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया और अदालत ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। उन्हें राजद्रोह और बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के अपमान का आरोप लगाकर गिरफ़्तार किया गया। उनकी गिरफ़्तारी से पहले उन्होंने अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा के लिए रैलियाँ आयोजित की थीं। इन रैलियों को सरकार ने अस्थिरता फैलाने का प्रयास माना, विशेषकर शेख हसीना के शासन के बाद नए प्रशासन के आने के संदर्भ में। इन गतिविधियों को लेकर स्थानीय अधिकारियों और बहुसंख्यक समुदाय के साथ टकराव की स्थिति बनी।
चिन्मय दास की गिरफ़्तारी के बाद, ढाका और चटगांव जैसे शहरों में उनके समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भी हुई, जिसमें हिंदू समुदाय के प्रदर्शनकारियों पर हमला किया गया। कई हिंदू संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने इस गिरफ़्तारी की निंदा की और इसे धार्मिक स्वतंत्रता के हनन के रूप में देखा। इतना ही नहीं, देश और विदेश में भी विरोध प्रदर्शन हुए। 
इस घटना ने एक बार फिर बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति पर ध्यान आकर्षित किया। पिछले कुछ दशकों में, अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को अक्सर भूमि कब्ज़ा, हिंसा और धार्मिक उत्पीड़न जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा है। हालांकि कुछ नेता और संगठन उनके अधिकारों के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता के कारण उनकी स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी राजनीतिक कारणों से प्रेरित हो सकती है। बांग्लादेश में सांप्रदायिक तनाव और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है, जिससे हिंदू समुदाय की स्थिति गंभीर बनी हुई है। यह घटना अल्पसंख्यकों के प्रति देश के सामाजिक और प्रशासनिक रवैये को लेकर सवाल खड़े करती है।
हिंदुओं की स्थिति बांग्लादेश में काफी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि कई बार उन्हें धार्मिक और राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे मामलों से यह भी स्पष्ट होता है कि अल्पसंख्यकों के लिए निष्पक्ष न्याय और सुरक्षा की व्यवस्था मजबूत करने की आवश्यकता है।