डॉ. कस्तूरीरंगन: भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के महान नेतृत्वकर्ता का निधन
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डॉ. के. कस्तूरीरंगन के निधन से भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई, जिनकी नेतृत्व में भारत ने अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए।
उनके मार्गदर्शन में PSLV और GSLV जैसी सफलता मिली, और INSAT और IRS सैटेलाइट्स ने भारत की वैश्विक पहचान को मजबूत किया।
देश ने आज एक महान वैज्ञानिक और दूरदर्शी नेतृत्वकर्ता को खो दिया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व प्रमुख डॉ. के. कस्तूरीरंगन का 84 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है, जिससे समूचे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। उनका योगदान भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास में अतुलनीय रहा है। डॉ. कस्तूरीरंगन के मार्गदर्शन में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण मील के पत्थर तय किए और दुनिया में अपनी एक मजबूत पहचान बनाई।
डॉ. कस्तूरीरंगन के कार्यकाल के दौरान, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने ऐतिहासिक छलांग लगाई। उन्होंने इसरो के अध्यक्ष के रूप में लगभग 10 वर्षों तक कार्य किया और अपनी कड़ी मेहनत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देश को अंतरिक्ष की दुनिया में एक अहम स्थान दिलाया। उनका नेतृत्व भारतीय स्पेस प्रोग्राम के लिए स्वर्णिम अध्याय के रूप में याद किया जाएगा। उनके मार्गदर्शन में भारत ने PSLV (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) जैसे महत्वपूर्ण प्रक्षेपण यानों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जो भारत की अंतरिक्ष शक्ति को मजबूती देने में सहायक रहे।
इसके अलावा, डॉ. कस्तूरीरंगन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी INSAT (इन्कॉमिंग सैटेलाइट) और IRS (इंफ्रारेड रिमोट सेंसिंग) सैटेलाइट्स की नई पीढ़ी का विकास। इन सैटेलाइट्स ने न केवल भारत के संचार और मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में क्रांति ला दी, बल्कि कृषि सर्वेक्षण जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में भी अहम भूमिका निभाई। डॉ. कस्तूरीरंगन का दृष्टिकोण था कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल सिर्फ विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे जनहित के लिए भी उपयोगी बनाया जाना चाहिए।
डॉ. कस्तूरीरंगन इसरो के अध्यक्ष बनने से पहले इसरो सैटेलाइट सेंटर के निदेशक थे, जहां उन्होंने INSAT-2 और IRS-1A एवं 1B जैसे सैटेलाइट्स के निर्माण और लॉन्चिंग में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस दौरान उन्होंने सैटेलाइट प्रक्षेपण के क्षेत्र में नई दिशा तय की और यह सुनिश्चित किया कि भारत अंतरिक्ष विज्ञान में आत्मनिर्भर बने। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप, भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अब एक वैश्विक मानक बन चुका है, और आज भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में प्रमुख शक्तियों में से एक माना जाता है।
डॉ. कस्तूरीरंगन ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को लेकर जो दृष्टिकोण अपनाया, वह अत्यधिक दूरदर्शी था। उन्होंने अंतरिक्ष कार्यक्रम को न केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के रूप में देखा, बल्कि उसे देश के समग्र विकास के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में स्थापित किया। उनके योगदान से ही भारत ने न केवल अंतरिक्ष यान विकसित किए, बल्कि अंतरिक्ष क्षेत्र में वैश्विक कद पाया। उन्होंने इसरो की टीम को प्रेरित किया और यह सुनिश्चित किया कि भारत अपनी आत्मनिर्भरता के रास्ते पर बढ़े।
उनकी सोच और उनके योगदान से भारतीय वैज्ञानिक समुदाय आज भी प्रेरित है। उनका योगदान सिर्फ इसरो तक ही सीमित नहीं था, बल्कि भारतीय समाज में विज्ञान के महत्व को बढ़ाने के लिए भी उन्होंने कई कदम उठाए। उनका निधन भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनका दृष्टिकोण और उनकी वैज्ञानिक सोच हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगी।
डॉ. कस्तूरीरंगन का योगदान भारतीय विज्ञान के इतिहास में अमिट रहेगा। उनके नेतृत्व में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में जो उपलब्धियां प्राप्त कीं, वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। वे न केवल एक महान वैज्ञानिक थे, बल्कि एक दूरदर्शी नेता भी थे, जिनकी सोच ने भारत को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।