गिरिराज धरण व छप्पन भोग की अद्वितीय लीला, रासलीला में कंस का वध
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महा रासलीला में श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र की पूजा रोककर गिरिराज पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया। गिरिराज पर्वत की पूजा 56 प्रकार के भोग के साथ भव्य रूप से संपन्न हुई, जहां भगवान ने स्वयं भोग स्वीकार किए।
महा रासलीला के अगले भाग में कंस वध का वर्णन किया जाएगा। आयोजन की सफलता के लिए विभिन्न सदस्यों और समिति के प्रयासों से यह आयोजन भक्ति और सांस्कृतिक समर्पण का अद्वितीय उदाहरण बना है।
नागपुर/नागपुर महानगरपालिका तथा लोटस कल्चरल एण्ड सपोर्टिंग असोसिएशन द्वारा पूर्व महापौर दयाशंकर तिवारी के संयोजन में वृंदावन के जग प्रसिद्ध स्वामी कृष्ण मुरारी जी के निर्देशन में 12 जनवरी 2025 तक पंद्रह दिवसीय श्री कृष्ण चरित्र महा रास लीला का आयोजन भक्तिमय वातावरण में शुरू है. आज का प्रारम्भिक पूजन पूर्व महापौर दयाशंकर तिवारी, अतुल कोटेचा, संजय गुप्ता, राजेश गुप्ता, प्रशांत गुप्ता, रमाकांत गुप्ता, राजेश(बब्बु ) गुप्ता, संजय झंवर, राजेश जैसवाल की उपस्थिति में संपन्न हुआ. 84 कोश में पहले ब्रिज भूमि में एक परंपरा चली आ रही थी कि वह सब कार्तिक सुदी परिवा के दिन अपने प्रिय देवता इंद्र की महा पूजा किया करते थे हर वर्ष विशाल स्तर पर यह आयोजन किया जाता था.
इस वर्ष भगवान इंद्र की पूजा की समस्त जिम्मेदारी नंद बाबा पर रहती है. परंतु अपने पुत्र मोह में फंसकर बाबा नंद इस विशाल पूजन की पूर्ण तैयारी करना विस्मृत कर जाते हैं. ऐसे समय एक दिन यशोदा नंद बाबा से कहती है कहत नंद से नंद की रानी सुर पति पूजा तुम्ही भुलानी हे नाथ हमारे देव इंद्र ही तो हमारे सारे विघ्न दूर करते हैं उनके ही आशीर्वाद से हमारे यहां हजारों मथानिया एक साथ चलती है, हमें पुत्र रत्न की प्राप्ति भी भगवान इंद्र की कृपा से ही हुई है, सुरपति है कुलदेव हमारे गोपाल गाय गोप बृज के रखवारे और इसीलिए इनका पूजन नितांत आवश्यक है. चलिए तैयारी कीजिए इंद्र पूजन की. नंद बाबा समस्त बृजवासियों की सभा बुलाकर अत्यंत धूमधाम से इंद्र का पूजा करने की योजना समझाते हैं. जैसे-जैसे पूजा का समय निकट आता है वैसे-वैसे तमाम प्रकार के मिष्ठान इत्यादि बनाए जाते हैं. तब बालकृष्ण स्वयं मिष्ठान खाने की जिद पकड़ लेते हैं. वे कहते हैं कि हे माता तेरा देवता कैसा है जो इतनी सारी मिठाइयां खा जाता है यशोदा कृष्ण को नंद के पास भेजती है तो नंद उन्हें समझाते हैं कि इंद्र तो स्वर्ग के सम्राट है उनके बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए. तब श्री कृष्ण कहते हैं कि आप भी यदि हजार अश्वमेध में यज्ञ करवा लो तो आप भी इंद्र बन सकते हैं. इसलिए आप इंद्र की पूजा मत कीजिए. मेरे एक देवता है जो हर समय मेरी सहायता करते रहते हैं आप सब मेरे ईश्वर का ही पूजन कीजिए. क्योंकि वह मेरे सपने में आए थे तथा उन्होंने कहा है कि आप सब मेरी पूजा कीजिए मैं आपकी हर मनोकामना पूर्ण करूंगा. इस पर नंद बाबा कान्हा की बात पर सारे बृजवासियों की पंचायत भरवाते हैं. तब उस पंचायत में जमकर बहस बाजी होती है.
ब्रज के कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं है कि देवराज इंद्र की जगह पर अब कृष्ण के देवता गिरिराज का पूजन किया जाए तमाम प्रकार के तर्क वितर्क होते हैं तथा अंतिम रूप से सब लोगों में मिलकर इस बात के लिए सहमति हो जाती है कि इस वर्ष भगवान इंद्र की जगह गिरिराज पर्वत की पूजा की जाएगी. संपूर्ण 7 कोष में फैले गिर्राज पर्वत का पूजन 84 कोष में फैले ब्रज वासियों के सहयोग से किया जाता है. 56 प्रकार के भोग बना करके छप्पन भोग का आयोजन होता है 56 प्रकार के विभिन्न व्यंजन बनाकर के 56 भोग चांदी की थालियां में सजाकर श्री गिरिराज महाराज के सामने परोस कर एक अद्भुत अत्यंत सुंदर नयनाभिराम दृश्य साकार होता है. भगवान श्री कृष्ण तथा बलराम दोनों मिलकर के विधिवत तरीके से गिरिराज पर्वत की पूजा करते हैं तथा पूजन के बाद स्वयं गिरिराज पर्वत से आवाज आती है कि अब मुझे भोग लगाइए. तब सभी बृजवासी खुश हो जाते हैं और वह कहते हैं हमने इतने वर्षों से भगवान इंद्र की पूजा की परंतु कभी भी इंद्र भगवान ने स्वयं हो करके हमारे भोग को प्रत्यक्ष रूप से स्वीकार नहीं किया तथा कन्हैया के देव ने तो स्वयं ही हमसे न केवल भोग की मांग की अपितु अपनी हजारों भुजाओं से इसे स्वीकार भी कर रहे हैं.
इस तरह से संपूर्ण बृजवासी मिलकर के इस आनंद उत्सव का लाभ उठाते हैं अंत में गिरिराज जी की आरती होती है और आज की लीला पर कल तक के लिए विराम लग जाता है. अगली लीला में श्री कंस वध का वर्णन किया जाएगा. महा रासलीला की सफ़लता हेतु सर्व श्री गिरधारी मंत्री, विपुल मिश्रा, क्षमाशंकर तिवारी, सुनील काबरा, अतुल मशरू, कल्यान चौबे, राजेश तिवारी, अविनाश साहू, प्रशांत गुप्ता, जीतू बाथो, रमाकांत गुप्ता, विवेक ठाकुर, उमेश ओझा, सुनील शर्मा, अनिल बावनगढ, कन्हैया राठौड़, डॉ विजय तिवारी, कृपाशंकर तिवारी, अशोक शुक्ला, बृजभूषण शुक्ला, अजय गौर, अमोल कोल्हे, अनूप गोमासे, नंदु बाहेकर, कृष्ण मोहन जोशी, सिद्धार्थ जोशी, कविता इंगडे, मंदा पाटिल, कल्पना कुंभलकर, मंजु कुंभलकर, शीला दुबे, किरण श्रीवास्तव, रेखा साहू, ज्योती वर्मा, मालती बाथो इत्यादि प्रयासरत है।