सिंधु जल संधि पर रोक लगाने के भारत सरकार के फैसले के बाद पश्चिमोत्तर भारत में पानी की आपूर्ति की दिशा में संभावित लाभ और इसके परिणामस्वरूप होने वाले प्रभावों पर गंभीर विचार किया जा रहा है। 1960 में हुई सिंधु जल संधि के तहत, भारत को रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का जल मिलता है, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का जल मिलता है। भारत ने इस संधि पर रोक लगाने का फैसला जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद लिया है, और पाकिस्तान को संबंधित जलप्रवाह रोकने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के सिंधु और उसकी सहायक नदियों से बहने वाला पानी रुक जाएगा।
भारत के लिए लाभ
भारत के लिए इस फैसले का लाभ स्पष्ट है, क्योंकि यह पानी की कमी से जूझ रहे पश्चिमोत्तर भारत के राज्यों को राहत प्रदान कर सकता है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नहरों और जलाशयों का नेटवर्क स्थापित किया जा सकता है, जो सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान को मिलने वाले जल को अब भारत में इस्तेमाल करने के लिए उपलब्ध कराएगा। हालांकि, इसके लिए भारत को विस्तृत जल वितरण प्रणाली, जैसे नहरों और बांधों का निर्माण करना होगा। पंजाब-हरियाणा में पहले से स्थापित सतलुज-यमुना लिंक नहर इसका हिस्सा हो सकती है। यदि भारत इस फैसले के बाद पानी के वितरण में दक्षता से काम करता है, तो पश्चिमोत्तर भारत में जल संकट को नियंत्रित किया जा सकता है, और इस क्षेत्र की कृषि भूमि को जीवनदायिनी जल मिल सकता है।
पाकिस्तान पर प्रभाव
हालांकि, पाकिस्तान के लिए यह निर्णय काफी कठिन होगा। पाकिस्तान का कृषि क्षेत्र सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। सिंधु जल संधि पर रोक के बाद पाकिस्तान की 80 प्रतिशत खेती और लगभग 160 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि प्रभावित होगी। इस क्षेत्र में रहने वाली करीब 30 करोड़ की आबादी की आजीविका सिंधु नदी प्रणाली से ही जुड़ी हुई है। इसके अलावा, पाकिस्तान के प्रमुख शहरों कराची, लाहौर और मुल्तान को जलापूर्ति करने वाले स्रोत भी यही नदियां हैं। यदि इन नदियों से पानी की आपूर्ति रोक दी जाती है, तो पाकिस्तान में खाद्यान्न की गंभीर कमी हो सकती है। इसके साथ ही, पाकिस्तान की प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएं जैसे तरबेला और मंगला भी सिंधु और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर हैं, जिससे बिजली उत्पादन में संकट उत्पन्न हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
इस फैसले के अंतरराष्ट्रीय असर भी होंगे। सिंधु जल संधि पाकिस्तान और भारत के बीच जल वितरण के संबंधों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। पाकिस्तान पहले ही भारत के जलप्रबंधन कार्यों के विरोध में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला उठा चुका है। भारत में चेनाब और झेलम पर बांध बनाने की परियोजनाएं चल रही हैं, जैसे किशन गंगा और रैटल जल विद्युत परियोजनाएं, जिन्हें पाकिस्तान ने आपत्ति दी है। इस फैसले के बाद, इन परियोजनाओं को और तेज़ी से लागू किया जा सकता है, और पाकिस्तान को जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
आगे का रास्ता
भारत ने लंबे समय से सिंधु जल संधि की समीक्षा करने की मांग की है। इसके लिए दोनों देशों के बीच बातचीत की आवश्यकता है, ताकि जल वितरण के मुद्दे को दोनों देशों के हितों के अनुरूप सुलझाया जा सके। भारत को इस प्रक्रिया में अपने जल संसाधन को सुसंगत और प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना होगा, ताकि पूरे क्षेत्र के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। दूसरी ओर, पाकिस्तान को भी जलवायु परिवर्तन और जल संकट से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजना बनानी होगी, ताकि भविष्य में ऐसे संकटों का सामना करने के लिए वह तैयार हो सके।
निष्कर्ष
सिंधु जल संधि पर रोक लगाने का भारत का निर्णय तत्काल और लंबी अवधि दोनों के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होगा। यह निर्णय भारत को पानी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना सकता है, लेकिन इसके लिए बुनियादी ढांचे में व्यापक बदलाव और दोनों देशों के बीच सहयोग की आवश्यकता होगी। साथ ही, पाकिस्तान को जल संकट से निपटने के लिए ठोस उपाय करने होंगे, ताकि इस क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे।