कंस वध की लीला मे साहित्य के सभी रसों का मंचन
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श्रीकृष्ण और बलराम ने कंस का वध कर मथुरा के सिंहासन को न्यायपूर्ण शासक के हवाले किया।
नागपुर/नागपुर महानगरपालिका तथा लोटस कल्चरल एण्ड सपोर्टिंग असोसिएशन द्वारा पूर्व महापौर दयाशंकर तिवारी के संयोजन में वृंदावन के जग प्रसिद्ध स्वामी कृष्ण मुरारी जी के निर्देशन में 12 जनवरी 2025 तक पंद्रह दिवसीय श्री कृष्ण चरित्र महा रास लीला का आयोजन भक्तिमय वातावरण में शुरू है आज का प्रारम्भिक पूजन पूर्व महापौर दयाशंकर तिवारी, अनिल बावनगढ, भोलेनाथ जोशी, सिद्धार्थ जोशी की उपस्थिति में संपन्न आज के के लीला प्रसंग में कंस वध के अंतर्गत 4 घंटों की लीला में हिंदी साहित्य के सभी नौ रसों का मंचन हुआ. प्राथमिक दृश्य अंतर्गत कंस का दरबार दिखाया गया उसके राज्य के तमाम शूरवीर सूरमाओं से परिचय करवाया गया. चार प्रकार के वीर भट.,महाभट, सुभट और दारुणभट कंस के पास है. त्रिलोक में कंस सर्वशक्तिमान प्रतीत होता है तथा उसे अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने में परम आनंद की प्राप्ति होती है. तभी कंस के दरबार में देव ऋषि नारद का आगमन होता है वह कंस को याद दिलाते हैं कि किस प्रकार भविष्यवाणी के द्वारा यह बताया गया था कि देवकी का आठवां पुत्र उसका काल है तथा कृष्ण और बलराम के द्वारा कम उम्र में ही किस-किस प्रकार के अनेक महा पराक्रमी कार्य किए गए हैं, उन समस्त कार्यों को याद दिलाते हुए वह कहते हैं कि जैसा भी संभव हो वे दोनों को अतिशीघ्र समाप्त करना होगा वरना वे ही दोनों तुम्हारे काल का कारण बनेंगे क्योंकि आज तक तुमने जिन राक्षस तथा पराक्रमी योद्धाओं को भेजा है उन सब का वध कृष्ण तथा बलराम के द्वारा किया गया है इसलिए आप इस बार इन दोनों को मथुरा बुलवाइये तथा इनका वध कर डालिए. राजा कंस नारद की इस बात को गंभीरता से लेते हुए कृष्ण तथा बलराम दोनों को धनुष यज्ञ के बहाने मथुरा बुलाने की योजना बनाता है अपने दरबारी की सलाह लेते हुए स्वयं ब्रजभूमि से संबंधित अपने सेनापति अक्रूर को कृष्ण व बलराम को लेने के लिए बृज भिजवाता है. इधर जब कंस रात्रि में भोजन करता है तब उसे हर वस्तु में कृष्ण ही कृष्ण नजर आते हैं.
वह भयभीत हो जाता है विश्राम करने जाता है उसे ना ना प्रकार के बुरे सपने आते हैं तथा स्वप्न में श्री कृष्ण तथा बलराम उसका वध करते हुए उसे नजर आते हैं. उधर अक्रूर राज आज्ञा का पालन करते हुए चले तो जाते हैं मार्ग में तमाम प्रकार के विचार उनके दिमाग में आते हैं सब अनिष्ट का सोचते सोचते हुए मार्ग से भटक जाते हैं ऐसे समय स्वयं श्री कृष्ण जी बलदाऊ तथा सब ग्वालो के संग अक्रूरजी के पास आ जाते हैं तथा उनको सब सम्मान अपने घर ले जाते हैं. नंद बाबा तथा माता यशोदा कृष्ण तथा बलराम को भेजने को तैयार नहीं हैं तब श्री कृष्ण जाते समय अपनी मइया व बाबा से अपने द्वारा की गई सारी शरारतों के लिए क्षमा मांगते है. विरह में व्याकुल गोपियाँ न जाने का अनुनय विनय करती है तब राधा जी के लिए अपनी बंसी तथा कामरिया देकर जाते है. अक्रूरजी दूसरे दिन दोनों भाइयों को लेकर मथुरा आते हैं तब भी उनका मन वैसे व्याप्त है अब श्री कृष्ण जी भूख लगने का बहाना करते हुए उनको यमुना स्नान करने को कहते हैं तथा अपने वास्तविक रूप का दर्शन कराते हैं तबीयत लेकर मथुरा की ओर बढ़ते हैं उधर कान से इन दोनों को मरवाने का पुख्ता इंतजाम करवाता है पर सब व्यर्थ जाता है. सबसे पहले रजत धोबी का आक्रमण श्री कृष्णा बेकार कर देते हैं तथा उसका वध करते हैं. इस बीच राजमली राज दर्जी तथा कंस के जितने भी श्रृंगारकर्ता होते हैं वे कृष्ण जी के पास जाकर उनका श्रृंगार करने की इच्छा व्यक्त करते हैं तथा श्री कृष्ण सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं. इसके बाद सात जगह से वक्र कुब्जा की कमर में लात मार करके इस सीधी कर देते हैं तथा उसका उद्धार करते हैं कुब्जा उद्धार के बाद चांदूर तथा मुस्ताक जैसे कंस के सबसे महा पराक्रमी वीरों को एक-एक कर कृष्ण और बलराम परास्त कर देते हैं.
एरावत के समान शक्तिशाली कवलियापीढ़ हाथी को भी मार गिराया जाता है इन सब के बाद कृष्ण और बलराम को कंस चुनौती देता है तथा तब उसकी चुनौती को स्वीकार कर कंस के बाल पड़कर दोनों कंस को जमीन पर पटक देते हैं तथा बाद ही रोचक पराक्रम दिखा करके कंस का वध कर देते हैं अपने माता-पिता को कारागृह से मुक्ति दिलाते हैं तथा कंस के पिता को भी कारागृह से मुक्ति दिला करके उन्हें मथुरा का राज सिंहासन सौंप देते हैं इस तरह से आज की लीला का प्रसंग समाप्त होता है. इस आयोजन की सफ़लता हेतु सर्व श्री गिरधारी मंत्री, विपुल मिश्रा, क्षमाशंकर तिवारी, सुनील काबरा, अतुल मशरू, कल्यान चौबे, राजेश तिवारी, अविनाश साहू, प्रशांत गुप्ता, जीतू बाथो, रमाकांत गुप्ता, विवेक ठाकुर, उमेश ओझा, सुनील शर्मा, अनिल बावनगढ, कन्हैया राठौड़, डॉ विजय तिवारी, कृपाशंकर तिवारी, अशोक शुक्ला, बृजभूषण शुक्ला, अजय गौर, अमोल कोल्हे, अनूप गोमासे, नंदु बाहेकर, कृष्ण मोहन जोशी, सिद्धार्थ जोशी, कविता इंगडे, मंदा पाटिल, कल्पना कुंभलकर, मंजु कुंभलकर, शीला दुबे, किरण श्रीवास्तव, रेखा साहू, ज्योती वर्मा, मालती बाथो इत्यादि प्रयासरत है।