उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का तमिलनाडु के उदगमंडलम में कुलपतियों के सम्मेलन में संबोधन
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उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने तमिलनाडु के उदगमंडलम में कुलपतियों के सम्मेलन में भारतीय शिक्षा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कुलपतियों को विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक परिदृश्य के संरक्षक के रूप में कार्य करना होगा और उन्हें चुनौतीपूर्ण समय में आगे बढ़ते हुए शिक्षा में नवाचार को बढ़ावा देना होगा।
उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह नीति भारतीय सभ्यतागत लोकाचार के अनुरूप है और छात्रों को मातृभाषा में शिक्षा देने के अवसर का समर्थन करती है, जिससे भारतीय उच्च शिक्षा का भविष्य और भी सशक्त होगा।
राज्यपाल की भूमिका की सराहना उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने उदगमंडलम में आयोजित कुलपतियों के सम्मेलन में तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि की सराहना करते हुए कहा कि वे संविधान के अनुच्छेद 159 के तहत ली गई शपथ के अनुरूप कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल का यह सम्मेलन आयोजित करना उनके संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन है और यह शिक्षा क्षेत्र के लिए अत्यंत प्रासंगिक कदम है। उपराष्ट्रपति ने वर्ष 2022 में कुलपतियों के सम्मेलन की परंपरा शुरू करने के लिए राज्यपाल की पहल की भी सराहना की।
कुलपतियों की भूमिका और नेतृत्व सम्मेलन को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज के कुलपति दूरदर्शी, प्रतिभाशाली और परिवर्तनकारी नेतृत्व क्षमता से युक्त हैं। उन्होंने सभी विश्वविद्यालय प्रमुखों को एकजुट होकर ज्ञान साझा करने और नई तकनीक अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज का युग अकेले कार्य करने का नहीं है, बल्कि सहयोग और तकनीकी उपयोग का समय है।
शैक्षणिक परिदृश्य में बदलाव की आवश्यकता श्री धनखड़ ने बदलते वैश्विक परिदृश्य और तेजी से हो रहे तकनीकी व्यवधानों को रेखांकित करते हुए कहा कि यह औद्योगिक क्रांति से भी बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को इस चुनौती का सामना करने के लिए सक्षम और सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता है। उन्होंने शिक्षकों की कमी, संकाय को बनाए रखने और नए शिक्षक जोड़ने जैसी चुनौतियों पर भी ध्यान दिलाया।
आतंकी हमले पर दुख और राष्ट्रीय हितों पर बल उपराष्ट्रपति ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर गहरा दुख व्यक्त किया और इसे मानवता के खिलाफ गंभीर चेतावनी बताया। उन्होंने कहा कि भारत विश्व का सबसे शांतिप्रिय देश है और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का पालन करता है। उन्होंने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि मानने और उन्हें किसी राजनीतिक या व्यक्तिगत हित से ऊपर रखने की बात दोहराई।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति का महत्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि हाल ही में लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश के लिए एक परिवर्तनकारी नीति है। उन्होंने कहा कि यह नीति बहु-विषयक शिक्षा को बढ़ावा देती है, भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देती है और शिक्षा को केवल रोजगार के उपकरण की बजाय समग्र विकास के रूप में देखती है। उन्होंने सभी शिक्षण संस्थानों से इसे गहनता से अपनाने की अपील की।
उच्च शिक्षा का भविष्य और नवाचार श्री धनखड़ ने पारंपरिक शिक्षा ढांचे से आगे बढ़कर बहु-विषयक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने शिक्षण संस्थानों से तकनीक और नवाचार को आत्मसात करने और विचारों की विविधता को सम्मान देने की अपील की। उन्होंने कहा कि असहमति की आवाज़ भी विश्वविद्यालय संस्कृति का हिस्सा होनी चाहिए।
तमिलनाडु की ऐतिहासिक भूमिका उपराष्ट्रपति ने कहा कि तमिलनाडु सदैव ज्ञान और शिक्षा की भूमि रही है। उन्होंने कांचीपुरम और एन्नायिरम जैसे प्राचीन शिक्षण केंद्रों की विरासत को आगे बढ़ाने की आवश्यकता जताई। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना और तमिल भाषा की गौरवशाली परंपरा को भी रेखांकित किया।
सम्मेलन में राज्यपाल आर.एन. रवि, राज्यपाल के प्रधान सचिव आर. किर्लोश कुमार और कुलपति डॉ. एन. चंद्रशेखर सहित अन्य प्रमुख शैक्षणिक हस्तियां उपस्थित थीं।