पूर्वोत्तर भारत: “सात बहनों” के नाम से प्रसिद्ध विशिष्ट सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता वाला क्षेत्र
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घने जंगल और नदियों का सुनहरा दृश्य यहाँ की सुंदरता का गवाह है।
वार्षिक मानसून के दौरान वर्षा, आंधी तूफान यहाँ की सभी पहाड़ियों, घाटियों और मैदानों में प्रभाव दिखाते हैं।
पूर्वोत्तर भारत, जिसे उत्तर-पूर्वी क्षेत्र भी कहा जाता है, भारत का एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें आठ राज्य शामिल हैं। इन राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम आते हैं। यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता के लिए जाना जाता है। सिक्किम के अतिरिक्त बाकी एक साथ जुड़े हुए राज्यों को “सात बहनों” के नाम से भी जाना जाता है।
आज़ादी से पूर्व की बात करें तो यह क्षेत्र मुख्य रूप से असम एवं बंगाल क्षेत्र में विभाजित था। विभाजन के पश्चात् तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्र में असम एवं कुछ अन्य क्षेत्रों से धीरे-धीरे सात राज्यों का गठन हुआ। इन राज्यों के गठन में राजनीतिक एवं स्थानीय समुदायों ने अहम भूमिका निभाई। स्थानीय समुदाय जैसे-नगाओं की मांग पर नगालैंड राज्य का गठन किया गया। उत्तर-पूर्व क्षेत्र में इन सात राज्यों के अतिरिक्त सिक्किम को भी शामिल किया जाता है। यद्यपि सिक्किम मूल रूप से भारत का हिस्सा नहीं था लेकिन वर्ष 1975 में सिक्किम की इच्छा के अनुरूप इसको भारत में शामिल कर लिया गया।
भौगोलिक स्वरूप की बात करें तो पूर्वोत्तर भारत की सीमाएँ कई देशों से मिलती हैं, जिनमें चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार शामिल हैं। यह क्षेत्र ब्रह्मपुत्र और बराक घाटियों के कारण उपजाऊ है और यहाँ कई पहाड़ी और वनाच्छादित क्षेत्र भी हैं। इसके उत्तर में चीन एवं भूटान, पूर्व की ओर म्याँमार तथा दक्षिण में बांग्लादेश स्थित है। भारत के अन्य हिस्सों से यह क्षेत्र सिलीगुड़ी गलियारे के माध्यम से ही प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है जिसके कारण कनेक्टिविटी इस क्षेत्र के लिये प्रमुख समस्या बन गई है। सिलीगुड़ी कॉरीडोर पश्चिम बंगाल में स्थित है जिसकी औसत चौड़ाई 21 किलोमीटर से 40 किलोमीटर के बीच है। यह उत्तरपूर्वीय क्षेत्र को मुख्य भारतीय भूभाग से जोड़ता है। यहाँ विकास से जुड़ी गतिविधियाँ सीमित रही हैं। इसके अतिरिक्त भौगोलिक स्थिति तथा स्थानीय जनजातीय संस्कृति एवं अलगाववाद भी इसके विकास में बाधक बना रहा।
सांस्कृतिक विविधता:
पूर्वोत्तर भारत सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध है। यहाँ के लोग विभिन्न जनजातियों से आते हैं और प्रत्येक जनजाति की अपनी विशिष्ट भाषा, वेशभूषा, त्यौहार और रीति-रिवाज होते हैं। प्रमुख त्यौहारों में बिहू (असम), होरनबिल फेस्टिवल (नागालैंड), शिरुई लिली फेस्टिवल (मणिपुर) आदि शामिल हैं। यह एशिया के उन क्षेत्रों में से एक है जो नैतिक रूप से तथा भाषायी रूप से सर्वाधिक विविधता वाले क्षेत्र हैं, जहां प्रत्येक राज्य की अपनी विशिष्ट संस्कृति तथा परंपराएँ हैं।कुछ समूह दक्षिण-पूर्व एशिया से विस्थापित हो कर यहाँ बसे हैं। वे अपनी सांस्कृतिक परंपराएँ तथा मूल्य यथावत सहेज कर रखे हुए हैं। घने जंगल और नदियों का सुनहरा दृश्य यहाँ की सुंदरता का गवाह है। वार्षिक मानसून के दौरान वर्षा, आंधी तूफान यहाँ की सभी पहाड़ियों, घाटियों और मैदानों में प्रभाव दिखाते हैं। सर्दियों में घाटियों में चारों ओर धुंध छा जाती है जबकि गर्मियों की बरसातों में यह पहाड़ियों पर आने वाले लोगों के सिर से तकराती है, जो बहुत ही मोहक दृश्य का निर्माण करती है।
भाषाएँ:
इस क्षेत्र में असमिया, मणिपुरी, गारो, खासी, मिजो, नागामीस, बंगाली और कई अन्य जनजातीय भाषाएँ बोली जाती हैं। अपनी जादुई सुंदरता तथा हतप्रभ करने वाली विविधता के लिए प्रसिद्ध पूर्वोत्तर भारत विभिन्न भाषाएँ बोलने वाली 166 से अधिक अलग-अलग जनजातियों के रहने कास्थल है। अंग्रेजी भी यहाँ व्यापक रूप से प्रयोग की जाती है।
अर्थव्यवस्था:
पूर्वोत्तर भारत की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। चाय, बांस, रबर, और रेशम यहाँ की प्रमुख फसलें हैं। इसके अतिरिक्त, हैंडलूम और हस्तशिल्प उद्योग भी महत्वपूर्ण हैं। पर्यटन भी एक उभरता हुआ क्षेत्र है, खासकर इसके प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर के कारण।इन राज्यों में मछली पकड़ना, नौका विहार, राफ्टिंग, ट्रैकिंग और हाइकिंग भी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त यहाँ विभिन्न वन्य जीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान हैं जहां दुर्लभ जानवर, पक्षी तथा पौधे पाए जाते हैं।
प्रमुख पर्यटन स्थल:
इस क्षेत्र में अनेक प्रमुख पर्यटन स्थल हैं, जैसे:-
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (असम): यह एक विश्व धरोहर स्थल है और एक सींग वाले गैंडे के लिए प्रसिद्ध है।
जुकू घाटी (नागालैंड): यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता और विविधता के लिए प्रसिद्ध है।
मेघालय के चेरापूंजी और मौसिनराम: यह विश्व के सबसे अधिक वर्षा वाले स्थानों में गिने जाते हैं।
तवांग मठ (अरुणाचल प्रदेश): यह एक प्रमुख बौद्ध धार्मिक स्थल है।
ऐतिहासिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि:
पूर्वोत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति विशेष रही है, यहाँ के कुछ क्षेत्रों में लंबे समय तक विद्रोह और अलगाववाद का दौर रहा है। परंतुपिछले कुछ दशकों में विकास और शांति की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं, जिससे स्थिति में सुधार हुआ है।
प्रमुख चुनौतियाँ:
पूर्वोत्तर भारत के राज्य कई विशिष्ट चुनौतियों का सामना कर रहे हैं जो उनके समग्र विकास को प्रभावित करती हैं। इन चुनौतियों को समझना और उनके समाधान के लिए प्रयास करना अत्यंत आवश्यक है।
भौगोलिक और अवसंरचनात्मक चुनौतियों में मुख्य रूप से यहाँ की दुर्गम भूभाग है जहाँ पहाड़ी और जंगल क्षेत्रों के कारण बुनियादी ढांचे का विकास कठिन है। यातायात और कनेक्टिविटी के लिए सड़क, रेल, और हवाई संपर्क सीमित और अविकसित हैं, जिससे व्यापार और पर्यटन पर असर पड़ता है। सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियों में जातीय विविधता और संघर्ष प्रमुख रूप से उभर कर आते हैं। यहाँ विभिन्न जनजातियों और समुदायों के बीच संघर्ष और असंतोष की स्थिति है, जो क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करती है। बाहरी प्रभावों के कारण यहाँ की सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं पर खतरा मंडराता है। आर्थिक चुनौतियों को देखेँ तो यहाँ की अर्थ व्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है और यहाँ की कृषि मुख्यतः वर्षा पर निर्भर है और आधुनिक कृषि तकनीकों का अभाव है। इन क्षेत्रों में बड़े उद्योगों और रोजगार के अवसरों की कमी है, जिससे बेरोजगारी और आर्थिक असुरक्षा बढ़ रही है। आर्थिक संसाधनों की कमी और निवेश का अभाव विकास को बाधित करता है। शिक्षण प्रणाली की बात करें तो यहाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा संस्थानों की कमी है और उच्च शिक्षा के लिए सीमित अवसर हैं। स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव और चिकित्सा सुविधाओं की कमी से जनस्वास्थ्य की समस्याएँ बढ़ रही हैं।संवेदनशील राजनीतिक स्थिति होने की वजह से यह क्षेत्र बहुत प्रभावित है। अलगाववादी आंदोलनों और विद्रोहों के कारण क्षेत्र में हमेशा अस्थिरता बनी रहती है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ विकास को प्रभावित करती हैं। पर्यावरणीय चुनौतियों में वन्य जीव और वनस्पति संरक्षण शामिल है जिसमें अवैध कटाई और वन्य जीवों का शिकार पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।बदलते जलवायु पैटर्न के कारण बाढ़ और भूस्खलन जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।मूलभूत सुविधाओं की कमी है जिसमें बिजली और जल आपूर्ति की समस्या शामिल है। स्थायी और विश्वसनीय बिजली और जल आपूर्ति की कमी है।इंटरनेट और संचार सेवाओं का अभाव भी एक बड़ी समस्या है।
समाधान के प्रयास:
इन चुनौतियों से निपटने के लिए स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर योजनाएँ बनाई जा रही हैं। बेहतर अवसंरचना, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, उद्योगों का विकास, और सामाजिक सद्भावना को बढ़ावा देने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। पूर्वोत्तर भारत की अनूठी चुनौतियों को समझकर और उनके समाधान के लिए ठोस प्रयास करके ही इस क्षेत्र के सतत और समावेशी विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है।
पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक समृद्धि इसे एक अनूठा और आकर्षक क्षेत्र बनाती है। यहाँ की विविधता और अनूठेपन को समझने और अनुभव करने के लिए यह जानकारी सहायक हो सकती है।