हाइपरलूप: भारत में परिवहन का भविष्य

Fri 28-Feb-2025,06:06 PM IST +05:30

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हाइपरलूप: भारत में परिवहन का भविष्य
  • IIT मद्रास ने रेल मंत्रालय के सहयोग से भारत का पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक तैयार किया है, जो 422 मीटर लंबा है। 

  • इसमें ट्रेन या पॉड्स एक लो-प्रेशर ट्यूब के भीतर अत्यधिक गति से चलती हैं। इस तकनीक में घर्षण (Friction) लगभग न के बराबर होता है, जिससे गति बहुत अधिक हो जाती है।

  • IIT मद्रास द्वारा विकसित हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक पर ट्रेन 1200 किमी प्रति घंटे की गति तक पहुंच सकती है। 

  • रेलवे मंत्रालय बेंगलुरु-चेन्नई मार्ग पर हाइपरलूप ट्रेन चलाने की योजना बना रहा है। 

  • यह एक महंगा बुनियादी ढांचा है जिसमें लो-प्रेशर ट्यूब बनाने के लिए भारी निवेश की जरूरत होगी।

  • अमेरिका में भी एलन मस्क की Hyperloop One ने कई टेस्ट किए, लेकिन 2023 में फंडिंग के कारण इसे बंद कर दिया गया।

Delhi / New Delhi :

Delhi/ भारत में परिवहन व्यवस्था जितनी मजबूत होगी, देश का विकास उतनी ही तेजी से होगा। इसी दिशा में सरकार लगातार प्रयास कर रही है, और अब एक क्रांतिकारी तकनीक पर काम किया जा रहा है— हाइपरलूप। हाल ही में IIT मद्रास ने रेल मंत्रालय के सहयोग से भारत का पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक तैयार किया है, जो 422 मीटर लंबा है। इस तकनीक के सफल होने पर दिल्ली से जयपुर जैसी यात्राएं सिर्फ 30 मिनट में पूरी की जा सकेंगी।

हाइपरलूप क्या है?

हाइपरलूप एक नई परिवहन तकनीक है, जिसमें मैग्नेटिक लेविटेशन (चुंबकीय उत्तोलन) और वैक्यूम ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें ट्रेन या पॉड्स एक लो-प्रेशर ट्यूब के भीतर अत्यधिक गति से चलती हैं। इस तकनीक में घर्षण (Friction) लगभग न के बराबर होता है, जिससे गति बहुत अधिक हो जाती है।

हाइपरलूप कैसे काम करता है?

मैग्नेटिक लेविटेशन: हाइपरलूप पॉड्स को पटरी से ऊपर उठाने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेट का उपयोग किया जाता है, जिससे घर्षण खत्म हो जाता है।

वैक्यूम ट्यूब: हवा के घर्षण को खत्म करने के लिए लो-प्रेशर ट्यूब बनाई जाती है, जिससे पॉड्स अत्यधिक गति से चल सकती हैं।

लीनियर इलेक्ट्रिक मोटर: यह मोटर पॉड्स को तेज गति से आगे बढ़ाने और नियंत्रित करने में मदद करती है।

हाइपरलूप की संभावित गति

IIT मद्रास द्वारा विकसित हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक पर ट्रेन 1200 किमी प्रति घंटे की गति तक पहुंच सकती है। इसकी तुलना में:

बुलेट ट्रेन: अधिकतम 450 किमी/घंटा

फ्लाइट्स: लगभग 800-900 किमी/घंटा

भारत में हाइपरलूप प्रोजेक्ट

रेलवे मंत्रालय बेंगलुरु-चेन्नई मार्ग पर हाइपरलूप ट्रेन चलाने की योजना बना रहा है। इस प्रोजेक्ट के सफल होने पर दोनों शहरों के बीच यात्रा 30-40 मिनट में पूरी हो सकेगी। इसके अलावा, भविष्य में दिल्ली-मुंबई, मुंबई-पुणे, और दिल्ली-कोलकाता जैसे रूट्स पर भी हाइपरलूप चलाने की संभावना है।

हाइपरलूप के फायदे

समय की बचत: लंबी दूरी की यात्राएं बेहद कम समय में पूरी होंगी।

 ऊर्जा कुशलता: घर्षण कम होने के कारण कम ऊर्जा की खपत होगी।

पर्यावरण अनुकूल: यह तकनीक कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद करेगी।

कम रखरखाव लागत: कम घर्षण और ऑटोमेटेड सिस्टम की वजह से देखरेख में कम खर्च आएगा।

हाइपरलूप की चुनौतियां

महंगा बुनियादी ढांचा: लो-प्रेशर ट्यूब बनाने के लिए भारी निवेश की जरूरत होगी।

 सुरक्षा जोखिम: हवा के लीक होने या तकनीकी खराबी से दुर्घटनाएं हो सकती हैं।

 तकनीकी परीक्षण: यह तकनीक अभी पूरी तरह से व्यावसायिक उपयोग के लिए तैयार नहीं है।

हाइपरलूप: वैश्विक परिदृश्य

अमेरिका: एलन मस्क की Hyperloop One ने कई टेस्ट किए, लेकिन 2023 में फंडिंग के कारण इसे बंद कर दिया गया।

नीदरलैंड: Hardt Hyperloop ने 2024 में सफल टेस्ट रन किया और 2030 तक इसे व्यावसायिक बनाने की योजना है।

चीन: 2024 में चीन ने 620 किमी/घंटा की स्पीड से हाइपरलूप टेस्ट किया, जो बड़ी सफलता मानी जा रही है।

हाइपरलूप भविष्य की परिवहन प्रणाली है, जो यात्रा को तेज, सुलभ और कुशल बनाएगी। हालांकि, इसे पूरी तरह से व्यावसायिक रूप से लागू करने में अभी समय लगेगा। लेकिन IIT मद्रास द्वारा विकसित हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक ने भारत में इस तकनीक की संभावना को और मजबूत कर दिया है। अगर सरकार और निजी कंपनियां इस पर निवेश करें, तो भारत जल्द ही इस क्रांतिकारी परिवहन प्रणाली का हिस्सा बन सकता है।